मेनार के तालाबों में जंतु प्लवको की जैव विविधता एवं भरमार से खींचे आते हैं परिंदे

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Published on : 18 Oct, 20 07:10

मेनार के तालाबों में जंतु प्लवको की जैव विविधता एवं भरमार से खींचे आते हैं परिंदे

बर्ड विलेज मेनार के तालाब धंड एवं ब्रह्म सरोवर में सूक्ष्म जंतु प्लवको की भरमार यहां आने वाली वाले परिंदों के लिए उम्दा किस्म का भोजन तैयार करने में प्रमुख भूमिका है। अपेक्षाकृत कम गहराई वाले जल मैं जैविक उत्पादन अधिक होने के कारण यहां समृद्ध भोजन श्रंखलाएं जलाशयों में उपस्थित मछलियों एवं अन्य जलीय जंतुओं के लिए विपुल मात्रा में भोजन सामग्री उपलब्ध कराती है यह तथ्य हाल ही पिछले दिनों पूर्ण किए गए एक पीएचडी शोध कार्य द्वारा उजागर हुए।



 


बी एन विश्वविद्यालय की शोध छात्रा डॉ दर्शना दवे ने बताया कि मेनार के धंड तालाब के जल से एकत्र किए गए नमूनों में कुल 38 प्रकार के जंतु प्लवक पाए जाते हैं इनमें प्रमुख रूप से 21 प्रकार के क्लादोसरा ,14 तरह के रोटिफेरा एवं 2 प्रकार के कॉपीपोडा समूह के सूक्ष्म जीव देखे गए। इसी प्रकार मेनार गांव के ही ब्रह्म सरोवर में 24 तरह के क्लादोसरा एवं 16 प्रकार के रोटीफर्स जंतु प्लवक पाए जाते हैं। इन दोनों वेटलैण्ड्स में क्लादोसरा समूह के जंतु प्लवकों का ही प्रभुत्व देखा गया जो इन जलाशयों की उच्च पोषण स्तर को प्रमाणित करता है। शोध परिणामों से यह भी ज्ञात हुआ है कि इन जलाशयों में परिंदों के आने से जल पारिस्थितिक तंत्र में पोषक तत्वों की मात्रा में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हो जाती है खासकर कार्बनिक कार्बन में लगभग 40 % ,नाइट्रोजन लगभग 25 % तथा और फास्फोरस की मात्रा में 70% तक वृद्धि हो जाती है। यह विशेषकर परिंदों द्वारा जल में मुक्त विचरण करने और वेटलैंड में उपलब्ध भोजन ग्रहण करने के उपरांत जल में छोड़े गए व्यर्थ पदार्थों के कारण होता है इस प्रकार जलीय पर्यावरण में जैविक उत्पादन के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की बहुलता के रहते जल में प्राथमिक एवं द्वितीय स्तर पर जैविक उत्पादन भी अधिक होता है जो यहां पल रहे अन्य अकशेरुकी प्राणियों के लिए भोजन का प्रमुख स्रोत बनता है और इन्हीं नैसर्गिक रूप से उत्पादित विभिन्न प्रकार की भोज्य सामग्रियों को यहां विचरण करने वाली विभिन्न प्रकार की मछलियों द्वारा उपयोग में लिया जाता है।

उल्लेखनीय है कि गांव के इन दोनों जलाशयों में कुल मिलाकर 150 किस्म की बर्ड्स हर वर्ष शीतकाल में यहां आती है और भोज्य सामग्री की भरमार और अनुकूल परिस्थितियों के कारण इन में से कुछ यहां प्रजनन भी कर लेती है। इस प्रकार कुल मिलाकर देखें तो मेनार गांव के जलाशयों मैं विपुल मात्रा में उपलब्ध खाद्य सामग्री और अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण ही यह परिंदे यहां दूर-दूर से आते हैं जो पक्षी विशेषज्ञों के लिए एक प्रमुख आकर्षण बन गया है। संभवत इन्हीं परिस्थितियों के रहते कुछ माह पूर्व मेनार के दोनों जलाशयों को मुंबई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी द्वारा इंपॉर्टेंट बर्ड साइट्स ( आई बी एस)की श्रेणी में रखा गया है।


प्राणी विज्ञान विभाग ,बी एन यूनिवर्सिटी के सहायक प्राध्यापक डॉक्टर अभिमन्यु सिंह राठौड़ के मार्गदर्शन में किए गए इस शोध कार्य से यह भी ज्ञात हुआ है कि धंड एवं ब्रह्म सरोवर नामक मेनार के यह दोनों वेटलैंड एक दूसरे से कुछ ही दूरी पर स्थित है परंतु धंड वेटलैंड में शीत ऋतु में बाहरी अवं स्थानीय परिंदों की अधिक भरमार देखी जा सकती है जिसका प्रमुख कारण इस वेटलैंड में उपलब्ध पर्याप्त भोजन सामग्री के साथ साथ इन बाहर से आने वाले परिंदों को ग्रामीणों द्वारा भी पूरा संरक्षण प्राप्त होता है जो अपने आप में वेटलैंड के जलीय पर्यावरण- परिंदों एवं मानव के मध्य स्थापित एक आदर्श एवं सुदृढ़ व्यवस्था को प्रदर्शित करता हैं। मेनार गांव के इन वेटलैंड्स में किसी भी प्रकार से पक्षियों को मानव द्वारा हानि नहीं होने के कारण वे यहां स्वच्छंद रूप से विचरण कर पाते हैं।

इस शोध में सूक्ष्म जंतु प्लवको की मात्रा का भी अनुमापन किया गया जिस से ज्ञात हुआ कि धंड के वेटलैंड में क्लैडोसेरा समूह के जंतु प्लवको की अधिकतम मात्रा 825 प्रति लीटर रही जबकि रोटिफर नामक जंतु समूह की मात्रा 375 प्रति लीटर पाई गई इसी तरह कॉपीपोड के समूह की मात्रा 300 प्रति लीटर रही जो इन जलाशयों मैं उत्पादित प्राकृतिक भोजन की मात्रा का संकेत देता है।

इस शोध कार्य के माध्यम से यह सुझाव भी दिया गया है कि मेनार गांव के दोनों वेटलैंड और खासकर धंड वेटलैंड के पर्यावरण पारिस्थितिक तंत्र के साथ परिंदों और यहां के स्थानीय बाशिंदों के बीच स्थापित पर्यावरण मैत्री पूर्ण संबंध पर्यावरण संरक्षण का अपने आप में एक अनूठा उदाहरण है जिसे ऐसे ही दूसरे वेटलैंड संरक्षण के लिए अन्य स्थानों पर अपनाया जा सकता है। शोध की अनुशंसाओं में यह सुझाव भी दिया गया है कि मेनार गांव के वेटलैंड्स का उपयोग इको टूरिज्म बढ़ाने के लिए भी समुचित कार्य योजना बनाकर करना चाहिए जो यहां के स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार का अच्छा माध्यम बन सकता है।

पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार मेनार गांव के के यह दोनों जलाशय वेटलैंड संरक्षण में अपना विशिष्ट स्थान रखने के कारण इनके समुचित रखरखाव एवं संरक्षण के लिए तकनीकी रूप से सक्षम कार्य योजना बनाकर इनका समुचित विकास करने की आवश्यकता है जिससे इन वेटलैंड्स की नैसर्गिकता कायम रहते हुए यह चिरकाल तक अभ्यागत पक्षियों के आकर्षण का केंद्र बने रहें तथा इनके माध्यम से परिंदों के बारे में जन साधारण में पर्यावरण संरक्षण का संदेश प्रसारित किया जाए। जानकार लोगों का मानना है कि इन दोनों महत्वपूर्ण इंपॉर्टेंट बर्ड साइट्स के जलीय पर्यावरण में परिंदों के लिए उपलब्ध विभिन्न प्रकार के भोज्य जीवों यथा जलाशय के पेंदे में पाए जाने वाले बेनथास अथवा नितलक जीव(घोंघें ,जलीय कीट ) ,सूक्ष्म एवं दीर्घ वनस्पति के साथ-साथ वेटलैंड्स में पाए जाने वाली विभिन्न प्रकार की मत्स्य प्रजातियों की पहचान पर भी आगे अनुसंधान करने की आवश्यकता है जिससे इन जलाशयों के संपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र का वैज्ञानिक आकलन कर विभिन्न आयामों के मध्य अंतर अंतर्संबंध स्थापित किया जा सके।


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