महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय ने राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के अंतर्गत संचालित तरल जैव उर्वरक इकाई के लिए एन एम बायोटेक इंडिया एलएलपी के साथ द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये। एन एम बायोटेक इंडिया की ओर से मेहुल पाटीदार तथा एमपीयूएटी की ओर से अनुसंधान निदेशक डॉ ए के मेहता ने समझौते पर हस्ताक्षर किये।
इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति डा नरेन्द्र सिंह राठौड़ ने दोनों पक्षों को बधाई देते हुए कहा कि हमारे प्रदेश में मृदा की खराब उर्वरता के मद्देनजर जैविक खाद की बहुत जरूरत है। यद्यपि हम विगत वर्षों में खाद्यान्न उत्पादन में आत्म निर्भर हो गए हैं] विगत वर्षं हमने 992 लाख हैक्टेयर कृषि भूमि से 2820 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन किया है तथापि हम चीन व अमेरिका से बहुत पीछे हैं जहॉं 625 व 500 लाख है भूमि से 4880 व 3880 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन हो रहा है। इन देशों में खेती में रासायनिक खाद व कीटनाशकों का भी भरपूर प्रयोग होता है परन्तु मृदा की उर्वरता भी बनाये रखी जाती है। मृदा में उचित उत्पादन हेतु 3 प्रतिशत सूक्ष्म जीव एवं 0-9 प्रतिशत जैविक कार्बन होना आवश्यक है परन्तु वर्तमान में इसकी स्थिति 0-1 तथा 0-4 प्रतिशत ही है जिसका हमारे कृषि उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उन्होंने बताया कि हमारे विश्वविद्यालय में विकसित तरल जैव उर्वरकों के प्रयोग से क्षेत्र की मृदा में उर्वरता को प्रभावशाली तरीके से बढ़ाया जा सकता है जिससे हमारे किसान भाइयों को कृषि उत्पादन में वृद्धि से आर्थिक लाभ होगा।
इस अवसर पर अनुसंधान निदेशक डा. अभय कुमार मेहता ने स्वागत करते हुए बताया कि लगभग 25 लाख रूपये की लागत से स्थापित इस इकाई से वार्षिक 25 लाख रूपये का राजस्व विश्वविद्यालय को मिलेगा। उन्होंने राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के अंतर्गत स्थापित राजस्व अर्जन में सक्षम इकाई को विश्वविद्यालय का अभिनव प्रयास बताया। इस अवसर पर क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक डा. एस. के. शर्मा ने बताया कि एमपीयूएटी में विकसित इस तरल जैविक खाद के व्यावसायिक उत्पादन से स्टार्टअप व स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध हुए हैं। इस अवसर पर एन एम इ्डिया बायोटेक के निदेशक श्री मेहुल पाटीदार ने बताया कि एमपीयूएटी के गुणवत्तापूर्ण उत्पाद से प्रेरणा लेकर एक स्टार्टअप इकाई के अंतर्गत प्रोम खाद के व्यावसायिक उत्पादन में इस तरल जैव उर्वरक का प्रयोग करने के लिये ये द्विपक्षीय समझौता किया गया है।
राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के अंतर्गत स्थापित तरल जैव उर्वरक इकाई के मुख्य अन्वेषक डा देवेन्द्र जैन ने बताया कि इस इकाई के माध्यम से एजोटोबैक्टर] राइजोबियम एवं मिश्रित जैव उर्वरकों की व्यावसायिक उत्पादन तकनीक विकसित की गई है जिससे भूमि की उर्वरता बढ़ाई जा सकती है। इस प्रकार एमओयू के माध्यम से इन उर्वरकों की उपलब्धता प्रदेश के अनेक किसानों को हो सकेगी।
इस बैठक में एमपीयूएटी के डीआरआई डा बी. पी. नंदवाना डीन आरसीए डा. अरूणाभ जोशी डीन सीटीएई डा अजय कुमार शर्मा, डीन फिशरीज डा एस के शर्मा, परीक्षा नियंत्रक डा. सुनील इंटोडिया ओसडी डा. वीरेन्द्र नेपालिया, कुलसचिव श्रीमती कविता पाठक तथा नियंत्रक डा संजय सिंह तथा एन एम इ्डिया बायोटेक के श्री सौरभ भी उपस्थित थे।
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