महामारी से आम जन को सबक लेने की आवश्यकता - प्रो. सारंगदेवोत

( 12035 बार पढ़ी गयी)
Published on : 02 Jun, 20 11:06

महामारी से आम जन को सबक लेने की आवश्यकता - प्रो. सारंगदेवोत

उदयपुर / जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डिम्ड टू बी विवि के संघटक साहित्य संस्थान की ओर से ‘‘ महामारी, देशकाल और साहित्य ’’ विषयक पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि विश्व हर 100 वर्ष में महामारी का आगमन हुआ है, 1720 में द ग्रेट प्लेग ऑफ मार्सेल, 1820 में एशियाई देशो में हेजा, 1920 में स्पेनिश फ्लु, 1453 में तुर्की में महामारी व 2020 में कोरोना जैसी महामारी का आगमन हुआ है। इन महामारी से आम जन को सबक लेने की आवश्यकता है। कोरोना महामारी हमारी मानसिकता को तीन तरह से प्रभाावित कर रही है - हम कैसे सोचते है, हम कैसे दूसरो के साथ जुडते है व हम किसे महत्व देते है। वैश्विक महामारिया अपने समय और भविष्य को प्रभावित करती आई है और करती रहेगी। समाज और साहित्य भी इससे अछूता नही रहा है। दुनिया जब किसी विपदा में घिरी है तो संास्कृतिक अभिव्यक्तियो  पर महामारियों का असर हुआ है। हम विकास के दौर में दिनो दिन प्रकृति का दोहन करते जा रहे है जिसका ही परिणाम है कि प्रकृति भी अपना विकराल रूप ले रही है। हमें पुनः प्रकृति की तरफ लौटना होगा और आम जन को संकल्प के साथ पौधा रोपण कर उसका पुनः श्रृंगार करना होगा। राष्ट्रीय कवि अजात शत्रु ने कोरोना पर अपनी व्यंगात्मक कविता का पाठ करते हुए कहा कि कोरोना महामारी में कमियों को उजागर करने का जिम्मा साहित्यकारों का है। संगोष्ठी में राष्ट्रीय पत्रकार शेष नारायण सिंह, अलवर के डॉ. जीवन सिंह , जोधपुर के डॉ. आईदान सिंह भाटी, किशन दाधीच, वर्धा के डॉ. सुरज पालीवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्य समाज में चेतना व जागृति पैदा करता है। साहित्य समाज का दर्पण है। साहित्य जो भी देशकाल परिस्थिति में अनुभव करता है वही रेखांकित करता है। सौम्य जीवन जीये - आशावादी बने। जीवन से प्रेम करना सीखे। संचालन डॉ. उग्रसेन राव ने किया  जबकि तकनीकी समन्वय डॉ. चन्द्रेश छतवानी, डॉ. तरूण श्रीमाली ने किया।

 


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.