उदयपुर, कोरोना टीकाकरण अभियान के प्रथम चरण में जब स्वास्थ्यकर्मियों को सर्वप्रथम टीका लगाया गया उस समय पेसिफिक मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर के औषधि विभाग के पूर्व विभागाघ्यक्ष एवं वर्तमान में औषधि डॉयरेक्टर डॉ. एस. के. वर्मा तथा बायोकेमिस्ट्री विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. नीता साही के संयुक्त तत्त्वाधान में टीकाकरण के बाद बनने वाली एंटीबाडी पर सर्वे किया गया। इस रिसर्च के लिए तीन समूह बनाए गए।
इस सर्वे में प्रथम समूह में पीएमसीएच चिकित्सालय में कार्यरत चिकित्सक,इंटर्न एवं नर्सिंगकर्मियों को कोविशील्ड टीका (वैक्सीन समूह) लगाने की पहली खुराक के एक महीने बाद शरीर में बनने वाली एंटीबाडीज पर सर्वे किया गया,साथ ही दूसरे समूह में जो कोरोना से ठीक हो गए थे (कोरोना समूह) तथा तीसरे समूह में जो ना तो कोरोना से ग्रसित हुए थे और ना ही टीका लगवाया था को सम्मिलित किया गया।
रिसर्च के परिणामों की विवेचना करते हुए डॉ.एस.के.वर्मा ने बताया की शोध में वैक्सीन समूह में प्रथम खुराक के एक महीने बाद ही ८० प्रतिशत लोगों में एंटीबाडी विकसित हो गयी। इनमें से भी ४२ प्रतिशत में इसका स्तर उच्चतम था। कोरोना से ठीक हुए सभी लोगों में उच्चतम स्तर तक एंटीबाडी थे और तीसरे समूह में एंटीबाडी का स्तर शून्य था. टीके की दूसरी खुराक के एक महीने बाद एंटीबाडी का स्तर ८५ प्रतिशत में पाया गया तथा जिन लोगों में प्रथम खुराक के बाद एंटीबाडी नहीं बनी थी उनमे से भी ५० प्रतिशत में पूर्ण रूप से प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो गयी थी।
इस शोध का निष्र्कष यह निकला कि कोविशील्ड टीका लगवाने से ८५ प्रतिशत लोगों में कोरोना से लडने की प्रतिरोधक क्षमता बन गयी तथा ५३ प्रतिशत में तो यह क्षमता अपने उच्तम स्तर पर थी।
डॉ.नीता साही ने बताया की अध्ययन में सम्मिलित सभी लोगों में टीकाकरण के समय तथा बाद में भी कोई विशेष दुष्परिणाम का सामना नहीं करना पडा।
पेसिफिक मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ.ए.पी.गुप्ता ने बताया की यहाँ के शोध परिणाम लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में हुए सर्वे से बिलकुल विपरीत हैं। लखनऊ सर्वे में वेक्सिनेशन करा चुके लोगों में मात्र ७ प्रतिशत में एंटीबाडी बनी तथा कोरोना से ठीक हो चुके लोगों में से केवल ५० प्रतिशत में एंटीबाडी बनना पाया गया।
चेयरमैन राहुल अग्रवाल बताया कि वर्तमान शोध परिणामों को प्रकाशन हेतु अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में भेजा गया है और इस अध्ययन को जारी रखा जायेगा तथा छः महीने बाद पुनः एंटीबाडी स्तर की जाँच करके देखा जायेगा की कोरोना से लडने की प्रतिरोधक क्षमता कितने लोगों में कितने समय तक रहती हैं।