के.डी.अब्बासी/कोटा. कोरोना के कहर में चिकित्सा सेवाएं चरमरा गई हैं। आंख में कील घुसने के बाद मांडलगढ़ निवासी आबिद मोहम्मद दो राज्यों के दो जिलों के सरकारी और निजी अस्पतालों में भटकता रहा, लेकिन ऑपरेशन करना तो दूर इलाज के लिए अस्पतालों ने दरवाजे तक नहीं खोले। ऐसे में कोटा के चिकित्सकों ने उसे यहां बुलाने के बजाय मेनाल जाकर उसका ऑपरेशन कर न सिर्फ आंख बचाई, बल्कि ऑपरेशन का खर्च और फीस भी नहीं ली।
मांडलगढ़ निवासी आबिद मोहम्मद बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का काम करते हैं। सोमवार को काम करते समय उनकी आंख में मोटी कील घुस गई और खून बहने लगा। परिचित उसे स्थानीय अस्पताल ले गए, लेकिन चिकित्सकों ने इलाज करने से ही हाथ खड़े कर दिए। बदहवास आबिद भीलवाड़ा के राजकीय चिकित्सालय पहुंचे, जहां चिकित्सकों ने आंख से कील तो निकाल दी, लेकिनऑपरेशन करने के बजाय दवाओं का पर्चा थमाकर रवाना कर दिया।
आबिद और उनका पूरा परिवार इस मुश्किल हाल में भीलवाड़ा से लेकर नीमच (मध्यप्रदेश) तक के अस्पतालों के चक्कर काटते रहे। सरकारी ही नहीं सात निजी अस्पतालों ने भी उनके लिए दरवाजे नहीं खोले। इसी दौरान वे गोमाबाई नेत्र चिकित्सालय नीमच पहुंचे। जहां से उन्हें कोटा जाने कहा गया, लेकिन कोरोना वायरस की भयावहता को देखते हुए कई चिकित्सकों ने मरीज को कोटा बुलाने से ही पल्ला झाड़ लिया।
परिचितों ने कोटा ने नेत्र विशेषज्ञ डाॅ. सुधीर गुप्ता से संपर्क साधा। डाॅ. गुप्ता उस इलाके में नेत्र शिविर लगाते रहते हैं। ऐसे में डाॅ. गुप्ता ने बिजौलिया जाकर आपरेशन करने का फैसला किया। वे सपोर्टिंग स्टाफ हर्षली, सीताराम पंकज, गिर्राज, जीतू और शाहरूख के साथ तड़के मैनाल के पास जोगणिया माताजी पहुंच कर आबिद की आंख का ऑपरेशन किया।
बड़ी बात यह है कि उन्होंने आबिद से अपनी और स्टाफ की फीस लेना तो दूर आपरेशन पर आया खर्च तक नहीं लिया। डाॅ. गुप्ता ने बताया कि ऐसे मामले में 24 घंटे के ऑपरेशन न होने पर आंख की रोशनी जा सकती है, लेकिन खुशी है कि आबिद की आंख बचा ली।