सुख प्राप्ति के लिये गृहस्थियों को बड़े बडे़ यज्ञ करने चाहियें: स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती

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Published on : 09 Mar, 20 07:03

मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून

सुख प्राप्ति के लिये गृहस्थियों को बड़े बडे़ यज्ञ करने चाहियें: स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती

वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून की पर्वतीय इकाई तपोभूमि में पिछले माह 18 फरवरी, 2020 से चतुर्वेद पारायण यज्ञ आरम्भ किया गया था। इसके साथ ही याज्ञिक साधको को प्रातः योग एवं ध्यान के साथ स्वाध्याय एवं चिन्तन-मनन का प्रशिक्षण भी दिया जाता था। 20 दिन यह यज्ञ चला जिसमें देश के कई स्थानों से यज्ञ प्रेमी साधकों ने भाग लिया। आज यज्ञ की पूर्णाहुति के साथ ही यह आयोजन सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती, स्वामी मुक्तानन्द जी तथा आचार्य आशीष दर्शनाचार्य सहित आश्रम के प्रधान मंत्री जी, आश्रम के धर्माचार्य पं. सूरतराम जी आदि के सम्बोधन हुए। सभी याज्ञिक एवं आश्रम प्रेमी अनेक स्त्री पुरुष युवक-युवती इस आयोजन में उपस्थित थे। पूर्णाहुति से पूर्व गायत्री महायज्ञ भी सम्पन्न किया गया। आयोजन में पधारी एक परिवार की बालिका देवना भी उपस्थित थी। आज उसका जन्म दिवस था। उसके जन्म दिवस परयज्ञ में आहुतियां दी गईं और उसके धर्मपारायणा बनने वैदिक जीवन व्यतीत करने की कामना की गई। यह चतुर्वेद पारायण यज्ञ आश्रम की भव्य एवं विशाल में स्थाई रूप से निर्मित पांच यज्ञवेदियों में किया गया।

   यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने सभी याज्ञिक स्त्री-पुरुषों से यज्ञ की परिक्रमा वा प्रदक्षिणा कराई। स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी ने यज्ञ प्रेमियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि गृहस्थियों को यदि सुख सम्पत्ति की इच्छा है तो उन्हें बड़े बड़े यज्ञ करने चाहिये। उन्होंने वेदों के आधार पर कहा कि पुरुषार्थ करने वालों के संकल्प सिद्ध होते हैं। परमात्मा सब यजमानों का मंगल एवं भद्र करें। उन्होंने याज्ञिकों की प्रशंसा करते हुए कहा कि आपने इस जंगल में आकर यहां रूखा-सूखा खाकर यज्ञ किया है। उन्होंने कहा, हे करुणासिन्धु परमेश्वर! आपकी दी गई शक्ति साधनों से हमने यज्ञ किया है। हमारा यह यज्ञ आपको अर्पण है। आप उदार हैं। हमें भी आप उदार बनाईये। स्वामी जी ने कहा कि देवों को देवत्व भी ईश्वर से ही प्राप्त होता है। आप कृपा करके हमें भी देव बनायें। हे ईश्वर! आपने सूर्य, पृथिवी संसार के सब पदार्थों को बनाया है। आपने ही हमें मनुष्य शरीर दिया है। संसार में आकर आपकी कृपा से ही हमें योग यज्ञ का मार्ग मिला है। हे ईश्वर! जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये यज्ञ आदि साधन भी आपने ही हमें सुलभ कराये हैं। आप हमारी अविद्या को कृपया दूर करें। आप हमें आत्मा के आवागमन भवसागर से निकालिये।

   हे ईश्वर! आप हमें मुक्ति प्रदान करें। आपकी सृष्टि में सुन्दर व्यवस्था से हमें सुख प्रेरणा मिलती है। हमारा देश लम्बे समय तक समस्त संसार का अग्रणीय रहा है। कुछ काल हम गुलाम भी रहे हैं। ऋषि दयानन्द हमारे देश में आये और हमें जगाया। उन्होंने अत्यधिक श्रम किया और हमारे लिये अनेक कष्ट उठाये। इन कार्यों को करते हुए उनका शरीर समाप्त हो गया। देश में पाखण्डों में वृद्धि निरन्तर जारी है। हे ईश्वर! हम आपसे देश समाज से अज्ञान को दूर करने की प्रार्थना करते हैं। आप कृपा करके देश में पुष्कल मात्रा में विद्वानों को उत्पन्न कीजिये। हमारा राष्ट्र उन्नति को प्राप्त हो। स्वामी जी ने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के व्यक्तित्व देशहित अनेकानेक कार्यों की भी प्रशंसा की। स्वामी जी ने कहा कि देश में अनेक लोग अकारण द्वेषवश उनका विरोध करते हैं। वह लोग उनका पतन चाहते हैं। हम सब देशवासी आपकी कृपा प्रेरणा से मोदी जी को सहयोग करें। वह राष्ट्र को सर्वोपरि मान कर चल रहे हैं। हम उनके विरोधियों का हर प्रकार से पराभव चाहते हैं। हे ईश्वर! हमारा देश सभी क्षेत्रों में उन्नति करे। आप हमारे देश में प्रबुद्ध व्यक्तियों को उत्पन्न करें। देश के सभी सज्जन लोग समृद्ध हों। सभी देशवासी ज्ञान विज्ञान से युक्त हों। सबके घरों में प्रेम रहे। सबको सुख, विद्या, ज्ञान तथा भक्ति दीजिये। आप हमारी सभी प्रार्थनाओं को स्वीकार करें। सबका मंगल कल्याण हो। इन शब्दों के साथ स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने अपनी ईश-प्रार्थना वाणी को विराम दिया।

  स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी के आशीर्वचनों के बाद यज्ञ प्रार्थना की गई। सभी यजमानों के प्रति यज्ञ के ब्रह्मा की ओर से आश्रम में धर्माधिकारी पं. सूरत राम शर्मा जी ने आशीर्वचनों को बोला जिसको सभी उपस्थित ऋषिभक्तों ने दोहराया। उन्होंने पहले स्वस्ति नः इन्द्रो वृद्धश्रवा मन्त्र का पाठ किया। उसके बाद वह बोले कि यजमान की सब कामनायें सत्य हों। उनकी कामनायें सफल पूर्ण हों। आश्रम के मंत्री जी ने इसके पश्चात कहा कि आश्रम ध्यान योग का उत्तम स्थान है। यहां जो भी साधक साधना करने आते हैं वह अनुभव करते हैं कि यहां के वातावरण में मन ईश्वर भक्ति ध्यान में अनायास आसानी से लगता है। उन्होंने सभी उपस्थित ऋषिभक्तों से आग्रह किया कि वह यहां परिवार के साथ आया करें जिससे यह स्थान वीरान बना रहे। उन्होंने कहा कि आप लोगों के समय समय पर यहां आने यहां पर रौनक होगी। आपके यहां आने से यज्ञ योग शिविरों के आयोजनों में हमारा उत्साहवर्धन होगा। आश्रम के मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी ने बताया कि हमने पूरे वर्ष की गतिविधियों का एक विवरण तैयार किया है जो आश्रम के कार्यालय के बाहर लगाया है। आप इसका अवलोकन करें और सभी कार्यक्रमों में भाग लें। शर्मा जी ने सभी लोगों को आश्वासन दिया कि आपके आश्रम में पधारने पर हम आपके लिये सभी प्रकार की व्यवस्था करेंगे। मंत्री जी ने सभी लोगों को आश्रम की मासिक पत्रिका ‘‘पवमान का अध्ययन करने की भी प्रेरणा की। मंत्री जी ने कहा कि आप पत्रिका के सदस्य बनेंगे तो इसके माध्यम से आश्रम की सभी गतिविधियों की जानकारी आपको मिला करेगी। श्री शर्मा ने लोगो ंको आश्रम को दान देने की भी प्रेरणा की। उन्होंने स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती एवं आश्रम के सहयोगी स्वामी विशुद्धानन्द जी के कार्यों की भी सराहना की और उनका धन्यवाद किया। शर्मा जी ने चतुर्वेद पारायण यज्ञ एवं शिविर में भाग लेने वालों का भी धन्यवाद किया और कहा कि आपका इस सहयोग के लिये धन्यवाद है। शर्मा जी ने स्वयं भी पूरे 20 दिन यज्ञ एवं अन्य सभी कार्यक्रमों में एक साधक के रूप में भाग लिया।

  सुप्रसिद्ध वैदिक विद्वान आचार्य आशीष दर्शनाचार्य ने अपने सम्बोधन में कहा कि परम पिता परमात्मा की कृपा से हमें इस यज्ञ में उपस्थित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने चतुर्वेद पारायण यज्ञ एवं पूरा शिविर सत्र किया है वह सब सौभाग्य के पात्र हैं। आप अपने अपने प्रकार से अपने घरों पर भी ईश्वर का ध्यान लगाते रहते हैं। आपने यहां रहकर गायत्री मन्त्र के जप का विशेष रूप से अनुष्ठान किया है। आचार्य जी ने कहा कि गायत्री मन्त्र अत्यन्त महत्वपूर्ण मन्त्र है। उन्होंने साधना की दृष्टि से गायत्री मन्त्र पर अपने विचारों को प्रस्तुत किया। आचार्य आशीष जी ने धर्मप्रेमी श्रोताओं को कहा कि आप गायत्री मन्त्र का परिचय महत्व दूसरों को भी समझायें। उन्होंने कहा कि गायत्री मन्त्र दो प्रकार का होता है। एक गायत्री मन्त्र महाव्याहृतियों से युक्त होता है। आचार्य जी ने कहा कि यजुर्वेद का 36/3 मन्त्र महाव्याहृतियों से युक्त मन्त्र है। उन्होंने बताया कि भू, भुवः तथा स्वः को महाव्याहृतियां कहते हैं। आचार्य जी ने कहा कि तीन वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद में गायत्री मन्त्र आता है। महाव्याहृतियों से रहित गायत्री मन्त्र भी यजुर्वेद में प्राप्त होता है। यह तत्सवितुर्वरेण्यम् से आरम्भ होता है। महाव्याहृतियों से युक्त तथा रहित दो प्रकार का गायत्री मन्त्र होता है। महाव्याहृतियों का अर्थ उन्होंने सार को बताया है। किसी विषय, वस्तु या चीज का जो सार होता है उसी प्रकार से महाव्याहृतियां ईश्वर के प्रमुख गुणों का सार हैं। आचार्य आशीष जी ने कहा कि ईश्वर अनन्तस्वरूप है। उन्होंने कहा कि परमात्मा के स्वरूप को सार रूप में भू, भुवः तथा स्वः पद समझाते हैं। परमात्मा का सार स्वरूप जो साधना में उपयोगी होगा वही साधक को ज्ञात होना चाहिये। साधक को यह समझना होता है कि उसके जीवन की धारा प्रभु की कृपा से चल रही है। यदि साधक इसको अनुभव कर लेता है तो जानिये कि परमात्मा के सार स्वरूप का एक अंश उसने अनुभव कर लिया। उसको यह विश्वास होना चाहिये कि उसका जीवन और प्राण प्रभु की कृपा से चल रहे हैं।

                साधको को दूसरी बात यह जाननी होती है कि उसके जीवन के कष्ट, चुनौतियां तथा प्रतिकूलतायें आदि सब परमात्मा के सतत ज्ञान में उपस्थित रहती हैं। परमात्मा इन सबको भलीभांति जानते हैं। साधक की सामथ्र्य का भी परमात्मा को ज्ञान होता है। ईमानदारी से मेहनत करके तथा ईश्वर की प्रार्थना आदि करके समस्याओं से बहार कैसे निकलना है, इसके लिये परमात्मा अन्दर से साधक को बल देते हैं। यदि हम दुःखों समस्याओं के आने पर मेहनत समर्पण करें तो परमात्मा हमें दुःखों से निकालते हैं। वह हमें दुःख से सम्भलना सिखाते हैं। यदि ईश्वर पर हमारा विश्वास जम गया तो ईश्वर का दूसरा स्वरूप सार रूप में समझ में गया। ईश्वर के सार रूप स्वः की चर्चा कर आचार्य जी ने कहा कि सुख की प्राप्ति साधना करने सहित प्रभु की आज्ञाओं का पालन करने से भीतर से आत्मा के भीतर ही ईश्वर हमें प्रदान करते हैं। ऐसा तभी सम्भव होता है कि ईश्वर अपने भक्तों को सुख देता है, इस बात पर साधकों का विश्वास जम जाये। आचार्य आशीष जी ने कहा कि परमात्मा के आनन्द का सार इन तीन पदों में है। इन्हें ही महाव्याहृतियां कहते हैं।

            आचार्य जी ने पूछा कि गायत्री मन्त्र को गायत्री नाम से क्यों पुकारा जाता है? उन्होंने कहा कि इसका प्रचलित उत्तर है कि गायत्री छन्द में होने के कारण। आचार्य जी ने कहा कि गायन्ते त्रायन्ते इति गायत्री। आचार्य जी ने कहा कि श्रद्धापूर्वक प्रभु से जुड़कर जो गायत्री मन्त्र का महाव्याहृतियों सहित जप करता है, यह जप उस साधक के दुःखों को दूर कर देता है। वह साधक अपने दुःखों से पार हो जाता है। आचार्य आशीष जी ने स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी के तप समर्पण की प्रशंसा की। आचार्य जी ने स्वामी जी की दृण संकल्प शक्ति की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि स्वामी जी अच्छे अर्थों में दृण संकल्प लेकर उसे पूरा करते हैं। आचार्य जी ने स्वामी जी के सहयोगी स्वामी विशुद्धानन्द जी के कार्यों स्वामी जी से उनके सहयोग की भी भूरि भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि स्वामी विशुद्धानन्द जी का कार्य भी सराहनीय है। आचार्य आशीष जी ने आगे कहा कि आश्रम में यहां लोग तभी सकते हैं कि जब उन्हें यहां अच्छे भोजन आदि सुविधायें प्राप्त हों। उन्होंने कहा कि किसी कार्य की सफलता के लिये उसके नकारात्मक कारणों को दूर करना होता है। इसी प्रकार यहां पर साधकों के आने का एक कारण यहां भोजन व्यवस्था की समस्या हो सकती है। इस कारण को दूर कर व्यवस्था करनी होगी। आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने आचार्य आशीष जी के सम्बोधन की प्रशंसा की और कहा कि उनके शब्द दिल में उतर जाते हैं। श्री शर्मा जी ने आयोजन में उपस्थित कुछ प्रमुख लोगों का परिचय भी श्रोताओं को दिया।

   इसके बाद चतुर्वेद पारायण यज्ञ में पूरे समय साधिका रही श्रीमती रेखा चैधरी एवं साधक श्री राममुनि फरीदाबाद ने यज्ञ शिविर की उपयोगिता पर अपने अनुभव प्रस्तुत किये। आश्रम के प्रधान श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री, यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी मुक्तानन्द जी तथा स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी का सम्बोधन भी हुआ। लेख काफी बड़ा हो रहा है अतः आयोजन का शेष विवरण हम बाद में प्रस्तुत करेंगे। इति ओ३म् शम्।


साभार :


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