उदयपुर | पहाड़ ,जंगल , झीलें - तालाब व नदी से मिलकर बनी उदयपुर की प्राकृतिक विरासत का संरक्षण प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य व ध्येय होना चाहिए। यह विचार विश्व विरासत दिवस पर आयोजित संवाद में रखे गए।
संवाद का आयोजन झील मित्रों की ओर से किया गया।
जल विशेषज्ञ डॉ अनिल मेहता ने कहा कि चारो तरफ पहाड़ियों से घिरा उदयपुर एक अनमोल प्राकृतिक विरासत है। एक दूसरे से जुड़ी झीलों, पहाड़ो से बहकर आने वाले पानी को सहेजने के लिए बने तालाबों व आयड़ नदी का यह सम्पूर्ण तंत्र समृद्ध जैव विविधता का पोषक रहा है। इस अद्वितीय विरासत के मूल स्वरूप का बिगड़ना उदयपुर के लिए बुरे भविष्य की चेतावनी है।
झील प्रेमी तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि झीलों के पेटे में सीवर लाइन बिछाने के जहरीले प्रभावों से उदयपुर उभर ही नही पा रहा है। और अब पेटे में से सड़के निकालने की योजना बन गई है। यह योजना झीलों की हमारी प्राकृतिक विरासत को तो खत्म करेगी ही, भविष्य में पर्यटन उद्योग को भी नुकसान पंहुचाएगी।
पर्यावरणविद नंद किशोर शर्मा ने कहा कि झीलों के प्राकृतिक किनारे देशी प्रवासी पंछियों के आवास रहे है। यह प्राकृतिक किनारे अब सड़कों, बहुमंजिला होटलों की भेंट चढ़ गए हैं। घाटों व उन पर बने मंदिर की शानदार विरासत नष्ट हो रही है। उदयपुर की इस विरासत को बचा कर रखना ही होगा।
पल्लब दत्ता व कुशल रावल ने कहा कि बावड़ियां उदयपुर की जल संग्रहण विरासत है। सभी बावड़ियों को पुनः मूल स्वरूप में लाने व उनमें स्वच्छ पानी की उपलब्धता हमारी प्राकृतिक विरासत को बचाने के लिए जरूरी है।