“त्याग , तपस्या , बलिदान की जीतीजागती मूरत है बेटी , जोहर ज्वाला पद्मावती का तो पन्ना का बलिदान है बेटी’’

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Published on : 05 Mar, 21 11:03

- रीना अरविन्द छंगानी

“त्याग , तपस्या , बलिदान की जीतीजागती मूरत है बेटी , जोहर ज्वाला पद्मावती का तो पन्ना का बलिदान है बेटी’’

उत्सुकता से चुप रह जाने का सफ़र

बेफिक्री से फिकर का सफ़र , रोने से चुप कराने का सफ़र , उत्सुकत्ता से संयम का सफ़र , पहले जो आँचलमे छुप जाया करती थी । आज किसी को आँचल में छुपा लेती हैं । पहले जो ऊँगली पे गरम लगने सेघर को सर पर उठाया करती थी । आज हाथ जल जाने पर भी खाना बनाया करती हैं । छोटी छोटी बातों पेरो जाया करती थी बड़ी बड़ी बातों को मन में रखा करती हैं । पहले दोस्तों से लड़ लिया करती थी ।आज उनसे बात करने को तरस जाती हैं । माँ कह कर पूरे घर में उछला करती थी । माँ सुन के धीरेसे मुस्कुराया करती हैं ।

बेफिक्री से जिम्मेदारी का सफ़र

10 बजे उठने पर भी जल्दी उठ जाना होता था । आज 7 बजे उठने पर भीलेट हो जाता हैं । खुद के शौक पूरे करते करते ही साल गुजर जाता था । आज खुद के लिए एक कपडालेने में आलस आ जाता हैं । पूरे दिन फ्री होके भी बिजी बताया करते थे । अब पूरे दिन काम करकेभी फ्री कहलाया करते हैं । साल की एक एग्जाम के लिए पूरे साल पढ़ा करते थे। अब हर दिन बिनातैयारी के एग्जाम दिया करते हैं ।

नादानियो से जिम्मेदारियों का सफ़र

ना जाने कब किसी की बेटी किसी की माँ बन गई । कब बेटी सेमाँ के सफ़र में तब्दील हो गई.....बेटी से माँ तक का सफर एक चंचल अल्हड़ युवती से लेकर एक जिम्मेदार, समझदार माँ तक का सफर है। इस सफर में बेटी सीधे माँ नहीं बनती है। इस सफर को तय करने के रास्ते में कई पड़ाव आते हैं। कुछ खट्टे-मीठे अनुभव, कुछ शारीरिक मानसिक और सामाजिक कई तरह के बदलाव आते हैं|बेटी माँ की लाडली, पिता की परी, किसी चीज का डर नहीं, किसी तरह की परेशानी या चिंता नहीं क्योंकि माँ पापा हैं ना सब देखने के लिए।

बाते मनवाने से बात मान जाने का सफ़र

बेटी सबकी लाड़ली, जो चाहे वो बात मनवा ले, पसंद ना आने पर खाना ना खाये, माँ मान मनुहार करके खिलाए, ना मानने पर फिर से पसंद का दूसरा खाना बना कर लाए। घर के छोटे-मोटे काम कर के उस का एहसान जाताना और बदले में माँ से तारीफ सुनना  ये है एक बेटी की जिंदगी। जब भी कोई फरमाइश हो तो बस कहना भर होता था और देर से हे सही वो चीज़ सामने आ जाती थी आज बड़ा यायाद आता है वो पापा से अपनी हर बात बिना जिद किये मनवाना | जब भी कोई जिद हो तो भी  माँ पापा कभी कुछ नहीं कहते, सिर्फ मुस्करा देते जैसे शायद जानते हो कि यहां से आगे का रास्ता हमें खुद ही तय करना है।

अल्हड बेटी से जिम्मेदार बहु का सफ़र

फिर शादी हो जाती है, एक बेटी किसी की बहू, किसी की पत्नी बन जाती है| एक दिन में पूरी दुनिया ही बदलजाती है| अब आपका मान मनुहार नहीं होता बल्कि आप सबका मान मनुहार करने लगती है। ससुराल में सबका ध्यान रखना, घर के सारे काम बड़े ही सलीके से करना| यहाँ सब आपको सम्पूर्ण गृहणी के रूप में देखना चाहते हैं, कोई यह नहीं समझता कि कल तक तो ये एक बेटी थी, लाडों से पली, एक दिन में परिपक्व (परफेक्ट) गृहणी कैसे बन सकती है! नए माहौल को समझने में समय लगता है। पर  एक बहु से तो यही उम्मीद होती है की वो सब बातो की जानकर हो | लेकिन में यहाँ भी थोड़ी लकी हु की मुझे सास के रूप में माँ नसीब हुई और पिता के रूप में ससुर जी जिन्होंने ने मुझे हर एक चीज़ में इतना बेहतर बनाया और बेटी व् बहु में कभी फर्क न करते ही मुझे इस मुकाम तक पहुचाया |

 

जिम्मेदार बहु से माँ का सफ़र

फिर शुरू हुवा माँ का सफ़र ....अभी जिन्दगी का उतार-चढाव समझ ही रही थी कि पता चला माँ बनने वाली हूँ| एक नया अनुभव होने वाला था। कुछ समय तक तो कुछ समझ में नहीं आया फिर नया जीवन अपने  अन्दर होने का एहसास कराने लगा | धीरे-धीरे ये अनुभूति बढने लगी | अब मन भी बच्चे के आने की कल्पना करने लग गया | इसी कल्पना में धीरे-धीरे समय निकलता जाता है। धीरे-धीरे परेशानीयां भी बढ़ने लगती है, शरीर में बदलाव आने लगता है, फिर वो समय आ जाता है| माँ बनने की वो असहनीय पीढ़ा, वो परेशानी| एक बार तो लगा शायद जान ही निकल जायेगी, फिर बच्चे का जन्म।

पहली बार बच्चे को देखने के बाद सारी परेशानियों को भूल जाना शायद इसी को माँ कहते हैं। अब सारा समय बच्चे के लिए ही है| उसका ध्यान रखना, उसकी परवरिश में ही पूरा समय निकल जाना| अब तो जैसे अपना कोई अस्तित्व ही नहीं रह गया, सिर्फ माँ का ही अस्तित्व रह जाता है। बच्चे की छोटी-छोटी खुशी में खुश होना, पूरा समय उसके बारे में उसके भविष्य के बारे सोचने में निकल जाता है|

माँ की ममता का अहसास

अब समझ में आता है कि माँ क्या होती है। अब मैं माँ के दिल को समझ सकती हुँ। आज शादी के इतने वर्ष बाद माँ पापा का प्यार समझ में आने लगा है। सबसे खास बात माँ  पापा की ये रही की उन्होंने कभी भी बेटे की चाह न राखी आज भी जब हम दोनों बहने कहती है की काश एक बेटा होता मम्मी पापा के तो आज वो अकेले नही होते तब उनके मुह से ये बात दिल को बड़ा सुकून देती है की तू हे मेरी बड़ी बेटी नही बेटा है और यही बात कभी कभी पतिदेव के मुह से सुनने को भी मिली है की मेरे बहार रहने के  कारन तू ही मम्मी पापा का बेटा है बहु नही ......आशा करती हु की उन दोनों की इस बात पर में पूरी तरह से खरी उतर पाऊ |

 

माँ पापा के बलिदान का महत्व

आज जब माँ पापा दूर है तो मन करता है जल्दी से मम्मी-पापा के पास चले जाऊँ, उनका सुख-दुख बाटूँ, उनके साथ समय व्यतीत करुँ| अपनी गलतियों के लिए क्षमा माँग लूँ जो मैने पहले की थी उनकी मर्जी के खिलाफ जाकर शादी करने की आज मई खुश हु और मुझे मेरे फैसले पर कोई पछतावा नही है लेकिन माँ पापा को दिया हुवा वो दुःख जिसकी पीड़ा मुझे जिन्दगी भर रहेगी । मुझे पता है उन्हें वे सब अब याद भी नहीं होगा| उन्हें तो मेरी अच्छाइयां ही याद रहती हैं। मन करता है माँ की गोद में सिर रख कर एक बेफिक्र नींद सो जाऊँ| क्योंकि माता पिता के बाद किसी से भी वैसा निस्वार्थ प्यार नहीं मिलता। क्योंकि माता पिता दोबारा नहीं मिलते हैं। ससुराल में जो बेहद याद आते है वो होते है पापा ...बेटी के लिए हीरो ....बहुत ख़ुशी मिलती  है आज जब माँ पापा कहते है हमें गर्व है तुझपर .....इस तरह कई अनुभव प्राप्त किये एक बेटी से माँ बनने में पर जो एक बात सीखी वो ये की जब आप खुद माँ बनते हो तब ही  आपको अपने माता पिता के द्वारा आपके लिए किये गए संघर्ष  का पता चलता है | मेरा बेटी से माँ तक के सफर ने मुझे काफी कुछ सीखाया है। इसलिए सभी बेटियों से कहना चाहुगी जीलो  अपनी जिदगी बाद में तो कितने भी आजादी मिल जाये पर बंदिशे तो भी रहेगी ही | शोक तो माँ बाप ही  पुरे करते है बाद में तो सिर्फ जरूरते पूरी होती है |


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