कविता-बुढ़ापा

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Published on : 02 Jun, 21 03:06

-लक्ष्मीनारायण खत्री

कविता-बुढ़ापा

अंग-अंग में आई थकावट 

जीवन की चाल में रुकावट

चेहरे पर झुर्रियों का डेरा 

अनेक बीमारियों ने घेरा 

नजर से हारा बेचारा 

लाठी हाथ मे बनी सहारा 

अनुभव की है खान 

समाज में बड़ा सम्मान 

गीता का वाचन करते 

योग और ध्यान लगाते 

ज्ञान के दाता 

अपनों के है विधाता 

करो अब इनकी सेवा 

पावो जिंदगी का मेवा।


साभार :


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