*नाटक विधा पर अधिक लेखन की आवश्यकता है: भोगीलाल पाटीदार*

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Published on : 11 Apr, 21 13:04

*नाटक विधा पर अधिक लेखन की आवश्यकता है: भोगीलाल पाटीदार*


 


 


उदयपुर रचनाकार का पहला कर्तव्य मानवता को बचाने का प्रयास है। लेखक ने नाटक लेखन के माध्यम से यही प्रयास किया है। यह विचार लेखक भोगीलाल पाटीदार ने आज आखर पोथी कार्यक्रम में व्यक्त किए। प्रभा खेतान फाउंडेशन की ओर से ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के सहयोग से आखर राजस्थान के फेसबुक पेज पर यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में साहित्यकारों ने ‘हिजरतु वन’ नाटक संग्रह पुस्तक का विमोचन किया और अपने-अपने विचार प्रकट किए।

अपने अनुभवों को साझा करते हुये पुस्तक के *लेखक भोगीलाल पाटीदार* ने कहा कि, मैं बचपन से ही गांव में रहता आया हूं और खेती बाड़ी और ग्रामीण परिवेश मेरे लेखन में है। बचपन से ही घटता वन क्षेत्र देख रहा हूं। आधुनिकता के जमाने में गरीब अमीर की खाई, सामाजिक कुरीतियां, अंध विश्वास, घटता लिंगानुपात आदि पर लेखन किया है। इस नाटक संग्रह पुस्तक के लेखन का मुख्य उद्देश्य यही है कि लोगों में जागरूकता आए और पेड़ों की पीड़ा जाने तथा लोग पर्यावारण के प्रति अधिक संवेदनशील बने।

हिजरतु वन पुस्तक की प्रस्तावना में साहित्यकार एवं रंगकर्मी सतीश आचार्य ने बताया कि, लोक नाट्य पंरपरा को ग्रामीण कलाकारों ने जीवित रखा है। साथ ही जनमानस को शिक्षित किया है। राजस्थानी में नाटक की लंबी परंपरा रही है। जो नाटक जनता के मन की और उनके जीवन की बात करे वही सार्थक है। हिजरतु वन पुस्तक में आंचलिकता की परंपरा है। शिक्षा, समाज सेवा, वन, प्रकृति सब कुछ है। लेखक भोगीलाल पाटीदार का अनुभव भी इस लेखन में प्रकट हुआ है।

उदयपुर के कला समीक्षक एवं चित्रकार चेतन औदिच्य ने बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि, राजस्थानी भाषा में नाटक लेखन बहुत कम है। इस पोथी के 6 नाटक मंच पर प्रस्तुत किए जा सकते है। यह नाटक समाज की समस्याओं को सामने लाते है। राजस्थानी में लोक और शास्त्रीय रूप से नाटक हुए है। नाटक में प्रस्तुति रूप सबल होने से नाटक चलते आए है। मराठी, बंगाली और उडिया से तुलना करें तो राजस्थानी में लिखित नाटक की कमी है।  इस पुस्तक में राजस्थानी वागड़ी भाषा का जो प्रवाह है वह भाषा से गहरा लगाव पैदा करता है। यह शायद पहला नाटक है जिसमे पेड़ अपनी व्यथा प्रकट करते है। इसे विस्तार दिया जाए तो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना सकता है। यह पुस्तक पढने के बाद विचार करने को मजबूर कर देती है।

 

पुस्तक की समीक्षा करते हुए साहित्यकार एवं रंगकमी हरीश बी. शर्मा ने कहा कि राजस्थान ही नहीं देशभर में नाट्य आलोचना और समीक्षा में अकाल दिखता है। राजस्थानी नाटक लेखन और मंचन में काफी संभावनाएं है। हिजरतु वन में मोती सी चमक है। लेखक पाटीदार ने बाल रंगमंच को भी समृद्ध करने का प्रयास किया है। नाटक आज की पीढ़ी को रंगमंच से जोडने की कड़ी साबित हो सकता है। इस पुस्तक के नाटक भले ही छोटे है लेकिन सफल साबित हो सकते है। रचनाकार का पहला कर्तव्य मानवता को बचाने का प्रयास है। लेखन ने नाटक लेखन के माध्यम से यही प्रयास किया है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उदयपुर के वरिष्ठ साहित्यकार कुंदन माली ने कहा कि ऐसे जटिल समय में राजस्थानी नाटक का छपना आनंद और आश्चर्य की बात है। यह पुस्तक राजस्थान के बड़े शहरों में नाटक लेखन की प्रेरणा दे सकती है। हिंदी राजस्थानी साहित्य में नाटक लेखन की काफी कमी है। सरकारों का उत्साहवर्धन भी नहीं है। राजस्थानी में नाटकों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। रचनाकार चाहे तो समाज को संदेश भी दे सकता है और मनोरंजन भी कर सकता है। वर्तमान समय में लेखक भोगीलाल की पहल धन्यवाद की पात्र है।

आखर के फेसबुक पेज पर ऑनलाइन हुए इस आयोजन के अंत में ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के प्रमोद शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि आखर को राजस्थानी भाषा और साहित्य का गंभीर मंच बनाने का प्रयास किया जा रहा है। सितंबर माह में राजस्थानी के लेखकों का कार्यक्रम करने की योजना बनाई जा रही है। आखर प्रभा खेतान फाउंडेशन की पहल है और श्री सीमेंट और आईटीसी राजपूताना का इसमें पूरा सहयोग मिलता है। राजस्थानी भाषा के साथ ही आखर के 9 भारतीय भाषाओं में कार्यक्रम होते है।


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