“आजादी के आन्दोलन में सक्रिय माता विद्यावती शारदा का संक्षिप्त परिचय”

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Published on : 14 Jul, 20 04:07

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“आजादी के आन्दोलन में सक्रिय माता विद्यावती शारदा का संक्षिप्त परिचय”

डा. स्वामी गुरुकुलानन्द सरस्वती कच्चाहारी जी आर्यसमाज के एक प्रमुख संन्यासी एवं ऋषिभक्त वेदानुयायी सन्त हैं। आप पिथौरागढ़-उत्तराखण्ड में रहते हैं। वहां आप मुख्य चिकित्साधिकारी के पद पर कार्यरत रहे हैं। वर्तमान में भी आप क्षय रोगियों व अन्यों की सेवाभाव से चिकित्सा करते हैं। माह अप्रैल, सन् 2019 में महात्मा हंसराज जन्म दिवस के अवसर पर पुणे के एक डी.ए.वी. स्कूल एवं कालेज में स्वामी जी का डी.ए.वी. स्कूल एवं कालेज कमिटी, दिल्ली की ओर से अन्य 20 ऋषिभक्तों के साथ सम्मान हुआ था। इस अवसर पर हम भी पुणे पहुंचे थे और पहली बार उनके सम्पर्क में आये थे। स्वामी जी ने अपना कुछ साहित्य हमें भेंट किया था। इस साहित्य में उनकी एक पुस्तक ‘‘भारत में अंग्रेजी साम्राज्य और स्वतन्त्रता संग्राम” पुस्तक भी है। आजकल हम इस पुस्तक को पढ़ रहे हैं। यह पुस्तक देश की आजादी के आन्दोलन एवं आर्यसमाज विषयक एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसमें अध्याय 9 में स्वतन्त्रता के दीवाने शीर्षक से 61 देशभक्त वीर स्वतन्त्रता सेनानियों का परिचय दिया गया है। इसमें अनेक ऐसे नाम हैं जो आर्यजगत के स्वाध्यायशील पाठकों की जानकारी में शायद न हों। आर्य व इतर सभी देशभक्तों को इसमें स्थान दिया गया है। वीर सावरकर तथा चन्द्रशेखर आजाद भी इस परिचय में सम्मिलित हैं। यह पुस्तक सभी को पढ़नी चाहिये। यदि किसी पाठक को इस विषय में कुछ जानना हो तो वह स्वामी गुरुकुलानन्द सरस्वती जी से उनके मोबाइल फोन न. 9997710311 पर बात कर सकते हैं। अब हम पुस्तक से माता विद्यावती शारदा जी का परिचय कुछ सम्पादन के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं।

                माता विद्यावती का जन्म 1 अगस्त, 1901 को आनन्दी नियामत सिंह आर्यसमाजी जी के गृहस्थाश्रम ग्राम टोपरी (सहारनपुर) उत्तर प्रदेश में हुआ था। शारदा निकेतन, ज्वालापुर से शिक्षा प्राप्त कर, विद्यावती शारदा जी राजनीतिक क्षेत्र में उतर पड़ी। धारा प्रवाह भाषण और कर्मठता के आधार पर आपको जिला कांग्रेस का महासचिव चुना गया।

                   माता विद्यावती जी ने क्रान्तिकारी पं0 गयाप्रसाद शुक्ल को पति के रूप में वरण किया था। शहीद भगतसिंह जी उन्हीं दिनों लाल सिंह के छद्म नाम से इनके घर टोपरी में रहे। ब्रिटिश अत्याचारों के शिकार बन, सन् 1932 में गया प्रसाद ने अपने प्राण त्याग दिये। इस वज्रपात के बाद माता विद्यावती ने नारियों में स्वाधीनता की लहर उत्पन्नत करने हेतु सन् 1935 में नाहन (हिमाचल) में शारदा-निकेतन की स्थापना की। इसके बाद सन् 1936 में कन्या महाविद्यालय में आपको प्राध्यापिका पद पर नियुक्त किया गया।

                अपने दिवंगत पति की जन्मभूमि बीधापुर (उन्नाव) में जनसेवा का विचार आने पर, माता विद्यावती ने बड़ोदा से विदाई ली। उन्नाव जिले में कन्या-शिक्षा आदि हेतु जनसेवा आरम्भ कर दी। आपको सन् 1937 में आनेरेरी मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया।

                सन् 1940 में मातृशक्ति सदन के संचालन हेतु माता विद्यावती जी को कनखल (हरिद्वार) आना पड़ा। स्वाधीनता संघर्ष हेतु सन् 1942 में प्रदेश कांगे्रस महिला सम्मेलन-अलीगढ़ में अध्यक्षता हेतु आपको आमन्त्रित किया गया।

                माता विद्यावती जी स्वतन्त्रता संग्राम में कई बार जेल गयी। अपने एक मात्र पुत्र भारतेन्दुनाथ को गुरुकुल शिक्षा समाप्ति पर सारा जीवन देश व धर्म हेतु समर्पित करने की भी उन्होंने प्रेरणा दी। कीर्तिशेष भारतेन्दुनाथ जी ने वेदभाष्य प्रकाशन का शुभारम्भ किया। स्वामी गुरुकुलानन्द कच्चाहारी भी वेद भाष्य के ग्राहक बने। तब स्वामी गुरुकुलानन्द कच्चाहारी जी मेडिकल कालेज, कानपुर के छात्र थे।

                सन् 1944-45 में माता विद्यावती शारदा जी पंजाब आर्यसमाज की उपदेशिका रहीं। .2 अगस्त, 1946 को स्वतन्त्र भारत को देखने से पहले विद्यावती शारदा ने इहलोक को छोड़ दिया।

                माता पं. राकेशरानी जी, दिल्ली ऋषिभक्त पं. भारतेन्द्रनाथ जी की धर्मपत्नी थी। तीन महीने पहले दिनांक 9 अप्रैल, 2020 को उनका दिल्ली में लम्बी बीमारी के बाद निधन हुआ है। वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करने के बाद भारतेन्द्र नाथ जी का नाम महात्मा वेदभिक्षु हुआ। उन्होंने दिल्ली में दयानन्द संस्थान तथा जनज्ञान प्रकाशन की स्थापना की थी। उनके द्वारा मासिक पत्रिका ‘‘जनज्ञान” का प्रकाशन भी आरम्भ किया गया था जो वर्तमान में भी जारी है। वर्तमान में महात्मा वेदभिक्षु जी की पुत्री दिव्या आर्या जी इसका प्रकाशन करती हैं। यह आर्यजगत की उच्च कोटि की पत्रिका है। वैदिक धर्म एवं देशभक्ति पर इस पत्रिका में प्रचुर सामग्री मिलती है। महात्मा जी ने हिन्दू रक्षा समिति भी बनाई थी। इन सब संस्थाओं के द्वारा उन्होंने वैदिक धर्म, आर्यसमाज तथा हिन्दू जाति की रक्षा सहित वेद प्रचार के अनेकानेक प्रशंसनीय कार्य किये। महात्मा वेदभिक्षु जी की पांच पुत्रियां हुईं। परोपकारिणी सभा के यशस्वी प्रधान कीर्तिशेष धर्मवीर जी महात्मा जी के जामाता थे। नोबल पुरस्कार प्राप्त श्री कैलाश सत्यार्थी जी भी महात्मा वेदभिक्षु जी के जामाता हैं। हमारा सौभाग्य है कि हमने सन् 1983 में ऋषि निर्वाण शताब्दी वर्ष में देहरादून के आर्यसमाज धामावाला के बाहर उनके तथा परोपकारिणी सभा के तत्कालीन मंत्री श्री श्रीकरण शारदा जी के दर्शन किये थे। उनके परस्पर तथा आर्यसमाज के प्रधान से वार्तालाप को भी सुना था। वेदमन्दिर, दयानन्द संस्थान तथा जनज्ञान प्रकाशन खूब फले फूले, यह हमारी कामना है। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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