'सूनी सूनी है, सड़कें सारी, छिपे हैं नर नारी, कोरोना ने बेहाल कर दिया'

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Published on : 02 Feb, 21 15:02

सुविवि में खूब जमी काव्य सन्ध्या

 'सूनी सूनी है, सड़कें सारी, छिपे हैं नर नारी, कोरोना ने बेहाल कर दिया'


उदयपुर। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण अधिष्ठाता एवं पत्रकारिता एवम जनसंचार विभाग के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार को आयोजित काव्य संध्या में विभिन्न रसों के कवियों ने मध्य रात्रि तक काव्य सरिता बहा कर श्रोताओं को मंत्र मुक्त कर दिया।
कोरोना काल और लॉक डाउन के 11 महीने बाद शहर में  पहली बार कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए आयोजित इस काव्य सन्ध्या की अध्यक्षता कुलपति प्रोफ़ेसर अमेरिका सिंह ने की। मुख्य अतिथि मावली विधायक धर्मनारायण जोशी थे, जबकि विशिष्ट अतिथि जिला कांग्रेस कमेटी की पूर्व अध्यक्ष नीलिमा सुखाड़िया और  सामाजिक विज्ञान एवं मानवीकी महाविद्यालय और विधि महाविद्यालय की अधिष्ठाता प्रो सीमा मलिक थी। पूरे कार्यक्रम का यूट्यूब चैनल पर सजीव प्रसारण किया गया।



मध्य रात्रि तक चली काव्य सन्ध्या में कवि राव अजातशत्रु ने  अपनी रचना- 'यह वुहान का वायरस चीनी, माल बड़ा तगड़ा निकला, इटली में कोहराम मचाया, घर घर में लफड़ा निकला। दुनिया भर में दस्तक दे कर के भूकंप मचा डाला, गांव शहर गलियों चौराहों दरवाजों पर है ताला। सूनी सूनी है सड़कें सारी, छिपे हैं नर नारी कोरोना ने बेहाल कर दिया, अब रक्षा करेंगे गिरधारी उसी की बलिहारी कोरोना ने बेहाल कर दिया।' रचना सुनाकर लोक डाउन एवं कोरोना काल की कथा को श्रोताओं तक पहुंचाकर खूब वाह वाह लूटी।
कवि सिद्धार्थ देवल ने - "सीमा पर एक जवान जो शहीद हो गया, संवेदनाओं के कितने बीज बो गया, तिरंगे में लिपटी लाश उसके घर पर आ गई, सिहर उठी हवाएं उदासी सी छा गई, तिरंगे में लिखा खत जो उसी मां को दिख गया, मरता हुआ जवान उस खत में लिख गया, बलिदान को आंसुओं से धोना नहीं है, तुझको कसम है मां मेरी कि रोना नहीं है।" सुनाकर एक सैनिक की शहादत को भावपूर्ण कविता के जरिये प्रस्तुत कर श्रोताओं को भावुक कर दिया। 
हास्य कवि सुनील व्यास ने हिंदी और राजस्थानी में दैनिक जीवन की विभिन्न घटनाओं को छोटे छोटे रूप में उठाते हुए  खूब गुदगुदाया। उन्होंने कोरोना से बचने के लिए विभिन्न तरीके हल्के फुल अंदाज में श्रोताओं तक पहुंचाया।
श्रंगार की कवयित्री दीपिका माही ने-  "जब भी पौधा अमलतास का तर खुशबू से महके है, जब चिड़ियों का जोड़ा कोई चढ़ मुंडेर पर चहके है, कहते तारे मधुर मिलन के सपने रोज संजोते हैं, व्याकुल नैना याद में तेरी चुपके चुपके रोते हैं, मेरे मन के पंछी उड़ जा।" विरह श्रंगार के इस गीत से वाहवाही लूटी।
कवि दीपक पारीक ने "नहीं जानते क्या रिश्ता है, हरी लता का डाली से, नहीं पता है उनको कितना प्यार मिला है माली से, नहीं बहारों को मैं कोयल से मीठे मीठे गीत सुनें, नहीं कभी रस पान हुआ है नहीं कभी गुलकंद बने, फिर भी उनके नाम के आगे क्यों गुलदस्ता लिखते हैं, अक्सर नकली फूल गुलाबों से भी महंगे बिकते है" सुनाकर दाद पाई। कवि ब्रज राज सिंह जगावत ने-' अटल प्रण की धरा  मेवाड़ स्वाभिमान जिंदा है" रचना सुनाकर मेवाड़ के स्वर्णिम इतिहास एवं महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा को सुनाकर खूब तालियां बटोरी।
काव्य सन्ध्या का संचालन डॉ कुंजन आचार्य ने किया। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक भाव की रचना- 'मन की कोरी दीवारों पर बस तेरा ही नाम लिखा, नाम लिखा तो उसके भीतर कान्हा का चितराम  दिखा" सुनाकर तालियां बटोरी।
कार्यक्रम के शुरू में छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रोफेसर पूरणमल यादव ने सभी कवियों और अतिथियों को पुष्प गुच्छ भेंट कर स्वागत किया। छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष वसीम खान, दिलीप जोशी एवं अमित पालीवाल उपस्थित थे।
इस अवसर पर सूक्ष्म कलाकृतियों के चितेरे चंद्रप्रकाश चित्तौड़ा द्वारा निर्मित कोरोना जागरुकता की सूक्ष्म पुस्तिकाओं का विमोचन  कुलपति प्रोफ़ेसर अमरीका सिंह एवं मुख्य अतिथि धर्म नारायण जोशी ने किया।


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