महाराणा फतेह सिंह की आज १७२वीं जयन्ती

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Published on : 15 Jan, 21 04:01

महाराणा फतेह सिंह की आज १७२वीं जयन्ती

उदयपुर।  महाराणा फतेह सिंह जी (राज्यकाल १८८४-१९३० ई.स.) का जन्म पौष शुक्ल द्वितीया, विक्रम संवत् १९०६ को हुआ था। सन् १८८४ में महाराणा सज्जनसिंह जी के स्वर्गवास के बाद महाराणा फतेह सिंह की गद्दीनशीनी सम्पन्न की गई। वे मेवाड के ७३वें श्री एकलिंग दीवान थे। महाराणा फतेहसिंह जी की आज १७२वीं जयन्ती पर महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन उदयपुर की और से पूजा-अर्चना की जाएगी।

महाराणा ने शिक्षा को बढावा देते हुए अपने शासनकाल में मेवाड में ४७ नए प्राथमिक विद्यालय खोलें तथा राजपूत छात्रों के लिए उदयपुर में भूपाल नोबल्य स्कूल की स्थापना की। इसी तरह प्रजा के बेहतर स्वास्थ्य के लिए सज्जन हॉस्पिटल से बडे एक नया अस्पताल बनवाया और उसमें सज्जन हॉस्पिटल के कर्मचारियों को नियुक्त कर दिया। महाराणा ने जनाना हॉस्पिटल के लिए एक नई इमारत तैयार करवाई। महाराणा ने यात्रियों की सुविधा के लिए उदयपुर से चित्तौडगढ तक रेलवे लाईन, उदयपुर से जयसमंद तक सडक और उदयपुर, चित्तौडगढ, सनवाड स्टेशन पर तथा टीडी, बारापला आदि स्थानों में पक्की सरायें बनवाई। यही नहीं उन्होंने राज्य में टेलीग्राफ सेवाएं भी शुरू करवाई।

महाराणा फतेहसिंह जी एक दूरदर्शी शासक थे। उनके ब्रिटिश सरकार के साथ अच्छे संबंध थे लेकिन मेवाड के सिंहासन की गरिमा के बार में भी जानते थे। १८८७ में उन्होंने इंग्लैण्ड की रानी विक्टोरिया की स्वर्ण जयंती मनाई गई लेकिन महाराणा फतेहसिंह एकमात्र भारतीय शासक थे जो १९०३ और १९११ में दिल्ली दरबार में दो बार उपस्थित नहीं हुए। १९११ में दरबार में भाग लेने के लिए महाराणा फतेहसिंह को जो कुर्सी सौंपी गई थी उसको बाद में उदयपुर भेज दी गई जो वर्तमान में सिटी पैलेस, उदयपुर के बाडी महल में आज भी पर्यटकों के लिए प्रदर्शित है। महाराणा फतेहसिंह ने मेवाड रिसाला की स्थापना की, जिसे बाद में मेवाड लांसर्स में परिवर्तित कर दिया गया। महाराणा को अंग्रेजी सरकार ने जी.सी.एस.आई. की उपाधि से नवाजा।

महाराणा फतेहसिंह ने चावडीजी का महल, गणेश पोल, घासघर, फतेह प्रकाश पैलेस, जस प्रकाश, रोकडा दफ्तर, भूपाल प्रकाश, भूपाल विलास, रामपोल, खासा रसोडा और महाराणा सज्जनसिंह द्वारा शुरू किये ये शिव निवास पैलेस को पूरा करवाया, सज्जनगढ का निर्माण को भी पूरा करवाया जो महाराणा सज्जनसिंह के हाथ से अधूरा रह गया था, और चित्तौडगढ, कुंभलगढ किलों का जीर्णोद्धार करवाया, १८८९ में महाराणा ने देवाली झील पर ’’कनॉट बांध‘‘ का निर्माण करवाया, बाद में इस झील का नाम फतेहसागर रखा गया। महाराणा ने मेवाड में कई तालाबों की मरम्मत और निर्माण के लिए अनुदान दिये।

महाराणा ने परम्परानुसार महाराणा राजसिंह प्रथम, महाराणा जयसिंह, महाराणा प्रतापसिंह द्वितीय, महाराणा प्रतापसिंह द्वितीय, महाराणा राजसिंह द्वितीय और महाराणा हम्मीरसिंह द्वितीय की उदयपुर के महासतियाजी में छतरियों का निर्माण करवाया।

महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन उदयपुर के प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने उक्त ऐतिहासिक जानकारियों के साथ बताया कि वर्तमान में कोरोना महामारी के चलते महाराणा की जयंती पर किसी प्रकार के आयोजन नहीं रखे जाऐंगे।


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