श्रीकृष्ण का विग्रह शैशव स्वरूप होने से भक्ति का प्रमुख केंद्र है मदन मोहन मंदिर

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Published on : 16 Sep, 20 04:09

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा

श्रीकृष्ण का विग्रह शैशव स्वरूप होने से भक्ति का प्रमुख केंद्र है मदन मोहन मंदिर

वैष्णव मत के मंदिरां की श्रृंखला में भगवान कृष्ण को समर्पित मदन मोहन जी का मंदिर राजस्थान की राजधानी जयपुर से 182 किलो मीटर दक्षिण पूर्व में करोली जिला मुख्यालय पर स्थित है। राजस्थान में कृष्ण के अनेक मंदिरों में मदन मोहन मंदिर भी अपना विशेष स्थान रखता है। यह मंदिर भी वैष्णव पद्धति के अनुरूप हवेली में ही बनाया गया है, जो करोली महल का एक हिस्सा है। मदन मोहन जी मंदिर का गर्भगृह तीन खण्डो में विभक्त है। मध्य में वेदी पर कृष्ण स्वरूप में मदन मोहन जी विराजते है तथा उनके दांई ओर के खण्ड में राधा एवं ललिता देवी साथ-साथ हैं तथा बांई ओर वेदी पर गोपाल जी कृष्ण स्वरूप में विराजमान हैं। मध्य भाग में एन्टिक महत्व की भगवान कृष्ण की मूर्ति तीन फुट एवं राधा की मूर्ति दो फुट ऊंची अष्ट धातु की हैं। ये मूर्तियां एंटिक है। मंदिर में विराजमान श्री कृष्ण का विग्रह शैशव स्वरूप होने के कारण भक्ति का प्रमुख स्त्रोत हैं।     

             मंदिर के गर्भगृह के चक्करदार परिपथ पर चित्रों की बड़ी श्रृंखला नजर आती है। गर्भगृह, चौंक एवं विशाल जगमोहन वास्तुकलां एवं सुन्दरता के अद्भुत नमूने हैं। मंदिर का निर्माण करोली के पत्थरों से किया गया, जिसमें मध्ययुगीन कलां के दर्शन होते हैं। मंदिर को बनाने में 2 से 3 वर्ष का समय लगा। मंदिर के प्रवेश द्वार से गर्भगृह के बीच लम्बा चौबारा हैं। गर्भगृह में सुन्दर नक्काशी का काम देखते ही बनता है। गर्भगृह के सामने चौक में अनेक छोटे-छोटे मंदिर एवं मूर्तिया बने हैं। सम्पूर्ण परिसर में धार्मिक देवी-देवाताओं एवं भगवान श्री कृष्ण के कथानकों के आधार पर बडे-बडे आकर्षक चित्र बनाये गये हैं। इस चौंक की दिवारों की शिल्प कलां मन मोह लेती है। रात्रि में जब चांदनी रात होती है तो मंदिर का सौन्दर्य अतुल्य होता है। यह मंदिर वर्तमान में देवस्थान विभाग के अधीन नियंत्रित है।               मंदिर में 5 बार भोग लगाया जाता है, जिसमें दोपहर का राजभोग एवं सायंकाल शयन भोग प्रमुख हैं। विशेष अवसरों पर छप्पन भोग भी लगाया जाता है। प्रातः 5 बजे मंगला आरती, 9 बजे धूप आरती, 11 बजे श्रृंगार आरती, दोपहर 3 बजे धूप आरती एवं सायं 7 बजे संध्या आरती की जाती है। मंदिर प्रातः 5 बजे से रात्री 10 बजे तक खुला रहता है। मंदिर का सबसे प्रबल एवं मूलाधार उत्सव मदन मोहन जी का मेला है जो अमावस्या पर आयोजित किया जाता है। मंदिर में आयोजित जन्माष्टमी, राधा अष्टमी, गोपाष्टमी एवं हिण्डोला उत्सवों में सैलानी भी बड़ी संख्या में भाग लेते है।                  मदन मोहन जी की प्रतिमा मूल रूप से वृंदावन में कालीदह के पास द्वादशादित्य टीले से प्राप्त हुई थी। वृंदावन पर औरंगजेब के हमले के दौरान मूल मंदिर के शिखर (शिखर) ध्वस्त किया गया था। मुगलों के आक्रमण के समय सुरक्षा की दृष्टि से मूर्ति को जयपुर ले जाया गया था। करोली के मंदिर का निर्माण यहां के राजा गोपाल सिंह ने 1725 ई. में करवाया था। बताया जाता है कि दौलताबाद पर विजय के बाद महाराजा गोपाल सिंह को सपना आया जिसमें उन्हें मदन मोहन जी ने कहा कि मुझे करोली जे चलों तब मदन मोहन की प्रतिमा को जयपुर के आमेर से लाकर यहां करोली में स्थापित किया गया। महाराजा गोपाल सिंह ने मुर्शिदाबाद के रामकिशोर को मंदिर सेवा का प्रथम प्रभार सोंपा था। इसके बाद मदन किशोर यहां के गुसाई रहे। उस समय करोली के मंदिर को राजघराने की ओर से अचल सम्पति प्रदान की गई। जिससे 18वीं सदी में 27 हजार रूपया सालना आय होती थी।


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