भारतीय लोक कला मण्डल में ओड़िसी नृत्य की कार्यशाला का भावपूर्ण प्रस्तुतियों के साथ समापन

( 15424 बार पढ़ी गयी)
Published on : 04 Jan, 20 09:01

भारतीय लोक कला मण्डल में  ओड़िसी नृत्य की कार्यशाला का भावपूर्ण प्रस्तुतियों के साथ समापन

उदयपुर| भारतीय लोक कला मण्डल, में उड़िसा के शास्त्रीय नृत्य ओड़िसी कि कार्यशाला का भावपूर्ण प्रस्तुतियों के साथ समापन हुआ। 

 भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर के निदेशक डाॅ. लईक हुसैन ने बताया कि भारतीय लोक कला मण्डल में दनांक 23 दिसंबर 2019 से 30 दिसंबर 2019 के मध्य ओडिसी नृत्य की कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसका समापन समारोह दिनांक 03 जनवरी को गोविन्द कठपुतली प्रेक्षालय में आयोजित किया गया। जिसमें ओडिसी नृत्य के प्रसिद्ध नर्तक एवं कोरियोग्राफर कृष्णेन्दु साहा ने कोलकोता से आकर शिविर में नृत्य का प्रशिक्षण दिया। 

समारोह में प्रशिक्षण कार्यशला में भाग लेने वाले प्रतिभागीयों एवं प्रशिक्षक कृष्णेन्दु साहा ने अपनी मन मोहक प्रस्तुतियों से दर्शको के मध्य समा बांधा। कार्यक्रम  की शुरूआत में नृत्य प्रशिक्षक कृष्णेन्दु साहा द्वारा रामाष्टकम नृत्य की प्रस्त ुति दी गई यह एक मंगलाचरण नृत्य है। जिसमें नृत्य के माध्यम से भगवान श्री राम की वंदना एवं उनके द्वारा किये गये हरेक कार्य यथा भगवान विष्णु के अवतार राम ने दशरथ के पुत्र के रूप में जन्म लिया, एक युवराज के रूप में उन्होंने ऋषि मुनियोँ की रक्षा के लिए राक्षसों से लड़ाई की। उनके पैर के स्पर्श मात्र से शापित पत्थर बनी युवती अहिल्या का जीवन बदल गया। विशाल धनुष को तोड़कर सीता से विवाह किया। अपने वनवास के दौरान एक स्वर्ण मृग के रूप में प्रच्छन्न हुए राक्षस मारीच को मारना। राम ने मरते हुए गिद्ध पक्षी राज जटायु को भी आशीर्वाद दिया, सीता को लंका से लाने के लिये राम ने बंदरों की एक सेना के साथ विशाल समुद्र में एक पुल बनाना और भीषण युद्ध में रावण को मार डालाना जैसे दृश्यों को इस नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया। इसकी नृत्य रचना गुरू शर्मिला विश्वास, सगीत रंचना प्रफुला कर एवं ताल रचना धनेश्वर स्वाइन द्वारा की गई।

कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुति में  ताल खेल नृत्य की प्रस्तुति हुई जिसमें कार्यशाला मे प्रशिक्षण लेने वाले प्रतिभागीयों ने उड़िया ताल में किया जाने वाला एक पारम्परिक नृत्य प्रस्तुत किया। जिसकी रचना स्वयं कृष्णेन्दु साहा द्वारा कि गई। कार्यक्रम की अगली प्रस्तुति  बटू नृत्य की हुई जो भगवान शिव के 64 पहलुओं में से एक है जिसमें भगवान बटुका भैरव की आराधना की गयी है । यह एक शुद्ध नृत्य है  इसकी  प्रस्तुति में सुंदर मूर्तिमंत रचनाओँ को बताया गया है, जिसमें ढोल, वीणा, बांसुरी और झांझ बजाते उम्दा संरचनाओँ और क्लिषठ ताल का सुंदर समागम है ।  इस नृत्य में  तेज और लयबद्ध पक्श को पेश किया जाता है। इस प्रदर्शन में न तो कोई व्याख्यात्मक पहलू है और न ही कोई कहानी है। यह एक तकनीकी प्रदर्शन है, और इसका उद्देश्य दर्शकों को आकर्षित और आनंदित करना है। इस  प्रस्तुति की  परिकल्पना, कोरियोग्राफी और लय बद्धता गुरु केलुचरण महापात्र ने की है और संगीत रचना पंडित भुवनेश्वर मिश्रा ने की अंत में मोक्षा मंगलम नृत्य की प्रस्तुति हुई मोक्ष का अर्थ है मानव जीवन के अनुभव से परम मुक्ति और ईश्वरत्व के साथ मानव आत्मा का आनंदमय एकीकरण। इस अवधारणा को रेखांकित करते हुए, ओडिसी की अंतिम प्रस्तुति भी मोक्ष्य रखी है जो नर्तक के ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण को इंगित करती है।  यह एक शुद्ध नृत्य है जिसमें द्रुत लय में निबद्ध बोलोँ को मृदंग पर बजाया जाता है। नर्तकों के परमानंद के रूप में वे अपने नृत्य को परिणति तक ले आते हैं, अनंत की भावना पैदा करते हैं, और इसीलिए इसे मोक्ष मंगलम कहा जाता है। इसकी नृत्य रचना गुरू शर्मिला विश्वास, संगीत रचना सजृन चटर्जी एवं ताल रचना विजय बारिक द्वारा की गई। 

 डांॅ. लईक हुसैन ने यह भी बताया कि भारतीय लोक कला मण्डल द्वारा लोक एवं शास्त्रीय कलाओं के प्रचार- प्रसार और उन्हे आमजन तक पहुँचाने के उद्धेश्य से समय - समय पर प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जाता रहा है। इसी उद्धेश्य से भारतीय लोक कला मण्डल में दिनांक 23 दिसंबर 2019 से 30 दिसंबर 2019 के मध्य ओडिसी नृत्य की कार्यशाला का आयोजन किया गया और यह भी आश्वस्त किया गया भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर द्वारा भविष्य में इस तरह के आयोजन किये जाते रहेगें। 


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.