कोरोना संक्रमण से बचाव व रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने बनाई औषधि

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Published on : 28 May, 20 03:05

इम्यूनिटी बूस्टिंग करेंगे तीन विशेष औषध योग

कोरोना संक्रमण से बचाव व रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने बनाई औषधि

उदयपुर / कोरोना संक्रमण से बचाव और रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोत्तरी के उद्देश्य को लेकर अब उदयपुर के मदन मोहन मालवीय राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय ने पहल की है और महाविद्यालय के विशेषज्ञों की समिति द्वारा रोग प्रतिरोधक क्षमता में अभिवृद्धि (इम्यूनिटी बूस्टिंग) हेतु आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से निर्मित तीन प्रकार के विशेष औषध योग तैयार किये हैं।
महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. महेश दीक्षित ने बताया कि कोरोना संक्रमण से बचाव हेतु सामाजिक दूरी, व्यक्तिगत स्वच्छता एवं स्वअनुषासन के साथ-साथ आयुर्वेद औषधियों से संक्रमण से बचाव एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता में अभिवृद्धि की जा सकती है। आयुष मंत्रालय ने कॉविड-19 संक्रमण से बचाव हेतु तुलसी, सौंठ, दालचीनी, कालीमिर्च से निर्मित आयुष क्वाथ का प्रयोग, दूध में हल्दी का प्रयोग एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता अभिवृद्धि हेतु अश्वगंधा, गिलोय, मुलेठी, पिप्पली आदि रसायनद्रव्यों के समुचित एवं अनुकूलतम उपयोग हेतु गाइडलाइन जारी की गई है।
तीन औषध योग की 1500 किट तैयार:
प्रो. दीक्षित ने बताया कि प्रथम चरण में उदयपुर एवं आसपास के क्षेत्रों की जनता, कॉविड वारियर्स, पुलिस प्रषासन, मीडिया कर्मियों आदि सभी को तीन औषध योगों की 1500 किट, जिसमें नवरसायन योग, माउथ वॉश और नाक में डालने हेतु नेजल ड्रॉप का निर्माण महाविद्यालय की रसायनषाला में किया गया है। औषध किट में आयुष मंत्रालय द्वारा निर्देशित समस्त औषध योगों का अनुकूलतम मात्रा में प्रयोग किया गया है।
मार्गदर्शिका का आईजी और कलक्टर ने किया विमोचन:
दीक्षित ने बताया कि महाविद्यालय की विशेषज्ञों की समिति द्वारा औषधियों का निर्माण एवं एक मार्गदर्शिका तैयार की गई है वहीं महाविद्यालय द्वारा तैयार इम्यूनिटी बूस्टिंग के संबंध में एक प्रपत्र तैयार किया गया है, जिसमें दिनचर्या में आवश्यक सुधार कर स्वास्थ्य को सुदृढ़ किया जा सकता है। इस मार्गदर्शिका का पुलिस महानिरीक्षक बिनीता ठाकुर और जिला कलक्टर श्रीमती आनंदी ने विमोचन किया। दीक्षित ने इस दौरान आईजी व कलक्टर के साथ ही आरएनटी के प्राचार्य डॉ. लाखन पोसवाल को भी ये  औषधियांे सौंपी और इसके गुणधर्म व प्रयोग के बारे में अवगत कराया। उन्होंने बताया कि औषधियों का प्रयोग करने वाले सभी व्यक्तियों का डाटा संग्रहित किया जायेगा एवं औषध प्रयोग के पश्चात् उनमें हुये परिवर्तनों का डाटा भी रखा जायेगा। साथ ही महाविद्यालय द्वारा जारी मार्गदर्शिका उदयपुर के मुख्य स्थानों, बाजारों, सरकारी कार्यालयों इत्यादि में लगाई जाएगी। प्रत्येक औषध किट में भी यह मार्गदर्शिका साथ में दी जा रही है। प्रो. दीक्षित ने यह भी बताया कि प्रथम चरण की सफलता के पश्चात् यह औषधि महाविद्यालय के चिकित्सालयों में निःषुल्क उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जा रही है।  
ये औषधियां तैयार की:
मुखशोधक योग (माउथ वॉश)
प्रो. दीक्षित ने बताया कि हमारे पाचन और श्वसन पथ के प्रवेश द्वार मुंह की ओरल केविटि में 20 बिलीयन तक बैक्टीरिया हो सकते हैं जो कि बीमारियों का कारण बनते हैं।इनको नियन्त्रित करने के लिए आयुर्वेद में आचमन, कवल एवं गण्डूष का विधान बताया गया है। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए महाविद्यालय की विशेषज्ञ समिति द्वारा मुखषोधन (माउथ वॉष) के निर्माण का निर्णय गया है। इसके प्रयोग से गले और मुख में जमा कफ, जीभ और दाँतो में जमा हुआ मेल एवं मुँह की दुर्गन्ध व चिपचिपापन दूर हो जाता है। मुख के छाले, गले की खराश, टोंसिल्स, जी-मिचलाना, सुस्ती, अरुचि, जुकाम, गले एवं मुख के व्रण एवं जलन में लाभ होता है।
नवरसायन योग
रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर कोविड़-19 के संक्रमण से बचाने के लिए आयुर्वेद में रसायन द्रव्यों का वर्णन है। आयुष विभाग भारत सरकार, सी.एस.आई.आर. तथा आई.सी.एम.आर. कोविड़-19 के संक्रमण से बचाव व रोगप्रतिरोधक क्षमता वर्धन में आयुर्वेद में वर्णित रसायन द्रव्यों पर अनुसंधान कार्य प्रगति पर है। आयुष विभाग भारत सरकार द्वारा निर्देशित द्रव्यों के आधार पर महाविद्यालय की विशेषज्ञ समिति की अनुशंषा पर नवरसायन योग बनाया गया है। नवरसायन योग के घटकों में एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-इफ्लेमेंट्री, एंटी-बायोटिक एवं इम्यूनोमॉड्यूलेटर आदि गुण होने से यह संक्रमण को रोकने में एवं रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक हैं, ज्वर, जुकाम, खॉंसी, गले में खराष आदि, श्वसन संस्थान से संबंधित रोग जैसे गले के रोग, सांस लेने में कठनाई आदि, मानसिक तनाव को कम करने एवं अनिद्रा में लाभकारी है, पाचन संबधित रोग जैसे भूख न लगना, अपच आदि में कार्यकारी है, विषाक्त द्रव्यों को शरीर से बाहर निकालता है।
नस्यबिन्दु तैल (नेजल ड्रॉप)
दीक्षित ने बताया कि संक्रमण को रोकने, नासा श्लेष्मकला व श्वसन संस्थान को सुदृढ़ करने के लिए आयुर्वेद में नस्य विधि का उल्लेख किया गया है। औषध सिद्ध तेल से नस्य करने से नासा श्लेष्म कला सुदृढ़ हो जाती है जिससे बैक्टिरिया, वायरस, धूल कणों को शरीर में प्रवेश को रोकने में मदद मिलती है। इसी को दृष्टिगत रखते हुए महाविद्यालय की विशेषज्ञ समिति द्वारा तिल तैल को विधि विधान से मूर्च्छित कर नस्य के रुप में प्रयोग करने के लिए अनुमोदित किया है। इसके प्रयोग से टोक्सिंस या विषाक्त पदार्थो को बाहर निकाल कर रोगप्रतिरोधक शक्ति को बढता है। बार बार छींकें आना, नाक बंद होना, सर्दी जुकाम, नजला, साइनस, टोंसिल्स, सिरदर्द, मानसिक तनाव, अनिद्रा, अर्धावभेदक, बालों का झड़ना, बालों का सफेद होना आदि रोगों में लाभ करता है। यह नस्य बिन्दु प्रदुषण के दुष्प्रभावों से बचाता है।


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