राजस्थान विद्यापीठ: ‘‘ श्रीमद् भगवत गीता और मीराबाई ’’

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Published on : 09 Jan, 20 04:01

वर्तमान दौर में महिलाओं को सफल होना है तो मीरा के व्यक्तिव एवं कृतित्व को जानना होगा प्रो.  सारंगदेवोत

राजस्थान विद्यापीठ: ‘‘ श्रीमद् भगवत गीता और मीराबाई ’’

उदयपुर /  जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के मीरा अध्ययन एवं शोध पीठ, माणिक्यलाल वर्मा इतिहास एवं संस्कृति विभाग की ओर से बुधवार को श्रमजीवी महाविद्यालय के सभागार में श्रीमदभगवत गीता और मीराबाई विषयक पर आयोजित व्याख्यान में मुख्य वक्ता साहित्यकार प्रो. शीला भार्गव ने कहा कि भगवत् गीता ही जिन्दगी का सार है। भगवान कृष्ण के उपदेश सिर्फ देश के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण दुनिया के लिए प्रासंगिक है। इसमें विशेष दिव्य शक्ति समाहित है ये हमारे दुर्गण को समाप्त करती है। मीरां को समझने के लिए हमें तत्कालीन परिस्थितियों को समझना होगा। मीरां ने विपरित परिस्थितियों में भी जीवन को जिया। मीरां मात्र एक ऐसी भक्त थी जिसने काल की सीमाओं को लांघ दिया। मीरां के एकतारे से एक आनन्द प्राप्त होता है। मीरां को हम शास्त्रों में परिभाषित कर सकते है। मीरां की लीला एक अलग अर्थ देती है। मीरां ने कृष्ण को प्रेम किया परन्तु उन्हें कभी देखा नहीं। वह वहां-वहां नृत्य करना चाहती थी जहां-जहां कृष्ण के पैर पड़े। मुख्य अतिथि कोटा खुला वि.वि. के पूर्व कुलपति प्रो. परमेन्द्र दशोरा ने कहा की सम्पूर्ण विश्व में दो ही नाम सबसे अधिक लोकप्रिय है शोर्य के प्रतीक महाराणा प्रताप व भक्ति की प्रतीक मीरां बाई। यह हमारा सौभाग्य है कि दोनों का संबंध राजस्थान से है। मीरां बाई हमारे लिए भक्ति एवं शक्ति दोनो की प्रतीक है। उन्होंने उस जमाने में भक्ति क्षेत्र में संकीर्णता को दूर किया। परम्परागत भक्ति का विरोध करते हुए भगवान कृष्ण को ही अपना ईश्वर और गुरू माना। भगवत् गीता परम्पिता की नाभी से उत्पन्न हुई है। गीता यह संदेश देती है कि सतत् कर्मशील रहो। ध्यान योग द्वारा मन में जाओ जो अपने भीतर बैठा है। मीरां ने भक्ति योग को पार किया। प्रेम के बिना भक्ति नहीं होती। मीरां का चरित्र ऐसा है जो जीते जागते प्रभू में विलीन हो गई। मीरां ने गर्भावस्था में श्रीकृष्ण से संवाद कर लिया था वह श्रीकृष्ण को अपना पति मानती थी। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने बताया की मीरां की साहित्यिक और सांस्कृतिक काव्य हमारे लिये मानक पाठ है जो सदियों तक हमारी धरोहर रहेगें। मीरां को समझने के लिए तत्कालीन परिस्थितियों को समझना होगा। मीरां के साहित्य ने भारतीय संस्कृति व सभ्यता को परिपुष्ठ किया तथा जीवन दृष्टि प्रदान की। मीरा पीठ का उद्देश्य मीरा जैसी महान कवयित्री और नारी चेतना का प्रतीक के भारत ही नही पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाए हुए है। मीरा को जानते सब है लेकिन आम जन को उनके इतिहास के बारे  में जानकारी नही है। 500 वर्ष पहले नारी में चेतना जगाने का कार्य किया।वर्तमान दौर में महिलाओं को सफल होना है तो मीरा के व्यक्तिव एवं कृतित्व को जानना होगा, मीरा बाई ने जिस तरह चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढी उसे सीख लेनी चाहिए। विशिष्ठ अतिथि प्रो. कल्याण सिंह शेखावत ने कहा की मीरां महिला समाज के लिए गौरव है। कृष्ण और मीरां में अटूट प्रेम है व माधुर्य भाव है। नई पीढ़ी को मीरां के साहित्य का आत्मसात करने की जरूरत बताई। प्राचार्य प्रो. सुमन पामेचा, डॉ. हैमेन्द्र चौधरी, डिप्टी रजिस्ट्रार रियाज हुसैन ने भी विचार व्यक्त किये। संचालन हैमेन्द्र चौधरी ने किया। प्रो. मलय पानेरी, प्रो. गिरीश नाथ माथुर, प्रो. नीलम कौशिक, डॉ. विष्णु माली, डॉ. हरीश शर्मा, डॉ. पारस जैन, डॉ. दिलीप सिंह चौहान, डॉ. भूरालाल श्रीमाली, सोनल चौहान, नवीन दीक्षित, डॉ. राजेश शर्मा साहित बी.ए.-बी.एड,  बी.एस.सी-बी.एड. के छात्र मौजुद थे। उक्त जानकारी प्रभारी रीना मेनारिया ने दी।
 


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