साहित्य संस्थान  द्वारा आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संस्कृत संगोष्ठी

( 19266 बार पढ़ी गयी)
Published on : 04 Aug, 20 04:08

साहित्य संस्थान  द्वारा आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संस्कृत संगोष्ठी

जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर के संघटक  साहित्य संस्थान  द्वारा आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संस्कृत संगोष्ठी भारतीय समाज में संस्कृत की उपयोगिता एवं संदर्भ मां सरस्वती वंदना से प्रारंभ की गई

कार्यक्रम के अध्यक्ष पद पर विराजमान माननीय कुलपति प्रो, (कर्नल) एस.एस. सारंगदेवोत ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि संस्कृत सर्वव्यापी है जो भी हम दिन भर में गतिविधियां करते हैं उसमें संस्कृत का उपयोग होता है। स्थानीय भाषा का होना बहुत ही जरूरी है और भाषा में भाव होना बहुत ही जरूरी है जो केवल संस्कृत से ही आता है। सभ्यता, संस्कृति, खान-पान, रहन-सहन, भाषा आदि स्वीकार करते हैं, तभी हम भारतीय की बात कर सकते हैं जब तक हमारे संस्कारों को नहीं अपनाएंगे, तब तक हम देश के नागरिक नहीं हो सकते, तब तक देश के लिए आत्मीयता नहीं बना सकते। और भाषा से ही संस्कृति बनती है हमारे संस्कृत में अनेक  ग्रंथ हैं जिसमें ज्ञान है संस्कृत का पोषक होना जरूरी है हम संस्कृत को भूल चुके हैं जिसका परिणाम समाज में अनेक बुराइयां देख रहे हैं निश्चित रूप से संस्कृत का अपनाना होगा। साथ ही हमारे वेद, उपनिषद को अपनाने की जरूरत है आदि पर विचार व्यक्त की है

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ उपेंद्र भार्गव, सहायक आचार्य, ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा हमारे यहां शादी विवाह का कार्यक्रम होता है तो हम उस पुन्य कार्य को करने के लिए वेद मंत्रों का उच्चारण करते हैं किसी वैदिक ब्राह्मण को बुलाते हैं वह मंत्रों के विधान से धर्म कार्य को संपन्न करता है लेकिन हमारे शास्त्रों में यह परंपरा भी कही गई है जहां पर वेद मंत्रों के माध्यम से कार्य को संपन्न किया जाता है उतना ही महत्व विवाह में वृद्ध महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले मंगल कार्य है उसमें जो मूल भावना है वह मूल भावना ही वेदों की बात प्रकट करती है हमें सिखाती है हम संस्कृत भाषा की उपयोगिता एवं संदर्भ से हम समाज में देख सकते हैं आदि पर विचार व्यक्त किए।

कार्यक्रम के सारस्वत वक्ता डॉ पंकज लक्ष्मण जानी कुलपति, संस्कृत पाणिनि विश्वविद्यालय उज्जैन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि संस्कृत केवल भाषा ही नहीं संपूर्ण राष्ट्र में ज्ञान-विज्ञान है। वह केवल संस्कृत में ही निहित है। योग नागरिक वार्ता, निर्माण, आधुनिक ज्ञान-विज्ञान वार्ता आदि में ही नहीं सभी में संस्कृत निहिते है संस्कृत में क्या नहीं है सब कुछ है किसी भी क्षेत्र, भाषा, अर्थशास्त्र हो ,कर्मकांड हो, पुरोहित हो, ज्योतिष और वास्तु शास्त्र हो, खगोल शास्त्र हो, चिकित्सा, आयुर्वेद, मेडिकल, साइंस हो गणित हो कोई भी क्षेत्र हो  संस्कृत वहां पर होगी या देखी जाएगी। संस्कृत की शुरुआत वेदों से है आज का संस्कृत साहित्य देखिए भारतीय जीवनशैली हमारा संस्कार संस्कृति भारतीय जीवन शैली है यह सब संस्कृत की ही देन है आदि पर विचार व्यक्त किए।

संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रो. श्रीनिवास बरखेड़ी, कुलपति, कविकुलगुरू कालिदास विश्वविद्यालय, रामटेक ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत की भाषा  सभी भाषाओं की जननी है और सभी भाषाएं अपने आप में प्रबुद्ध है उसका स्वयं जन्म होता है लेकिन यह माता के समान है सभी भाषाओं की पोषक माता संस्कृत भाषा ही है क्योंकि संस्कृत के पोषण के बिना चाहे तमिल, कन्नड़ हो, हिंदी हो वह पोषण करने वाली भाषा केवल संस्कृति है  भारत की आत्मा संस्कृत है आदि पर अपने विचार व्यक्त किए।

स्वागत उद्बोधन करते हुए प्रो. जीवन सिंह खर्कवाल, निदेशक साहित्य संस्थान ने साहित्य संस्थान का परिचय देते हुए सभी विद्वजनो का स्वागत किया।

संगोष्ठी   के अंत में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ. महेश आमेटा ने सभी विद्वान जनों को आभार व्यक्त करते हुए कहा कि अगला व्याख्यान दिनांक 9.8 .2020 को पंडित नंदकिशोर  पुरोहित अपने विचार व्यक्त करेंगे। और साथ ही सभी तकनीकी समन्वयक डॉ. चंद्रेश छतलानी , श्री के. के. कुमावत, घनश्याम जी आदि का आभार व्यक्त किया।

कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर कुल शेखर व्यास ने किया, तकनीकी संचालन डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी ने किया ।


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.