राजस्थान का जनजाति परिदृश्य: चुनौतियाँ एवं सम्भावना पर हुआ वेबीनार

( 4893 बार पढ़ी गयी)
Published on : 06 Mar, 21 05:03

राजस्थान का जनजाति परिदृश्य: चुनौतियाँ एवं सम्भावना पर हुआ वेबीनार

उदयपुर । सेठ मथुरादास बिनानी राजकीय स्नाकोत्तर महाविद्यालय, नाथद्वारा एवं माणिक्यलाल वर्मा आदिमजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान, उदयपुर के संयुक्त तत्वाधान में शुक्रवार को “राजस्थान का जनजातिय परिदृश्य: चुनौतियां एवं संभवानाएं” विषय पर ऑनलाईन राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि टीएडी आयुक्त जितेन्द्र कुमार उपाध्याय ने कहा कि संगोष्ठी का विषय आज के परिप्रेक्ष्य में बहुत प्रासंगिक है। उन्होंने टीएडी की जनजाति विषयक कल्याणकारी योजनाओं के विषय में  बताते हुए शोधकर्ताओं को मूर्त योजना प्रस्तुतिकरण पर सुझाव चाहे। उन्होंने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार पर विभिन्न योजना का सृजन किया जा रहा है जिससे जनजाति युवाओं एवं महिलाओं को अधिकाधिक सुविधा अपने क्षेत्र में ही उपलब्ध हो सके। जनजागरूकता अभियान से योजनाओं की जानकारी एवं रूढि़वादी सोच से उपर उठकर कार्य करने की प्रवृति विकसित करने हेतु प्रयास किये जा रहे है।
 संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में सर्व प्रथम महाविद्यालय प्राचार्य डॉ. पुष्पा सुखवाल ने स्वागत उद्बोधन दिया। टीआरआई निदेशक गोविन्द सिंह राणावत ने टी.आर.आई. का परिचय दिया। आयोजन सचिव डॉ. शिल्पा मेहता ने संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन किया। संगोष्ठी समन्वयक ज्योति मेहता ने संगोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डाला।
उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, नई दिल्ली के निदेशक डॉ. ललित लट्टा ने अपने वक्तव्य में राजस्थान के वर्तमान जनजातीय परिदृश्य तथा उनके उन्नयन हेतु विभिन्न संभावनाओं पर विचार व्यक्त किया। प्रथम तकनीकी सत्र में अध्यक्षता ललित कला संकाय, राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के पूर्व आचार्य एवं अधिष्ठाता प्रो. चिन्मय मेहता ने की। उन्होंने कहा कि राजस्थान की जनजातीय कला बहुत मामलों में महत्वपूर्ण है। उन्होने रणथंभौर में जनजातीय मांडणाकला के विषय में विस्तारपूर्वक बताया तथा इनके पूर्ण संरक्षण की आवश्यकता बताई। इस सत्र में 13 प्रतिभागियों ने शोध पत्र प्रस्तुत किये तथा धन्यवाद ज्ञापन श्रीमती निर्मला मीणा ने किया। इस सत्र का संचालन डॉ. चेतना टिक्कीवाल एवं रामकेश मीणा ने किया। द्वितीय तकनीकी सत्र में अध्यक्षता मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय के आचार्य एवं इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. दिग्विजय भट्नागर ने की। इस सत्र में 14 प्रतिभागियों ने शोध-पत्र प्रस्तुत किये। सत्र का संचालन डॉ. चक्रपाणी उपाध्याय तथा श्रीमती मंजू खत्री ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुनील कुमार दलाल ने किया।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता पूर्वी क्षेत्रीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण विभाग, कोलकाता के मानव विज्ञानी डॉ. विभुकल्याण मोहन्ती ने अपने क्षेत्र अनुभवों को साझा करते हुए विशिष्ठ शैली को बचाये रखने की आवश्यकता जाहिर की। संगोष्ठी का प्रतिवेदन संयोजक डॉ. प्रीति भट्ट ने प्रस्तुत किया तथा आभार आयोजन सचिव डॉ. शिल्पा मेहता ने जताया। इस संगोष्ठी हेतु 50 शोध-पत्र प्राप्त हुए तथा कुल 170 प्रतिभागियों ने सहभागिता की। संगोष्ठी में राजस्थान के जनजातीय कला, संस्कृति, साहित्य, समाज-दर्शन आदि विभिन्न आयामों पर शोधपरक विमर्श किया गया।


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.