अशोक गहलोत और वसुन्धरा राजे राजस्थान की राजनीति के दो ध्रुव

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Published on : 24 Feb, 21 03:02

- नीति गोपेंद्र भट्ट

अशोक गहलोत और वसुन्धरा राजे राजस्थान की राजनीति के दो ध्रुव

राजस्थान की राजनीति की समझ रखने वाले लोगों के दिलों दिमाग में यह बात निर्मल पानी में पेंदा दिखने की तरह बहुत साफ और स्पष्ट है कि पूरे देश में भू-तल की दृष्टि से सबसे बड़े सूबे की राजनीति में वर्तमान में दो नेताओं का शीर्ष और अहम स्थान एवं महत्व बना हुआ है और इसके आगे भी बरकरार रहने की संभावना है ।

यह हक़ीक़त है कि प्रदेश की राजनीति के दो प्रमुख दलों कांग्रेस में मरुस्थल के लाल और तीसरी बार मुख्यमंत्री बने अशोक गहलोत और भारतीय जनता पार्टी में धौलपुर की पूर्व महारानी और दो बार मुख्यमंत्री रही वसुन्धरा राजे का अहम स्थान बना हुआ है। दरअसल अशोक गहलोत और वसुन्धरा राजे राजस्थान की राजनीति के ध्रुव तारें और मज़बूत स्तंभ हैं।

इन दोनों दिग्गज और क़द्दावर नेताओं के मुक़ाबले राजस्थान में अन्य किसी नेता का क़द इतना ऊँचा नहीं है कि वे अपने बलबूते पर अपनी पार्टी को चुनावी वैतरणी पार करवा सकें। 

67 वर्षीय वसुन्धरा और 69 वर्षीय गहलोत दोनों ही जनाधार वाले नेता हैं तथा दोनों की लोकप्रियता भी अपार है। दोनों दूरदर्शी,संवेदनशील, महत्वाकांक्षी,स्वाभिमानी और विकासोन्मुखी विजन रखने वाले क़द्दावर नेता हैं। 

वसुन्धरा ढाँचागत विकास योजनाओं और गहलोत सामाजिक योजनाओं के कट्टर समर्थक हैं। दोनों नेताओं का प्रदेश की राजनीति में ही नहीं वरन राष्ट्रीय राजनीति में भी बहुत अहम  और महत्वपूर्ण स्थान हैं। दोनों प्रदेश में अपने-अपने दलों के एक से अधिक बार प्रदेश अध्यक्ष, सांसद और केन्द्र सरकार में मंत्री भी रहें है।

गहलोत और वसुन्धरा वर्ष 1998 से अब तक हर पाँच वर्ष बाद बारी-बारी से राजस्थान की सत्ता पर क़ाबिज़ होकर मुख्यमंत्री बनते आ रहें है। जब- जब वे सत्ता से बाहर होते है तब-तब वे प्रदेश में प्रतिपक्ष के प्रमुख नेता की भूमिका निभाने के साथ ही अपनी पार्टी के केन्द्रीय संगठन में वरिष्ठ पदाधिकारी के रूप में अपना दायित्व निभाते हैं ।

वसुन्धरा राजे केन्द्र से प्रदेश की राजनीति में तब आई जब देश के उपराष्ट्रपति रहें स्वर्गीय भैरोंसिंह शेखावत जैसे क़द्दावर नेता प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। इसीप्रकार गहलोत भी प्रदेश में तब आयें जब असम मेघालय और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहें कांग्रेस के दिग्गज नेता दिवंगत हरिदेव जोशी राजस्थान के मुख्यमंत्री थे।

कालान्तर में वसुन्धरा और गहलोत दोनों ने न केवल प्रदेश के स्थापित नेताओं के विकल्प के रूप में अपने आपको साबित किया वरन इनमे से कई को पीछे छोड़ते हुए राजनीति में लम्बी रेस के खिलाड़ी बनें।

 वसुन्धरा का अपना अलग ही आभा मण्डल है। विशेष रूप से वे महिलाओं में ख़ासी लोकप्रिय है। इसी प्रकार गहलोत ज़मीन से जुड़ें ऐसे खाँटी नेता है जिनका गाँव से शहर तक मज़बूत जनाधार हैं और समय,काल और परिस्थितियों के अनुसार राजनीतिक शतरंज के पासे चलने की समझ भी है,तभी उन्हें ‘राजनीति का जादूगर’ कहा जाता है।गहलोत ने अपने सिद्धान्तों और वसुन्धरा ने अपने स्वाभिमान के साथ कभी समझौता नहीं किया। दोनों अपन-अपने ढंग के विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी  है। 

गहलोत देर रात तक काम करने के आदी है जबकि जरुरत अनुसार घण्टों काम करने की क्षमता रखने वाली वसुन्धरा अपनी नियत दिनचर्या में काम करना पसन्द करती है।दोनों ब्यूरोकेसी पर शिकंजा कसने में भी माहिर हैं।

वसुन्धरा राजे जहां धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृति में गहरी आस्था रखने वाली तथा देवी माता की अनन्य भक्त है, वहीं अशोक गहलोत कबीर पंथी और धर्म निरपेक्ष प्रवृति के है। हाँ वसुन्धरा राजे की तरह वे भी सभी धर्मों के प्रति आस्था और सम्मान रखते है। 

वसुन्धरा ओजस्वी वक्ता है और धारा प्रवाह अंग्रेज़ी,हिन्दी और मराठी बोलने की दक्षता रखतीं है वहीं गहलोत सीधी और सरल भाषा में तर्कों और तथ्यों के आधार पर अपनी बातें रखने और मनवाने में माहिर हैं। वे दिल छूने वाली मारवाड़ी बोली  म्हे थां सू दूर कौनी.. से लोगों के दिलों पर राज करने की ख़ासियत भी रखते है।

गहलोत के पक्ष में सबसे बड़ी बात यह रहती आई है कि उनकी पार्टी के हाई कमान का हाथ सदैव उनके सिर पर रहा है और गहलोत को हमेशा इसका लाभ भी मिला है जबकि वसुन्धरा राजे के साथ सदैव ऐसा नहीं हुआ है।हालाँकि उनके सम्बन्ध पार्टी और आरएस एस के शीर्ष नेतृत्व तथा  जनसंघ एवं भाजपा के सभी वरिष्ठ नेताओं के साथ बहुत ही निकटता से भरे है। उनकी माँ राजमाता विजयाराजे सिन्धिया द्वारा भाजपा को एक पोधे से वटवृक्ष बनाने में दिए गए योगदान को आज भी कोई भुला नहीं है। इस कारण वसुन्धरा का पार्टी में अपना एक अलग ही वजूद क़ायम है।

एक समय था जब वसुन्धरा राजे केन्द्र की राजनीति से राज्य की राजनीति में आना ही नहीं चाहती थी लेकिन जब वे आई तब उन्होंने अपने बलबूते पर ही प्रदेश की राजनीति में अपनी जगह बनाई। फिर वसुन्धरा राजे पार्टी हाई कमान से अपने विधायकों के भारी समर्थन,तर्कों और जनाधार के आधार पर हमेशा अपनी बातों को  शिद्दत के साथ मनवाने में भी सफल रहीं है। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब राजस्थान की मुख्यमंत्री के रूप में जालोर और बाड़मेर जिलों में गुजरात से नर्मदा की अपर केनाल का पानी (माही  का सरप्लस वॉटर) राजस्थान लाने में भी वे सफल रही थी।

दोनों नेताओं को हमेशा इस दुर्भाग्य का सामना भी करना पड़ा है कि जब-जब वे सत्ता में आयें है,उन्हें अधिकांश बार केन्द्र में अपने विरोधी दलों की सरकारों के साथ डील करना पड़ा है जिसकी वजह से अपने बलबूते जनहित की कई नई योजनाएँ शुरू करवाने के बावजूद उन्हें केन्द्र से प्रदेश के वाजिब हकों को हासिल करने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ा हैं और समय पर जन-आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं होने से राज्य में हर पाँच वर्षों में सत्ता बदलने का यह भी एक बड़ा कारण रहा है। संयोग से जब केन्द्र और राज्य में एक ही दल की सरकारें बनी तब भी केन्द्र से उन्हें वह अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाया जिसकी अपेक्षा उन्होंने रखी थी । 

इस वजह से राजस्थान को थार रेगिस्तान से घिरा विशाल भू भाग और पाकिस्तान से लगा लम्बा सीमावर्ती क्षेत्र होने के साथ-साथ पानी के भीषण संकट तथा प्रायः सूखा और अकाल जैसी प्राकृतिक आपदाओं से त्रस्त रहने और विषम भोगोलिक परिस्थितियों की वजह से अन्य राज्यों की तुलना में विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में सेवाओं की लागत अधिक आने आदि कई वाज़िब कारणों के बावजूद पहाड़ी और उत्तर पूर्वी राज्यों की तरह विशेष श्रेणी के प्रदेश का दर्जा आज तक नही मिल सका । 

आज़ादी के बाद छोटी बड़ी रियासतों को मिला राजस्थान का निर्माण होने से अब तक प्रदेश में इन्दिरा गांधी नहर परियोजना (राजस्थान केनाल) को छोड़ एक भी राष्ट्रीय परियोजना शुरू नहीं हुई है। वसुन्धरा राजे ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में पूर्वी राजस्थान के तेरह जिलों में 7.8 लाख हेक्टर क्षेत्र में पेयजल और सिंचाई की समस्या का स्थाई समाधान करने के लिए पैंतीस हजार करोड़ की ईस्टर्न राजस्थान केनाल प्रोजेक्ट तैयार करवाया था तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जयपुर और अजमेर की जनसभाओं में इसके लिए केन्द्रीय मदद के लिए घोषणा भी कराई थी लेकिन यह परियोजना सिरे नही चढ़ सकी। 

प्रदेश में सत्ता बदलने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस महत्वाकांक्षी परियोजना के महत्व को समझते हुए इसे राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिलवाने के प्रयास जारी रखें और प्रधानमंत्री से  इसके लिए केन्द्रीय बजट में विशेष प्रावधान रखने की गुहार लगाई । हाल ही नीति आयोग की शाषी परिषद की छठी बैठक में भी उन्होंने प्रधानमंत्री को इसका स्मरण कराया लेकिन प्रदेश की सभी पच्चीस लोकसभा सीटों से भाजपा की झोली भरने वाले राजस्थान की झोली अब तक ख़ाली ही रहीं। यह तो एक उदाहरण है।फिर पश्चिम राजस्थान में प्राकृतिक तैल और गैस के अथाह भण्डार मिलने के बाद प्रदेश में रिफ़ाइनरी की स्थापना करवाने का काम शुरू करवाने के मार्ग में भी कई बाधाएँ सामने आई।ऐसे अन्य कई उदाहरण है जो दलगत राजनीति के भेंट चढ़े हैं और राजस्थान को इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा है।

राजस्थान अपनी खनिज सम्पदाओं के साथ-साथ पर्यटन, हेरिटेज,कला, संस्कृति,हस्तशिल्प आदि दृष्टि से भी बहुत समृद्ध हैं । फिर राजस्थान अपनी विभिन्न विकास और जन कल्याण कारी योजनाओं कृषि एवं शिक्षा विकास आदि  के कारण अपने बलबूते पर आज बीमारु राज्यों की श्रेणी से बाहर निकलने में कामयाब हुआ है। प्रदेश में सौर ऊर्जा विकास और अन्य कई क्षेत्रों में विकास की असीम सम्भावनाएँ मौजूद हैं।

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