17 वाॅ पद्मश्री देवीलाल सामर स्मृति नाट्य समारोह खूब गुद गुदाया नाटक ‘‘ जात ही पूछो साधू की’’ ने

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Published on : 26 Feb, 21 07:02

17 वाॅ पद्मश्री देवीलाल सामर स्मृति नाट्य समारोह  खूब गुद गुदाया नाटक ‘‘ जात ही पूछो साधू की’’ ने

उदयपुर,  17 वें पद्मश्री देवीलाल सामर स्मृति नाट्य समारोह के पहले दिन जात ही पूछो साधू की नाटक ने दिखया समाज में फैले भाई- भतीजा वाद और भ्रष्टाचार और शिक्षा के व्यवसायिक करण के आईना दिखाया।

भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर के निदेशक डाॅ. लईक हुसैन ने बताया कि 70 वें स्थापना दिवस पर आयोजित किये जा रहे 4 दिवसीय 17 वें पद्श्री देवीलाल सामर स्मृति नाट्य समारोह में दिनांक 25 फरवरी को दि परफोरमर्स कल्चरल सोसायटी, उदयपुर के कलाकारों द्धारा उदयपुर के उदयीमान रंगकर्मी और युवा नाट्य निर्देशक कविराज लईक द्वारा निर्देशित नाटक ‘‘ जात ही पूछो साधू की’’ का मंचन हुआ जिसने अपने काम से दर्शकों को गुदगुदाया और अभिभूत किया। 

उन्होने बताया कि  जीवन के स्याह पक्षों को निर्मम पर्यवेक्षण से उजागर करने के लिए प्रसिद्ध लेखक पद्म विभूषण विजय तेन्दुलकर द्वारा लिखित एवं युवा नाट्य निर्देशक कविराज लईक द्धारा निर्देशित नाटक जात ही पूछो साधू की समकालीन सामाजिक विद्रूपता को थोड़ा व्यंग्यात्मक नजरिये से खोलता है। कहानी गाँव के एक आम आदमी महीपत बबरू वाहन के किरादार से जुड़ी हुई है जिसके जीवन का मुख्य लक्ष्य येनकेन प्रकार से अपने नाम के आगे प्रोफेसर लगवाने का है। एम.ए. की डिग्री से लैस होकर जब महीपत नौकरी की जिस खोज-यात्रा से गुजरता है, वह शिक्षा की वर्तमान दशा, समाज के विभिन्न शैक्षिक स्तरों के परस्पर संघर्ष और स्थानीय स्तर पर सत्ता के विभिन्न केन्द्रों के टकराव की अनेक परतों को खोलती जाती है। कथानक में स्वातंत्रयोत्तर भारत की कई ऐसी छवियों का साक्षात्कार होता है जो धीरे-धीरे हमारे सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन का हिस्सा हो चुकी हैं। वे हमें स्वीकार्य लगती हैं लेकिन उन्हीं के चलते धीरे-धीरे हमारा सामूहिक चरित्र खोखला होता जा रहा है। अपने दो-टूकपन, सामाजिक सरोकार और व्यंग्य की तीव्रता के कारण नाटक ने दर्शकों पर अपनी एक अलग ही छाप छोडी।

नाटक में मुख्य भूमिका में प्रबुद्ध पाण्डे नेे महिपत बबरू वाहन के रूप मंे अपने संजिदा एवं मंझे हुए अभिनय से चरित्र को जीवन्त करने के साथ-साथ व्यग्य की बारिकियों के मध्य ही दर्शकों तक पहुॅचा कर उन्हें अभिभूत किया, तो सरपंच बाप के बेटे बबना के रूप में जतिन खूब ही फबे। नल्ली के अलहड़ और चपलता पूर्ण चरित्र को साकार किया शिप्रा चटर्जी ने तो गाॅंव की तेज तरार मौसी के रूप में फरहाना खान ने दर्शकों को हसने को मज़बूर किया। चेयरमेन के रूप में आर एस देवन तो उर्दु प्रोफेसर- जूज़र नाथद्वारा, संस्कृत प्रोफेसर-शुभम अमेटा, अंग्रेजी प्रोफेसर-योगिता सोनी, प्रिंसिपल- कुणाल मेहता ने अपने चरित्रों पर विशेष कार्य किया, नर्तकी के रूप में बाल कलाकार गीतिशा पाण्डे, योगिता सोनी, धारवी दीक्षित, प्रियल तो अन्य पात्रों में अजय शर्मा, राज कुमार, विभाष पुर्बिया, दीप सिंह बाघेला, राहुल जोशी, दिपेन्द्र, मो. हाफिज़, धार्वी , प्रियल, इशान टंडन हुसैन- बोडी गार्ड, आशिष मेहता- म्यूज़िक,  वेषभूषा - अनुकम्पा लईक ने कि थी।

उन्होने बताया कि समारोह में पाँचवे दिन दिनांक 26 फरवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गाॅंधी के जीवन को प्रदर्शित करने के साथ ही भारत की आज़ादी के लिए उनके द्वारा किए गए संघर्ष को नाटक ‘‘मोहन से मसीहा’’ में प्रदर्शित किया गया है। जिसका लेखन एवं निर्देशन भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डाॅं लईक हुसैन ने किया है परन्तु मोहन से मसीहा नाटक से पूर्व मूक बधिर विद्यालय के विशेष बालक-बालिकाओं द्वारा कोरोना से बचाव हेतु संदेश देने वाला लघु नाटक कोरोना से सुरक्षा प्रस्तुत किया जाएगा जिसका लेखन एवं निर्देशन डाॅ. लईक हुसैन ने किया है ।

17 वें पद्मश्री देवीलाल सामर स्मृति नाट्य समारोह की प्रस्तुतियाँ प्रतिदिन सायं 07 बजे से हो रही है, जिनमे दर्शकों का प्रवेश निःशुल्क है। परन्तु कोविड-19 की अनुपालना आवश्यक है। 


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