सुदृढ मेवाड के कीर्ति पुरुष ’महाराणा कुम्भा‘

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Published on : 16 Jan, 20 05:01

महाराणा कुम्भा जयंती पर कुम्भलगढ, चित्तौडगढ, रणकपुर तथा उदयपुर के सिटी पेलेस व मोती मगरी में लगी ऐतिहासिक प्रदर्शनी

सुदृढ मेवाड के कीर्ति पुरुष ’महाराणा कुम्भा‘

उदयपुर ।  महाराणा कुम्भा की ६०३वीं जयंती के अवसर पर महाराणा मेवाड चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से कुम्भलगढ के ऐतिहासिक दुर्ग, चित्तौडगढ के कुम्भा महल, रणकपुर के सूर्यनारायण मंदिर तथा उदयपुर के जनाना महल, सिटी पेलेस व वीर भवन, मोती मगरी में महाराणा कुम्भा के जीवनकाल से जुडे ऐतिहासिक चित्रों व जानकारियों की प्रदर्शनियां लगाई गई हैं। सभी स्थलों पर यह प्रदर्शनियां १५ जनवरी से १५ फरवरी २०२० तक निरंतर रहेगी।

महाराणा मेवाड चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने बताया कि फाउण्डेशन की आउटरिच गतिविधियों का उद्देष्य वर्ष में मेवाड के महाराणाओं और उनके द्वारा जन एवं राज्यहितार्थ में किये गये कार्यों तथा उनके काल की ऐतिहासिक घटनाओं से मेवाड में आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोगों एवं विद्यार्थियों को भी रू-ब-रू करवाना है।

महाराणा कुम्भा शिल्पशास्त्र के ज्ञाता एवं अपने युग के प्रसिद्ध स्थापत्य निर्माता होने के साथ ही कला एवं कलाकारों के संरक्षक भी थे। मेवाड में लगभग ८४ किलों मे से ३२ किलों के निर्माण का श्रेय महाराणा कुम्भा को दिया जाता है। उसी कारण उन्हें सुदृढ मेवाड के कीर्ति पुरुष भी कहा गया है।

मेवाड राज्य की सीमाओं को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से आबू में अचलगढ (विक्रम सम्वत् १५०९) व बंसतगढ का निर्माण करवाया। गोडवाड क्षेत्र से सुरक्षा हेतु अजेय दुर्ग कुम्भलगढ (विक्रम सम्वत् १५१५) का निर्माण एवं दुर्ग के चारों ओर ३६ कि.मी. की परकोटे युक्त दीवार का निर्माण करवाया। ये निर्माण महाराणा कुम्भा की स्थापत्य अभिरूचि एवं राजनैतिक दूरदर्षिता का प्रमाण रहे। इसके अतिरिक्त चितौड दुर्ग का नवीनीकरण कर दुर्ग में प्रवेश हेतु पश्चिम की ओर दरवाजों और सुदृढ प्राचीर का निर्माण करवा दुर्ग का नवीन सुरक्षित प्रवेष मार्ग बनवाया। यही नहीं महाराणा कुम्भा के काल में चितौडगढ, अचलगढ, श्रीएकलिंगजी मंदिर, नागदा, कुम्भलगढ, रणकपुर आदि में कई विश्वविख्यात मंदिरों का निर्माण व जीर्णोद्धार करवाया। चित्तौड दुर्ग में मंदिरों के अतिरिक्त जल आपूर्ति हेतु कुंडों, जलाशयों का निर्माण के साथ अपनी ऐतिहासिक विजय की स्मृति को बनाये रखने के लिये ९ मंजिला विजय स्तम्भ (मालवा विजय के उपलक्ष्य में) का निर्माण करवाया, जो भारतीय मूर्तिकला का अजायबघर भी कहलाता है। इन्हीं से संबंधित कई ऐतिहासिक जानकारियों एवं चित्रों आदि को प्रदर्शनी का हिस्सा बनाया गया है।


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