महाकवि माघ के काव्यों में सामाजिक चेतना पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

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Published on : 01 Mar, 21 04:03

सत्य और धर्म के मार्ग पर चल कर ही जीवन बनता है श्रेष्ठ - प्रो. सारंगदेवोत

महाकवि माघ के काव्यों में सामाजिक चेतना पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

उदयपुर / जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड-टू-बी-विष्वविद्यालय), के संघटक  साहित्य संस्थान, विष्व संस्कृत प्रतिष्ठान, जयपुर, राज के संयुक्त तत्तवावधान में आयोजित महाकवि माघ जयंती पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘‘महाकवि माघ के काव्यों में सामाजिक चेतना’’ विषय आचार्य रामकृष्ण शास्त्री के द्वारा सरस्वती वंदना से प्रारंभ की गयी। अध्यक्षता करते हुए  प्रो. (कर्नल) एस.एस. सारंगदेवोतकुलपति, ने कहा कि जीवन में कितनी भी कठिनाईया क्यो न हो, यदि व्यक्ति चाहे तो हर बाधाओं को दूर कर सकता है हर पल खुद को सन्मार्ग पर ले जा सकता है। जीवन की नई शुरूआत करने के लिए किसी विशेष समय की आवश्कता नही होती बल्कि इसके लिए हमें सत्य और धर्म का मार्ग अपनाने की जरूरत है। उन्होने कहा कि महाकवि माघ महाकवि माघ का जन्म एक प्रतिष्ठित धनी श्रीमाली ब्राह्मण कुल में हुआ। इनका जन्म षुक्ल पक्ष पूर्णिमा को मारवाड़ के भीनमाल गांव में 7 वीं शताब्दी के समकालीन हुआ, इनकी मात्र एक कृति षिषुपालवध है। इस महाकाव्य की रचना 20 सर्गों में है, जिसमें लगभग 1650 श्लोक है। इसके अन्तर्गत श्रीकृष्ण के द्वारा राजसूय यज्ञ में षिषुपाल का वध करने का वर्णन है। महाकवि माघ उपमा, अर्थगौरव, पदलालित्य तीनों गुणों का समावेष माघ के काव्यों मिलता है। उनके बारे कहा भी गया ‘‘माघे सन्ति त्रयोगुणाः’’ जो सुप्रसिद्ध है साथ ही उन्होंने कहा कि संस्कृत साहित्यकोष में महाकवि माघ एक जाज्वल्यमान नक्षत्र के समान है। जिन्होंने अपनी काव्यप्रतिभा से संस्कृत जगत को चमत्कृत किया है। यह एक और कालिदास के समान रसवादी है तो दूसरी और भारवी के सदृष विचित्रमार्ग के पोषक भी है। इसीलिए काव्यों में महाकवि माघ अपना एक विषिष्ट स्थान रखते है और इसी कारण इनकी ख्याती दूर दूर फैली है। मुख्य अतिथि डॉ. अरूण कुमार झा, सचिव, संस्कृत अकादमी, दिल्ली ने कहा कि महाकवि माघ बहुमुखी प्रतिभा के धनी है, नवीन चमत्कारिक उपमाओं का सृजन करते है। माघ व्याकरण, दर्षन, राजनीति, काव्यषास्त्र, संगीत आदि के प्रकाण्ड पण्डित थे तथा उनके ग्रंथ में ये सभी विषेषताएँ स्थान स्थान पर देखने को मिलती है। उनका व्याकरण संबंधी ज्ञान अगाध था। पदों की रचना में नये नये शब्दों का चयन बहुत देखने को मितला है। इसी कारण आज भी संस्कृत भाषा में महाकवि माघ की गणना श्रैष्ठ कवियों में की जाती है। सारस्वत अतिथि प्रो. अर्कनाथ चौधरी, निदेषक, केन्द्रीय संस्कृत विष्वविद्यालय, कहा कि महाकवि माघ द्वारा रचित षिषुपालवध के सर्गों के माध्यम से काव्यों का स्वरूप, काव्य की आत्मा रस, ध्वनि, गद्य, पद्य, वर्ण व्यवस्था, जीवन के जीने के ढ़ग, स्थापत्य कला, नगरों की रक्षा व सुरक्षा, चार वर्णों, राजनैतिक, प्रकृति चित्रण, आदि विषेषताएँ एवं उदाहरणों व श्लोकों के द्वारा विस्तृत वर्णन किया और कहा कि समाज में जो उपयोगि तत्व है वह केवल के महाकवि माघ के काव्यों में ही मिल सकते है।विषिष्ठ अतिथि, डॉ. प्रमोद वैष्णव, सह आचार्य, निदेशक प्रो. जीवन सिंह खरकवाल, डॉ. कुल शेखर व्यास, डॉ. महेश आमेटा, डॉ. कृष्णपाल सिंह, रीना मेनारिया ने भी अपने विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में निदेशक प्रो. जीवन सिंह खरकवाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए सेमीनार की जानकारी दी। सेमीनार मंे भारत के विभिन्न भागों से संस्कृत के विद्वानों के साथ शोधार्थियों ने लिया इसके साथ ही विष्वविद्यालय के अधिकृतियों के साथ संस्थान के सभी कार्यक्रर्ताओं ने भाग लिया।  


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