कोटा | शिशु के अच्छे स्वास्थ्य, बीमारियों से लड़ने की क्षमता पैदा करने, कुपोषण से बचाने एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने में आवश्यक रूप से शिशु को मां का स्तनपान कराना एक प्रभावी उपाय है। विज्ञान का भी सन्देश है कि शिशु के जन्म के तुरंत बाद ,अधिक से अधिक एक धंटे के भीतर नवजात को स्तनपान कराने पर शिशु मृत्यु दर को काफी कम किया जा सकता हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो नवजात शिशु के लिए माँ के स्नत का पहला पीला गाढ़ा चिपचिपा दूध सम्पूर्ण आहार होता है जिसमें कोलेस्ट्रम की भरपूर मात्रा होती है। उसके मुताबिक 6 माह तक शिशु को नियमित स्तनपान कराया जाना चाहिये। चिकित्सकों का कहना है स्तनपान से माँ के स्वास्थ्य पर किसी प्रकार का विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।
माँ नो महीने बच्चे को गर्भ में सहेजती है और कठिन प्रसव पीड़ा सहन कर जन्म देती है। नवजात शिशु स्वाथ्य रह कर बड़ा हो और देश का जिम्मेदार नागरिक बने इसके लिए उसे माँ अपना पहला पीला दूध जरूर पिलाये। कोटा में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अमित गोयल का कहना है माँ का दूध प्रारंभिक अवस्तग में शिशु को दस्त एवं तेज श्वसन संक्रमण से बसाहट है। शिशु को मोटापे से सम्बंधित रोगों,मधुमेह और ह्रदय रोगों से बचा कर शिशु मृत्यु दर में कमी लाता है। माँ को भी स्तन और अंडाशय के कैंसर,मधुमेह एवं ह्रदय रोग होने के खतरों को कम करता है। माँ एवं बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए स्तनपान लाभकारी है।
स्तनपान को बढ़ावा देने के लिये प्रतिवर्ष 1 अगस्त को स्तनपान दिवस के साथ स्तनपान सप्ताह का आयोजन कर विविध आयोजनों के माध्यम से जाग्रति उतपन्न की जाती है। केंद्र एवं राज्यों की सरकारें निरन्तर इसके लिये शहरों से लेकर दूरस्त गांवों तक आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से प्रयास कर रही हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता महिलाओं को बच्चे को स्तनपान कराने के लिए निरन्तर प्रेरित करती हैं। सरकारी एवं निजी स्तर के सम्मिलित प्रयासों का ही परिणाम है कि स्तनपान के प्रति रुझान बढ़ रहा है और शिशु मृत्यु दर में भी कमी दर्ज हुई हैं।
अभी भी इस दिशा में बहुत कुछ किये जाने की जरूरत महसूस की जा रही हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की माने तो स्तन पैन के मामले में दिल्ली,पंजाब,उत्तराखंड,उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान में स्थिति अभी भी निराश ही करती हैं। मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि एक घण्टे के भीतर स्तनपान कराने,6 महीने थ विशेष एवं 9 माह तक पूरक स्तनपान कराने की दर बहुत कम हैं। उत्तर प्रदेश में यह दर सबसे नीचे के स्तर पर है। मणिपुर, ओडिसा, सिक्किम एवं मिजोरम में स्तनपान की दर सबसे ऊपर हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि यदि स्तनपान में सार्वभौमिक स्तर पर वृद्धि होती है तो प्रतिवर्ष करीब 8.20 लाख बच्चों की मृत्यु को टोका जा सकता हैं जून में बड़ी संख्या 6 माह से कम आयु के बच्चों की हैं।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट आंखें खोलने को काफी है जिसमें बताया गया है कि भारत मे बच्चे के जन्म के एक घण्टे के भीतर केवल 44 फीसदी बच्चों को ही माँ का पहला दूध मिल पाता हैं। यह तथ्य इंगित करता है कि स्वास्थ्य से जुड़े इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर इस रिक्तता को भरने के लिए कितना कुछ किया जाना बाकी है। कोटा की गानोलॉजिस्ट डॉ. रुचि गोयल का कहना है कि बावजूद सलाह के अधिकांश माताएं बच्चे को अपना दूध पिलाना बंद कर देती हैं और गांय या भैंस का दूध या फिर बाजार का डिब्बा बंद दूध देना शुरू कर देती हैं। कई महिलाओं का मानना होता है कि बच्चे को अपना दूध पिलाने से उनका फिगर बिगड़ जायेगा। वे कहती हैं यह मानना किसी भी तरह से उचित नहीं है कि माता के स्वास्थ्य या शारीरिक रूप से शिशु को दूध पिलाने से प्रभाव पड़ेगा।इस मिथ्या धरना को दूर करना होगा। कुछ माताएं नोकरी या अन्य काम पर जाने की वजह से बच्चे को अपना दूध नहीं पिला पाती हैं।
कह सकते हैं कि स्तनपान को व्यापक रूप से बढ़ावा देने, मिथ्या अवधारणाओं को दूर करने, स्तनपान से शिशु एवं माता को मिलने वाले लाभों की जनजागृति उत्पन्न करने की दिशा में अभी भी बड़े पैमाने पर सरकार और समुदाय के महत्ती सम्मिलित प्रयासों की आवश्यकता है। माताओं को कार्यस्थल पर अपने शिशुओं को स्तनपान कराने का वातावरण तैयार करना होगा। स्तनपान जाग्रति का कार्य वर्ष में केवल एक दिन या एक सप्ताह के आयोजन से होने वाला नहीं हैं वरण इसके लिए वर्षभर सतत प्रयास करने होंगे।