नईं दिल्ली। आर्थिक सुस्ती और लॉकडाउन के दौरान सबसे ज्यादा घाटा उठाने वाले व्यवसायों में न्यूज पेपर इंडस्ट्री भी शामिल है। इस साल इस इंडस्ट्री को लगभग 15 हजार करोड़ रुपए के घाटे की आशंका है।
दरअसल सरकारी एवं निजी विज्ञापन अखबारों की आय का प्रामुख रत्रोत हैं।
कोरोना के चलते आर्थिक गतिविधियां लगभग ठप हो चुकी हैं और सरकारी एवं निजी दोनों ही क्षेत्रों से मिलने वाले विज्ञापनों की संख्या नगण्य हो चुकी है। पहले लग रहा था कि लॉकडाउन लागू होने के दो-तीन महीनों बाद हालात ठीक होने लगेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पिछले दिनों जब प्राधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का नवम्बर तक विस्तार किया गया तो यह स्पष्ट हो गया कि कोरोना का प्राभाव अभी लंबे समय तक रहने वाला है। इससे न्यूज पेपर इंडस्ट्री में दहशत का आलम है क्योंकि सरकारी विज्ञापनों के लिए नियमित रूप से अखबारों का प्राकाशन एक बाध्यता है। नियमित रूप से अखबार छापने पर अच्छा-खासा खर्च आता है जबकि आमदनी खर्च के मुकाबले काफी कम हो रही है।