शिल्पग्राम उत्सव दिन-७

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Published on : 28 Dec, 19 05:12

परदेसियों के कत्थक आधारित ’’खोज‘‘ ने छाप छोडी, रौफ गिद्दा, भांगडा ने रंग बरसाया

शिल्पग्राम उत्सव दिन-७

उदयपुर । पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित दस दिवसीय ’’शिल्पग्राम उत्सव-२०१९‘‘ के सातवें दिन विदेश से आये कलाकारों द्वारा कत्थक की प्रस्तुति ने जहां भारतीय कलाओं की वैश्विक पहचान को दर्शाया वहीं लोक कलाओं ने दर्शकों को लोक रस रंग की रसधार में तरणानुभूति करवाई। शिल्पग्राम के हाट बाजार में कलात्मक वस्तुओं की बिक्री ने जोर पकडा और लोगों ने खूब खरीददारी कर अपनी पसंदीदा कलात्मक वस्तु को सहेज कर अपने साथ ले जाते नजर आये।

शुक्रवार को दोपहर में शिल्पग्राम उत्सव के सातवें दिन की गतिविधियां प्रारम्भ होते ही लोग शिल्पग्राम के मुख्य द्वार और दर्पण द्वार पर पहुंचे और अंदर प्रवेश करते ही लोक कलाकारों के साथ अपनी उमंगों को साझा करने लगे। मुख्य द्वार के समीप आंगन चोपाल पर बारां की कंजर नृत्यांगनाओं ने चकरी नृत्य से दर्शकों का अगुवाई की वहीं बहुरूपिया कलाकारों के साथ लोगों ने हंसी ठठ्ठा किया व फोटो खिचवाये। इसके बाद हाट बाजार में सजे विभिन्न शिल्प स्टॉल्स पर खरीदारी की इनमें मृण कुंज में खुर्जा पॉटरी के कप रकाबी, हैण्ड वॉश बॉटल, कॉफी मग, केतली, मिट्टी के गिलास, वॉटर बॉटल, मूर्तियाँ, धातु व पीतल की कलात्मक व डेकोरेटिव आइटम्स, आर्टिफिशियाल ज्वेलरी, वाइट मैटल ज्वैलरी, गाडिया लोहार के बनाये तवे, चिमटे, कढाई आदि की खरीददारी के साथ-साथ मेले का आनन्द उठाया।

 

शाम को मुक्तकाशी रंगमंच पर कनाडा से आये कलाकारों ने ऊषा गुप्ता के नेतृत्व में कथक की प्रस्तुति दी। दल ने ’’खोज‘‘ शीर्षक प्रस्तुति में कत्थक के मूल तत्वों के साथ समसामयिक तत्वों का प्रयोग व उनका सम्मिश्रण दर्शाया। मंच पर ऊषा गुप्ता ने दर्शको के समक्ष कथक का परिचय प्रस्तुत करते हुए बताया कि उनका दल उषा डांस एन्टॉरस कनाडा कथक पर एक खोज पर कार्य कर रहा है। प्रस्तुति में दल ने कथक के मूल तत्वों का प्रदर्शन उत्कृष्ट ढंग से किया जिसमें थाट, तराना, ठुमरी, सूफी के अलावा कबीर व पश्चिम बंगाल के बाउल संगीत का समावेश किया गया। दर्शकों ने कथक के साथ सफी के प्रयोग को जहां भरपूर सराहा वहीं बाउल संगीत के साथ शास्त्रीय नृत्य शैली का तारतम्य श्रेष्ठ बन सका। थाट में पदाघातों और लयकारी का तारतम्य श्रेष्ठ बन सका वहीं ठुमरी में भाव भंगिमाओं और आंगिक विन्यास उत्कृष्ट बन सके।

प्रस्तुति में प्रस्तुति की क्रिएटिव डारेक्टर उषा गुप्ता के साथ कलाकार अनुज मिश्रा, सौबिक चक्रवर्ती, अयान बनर्जी, मार्ला पालकामालीगिल, नंदिनी शर्मा, कंचन खंडपाल ने अपने नर्तन का लावण्य बिखेरा। इनके साथ ड्रामाटर्ज के रूप में ब्रायन वेब थे जो इस खोज में संलग्न हैं। संगतकारों में बैंगलूरू के प्रवीण डी. राव, , गायन में वारीजा श्रीगोपाल, सारंगी पर दीपक पार्श्वनाथन तथा तबले पर वैद्यनाथन ने सगत की।

इससे पूर्व रंगमंच पर हिमाच्छादित लद्दाख से जब्रो दर्शकों के लिये नूतन प्रस्तुति रही वहीं उत्तराखण्ड का छपेली रोमांटिक प्रस्तुति बन सका। इस अवसर पर ऑडीशा के कृषक समुदाय का सिंगारी नृत्य दर्शकों द्वारा सराहा गया वहीं मणिपुर का पुग ढोल चोलम ने अपनी उपस्थिति से दर्शकों में जोश का संचार किया। कार्यक्रम में दर्शकों को सर्वाधिक आनन्द पंजाब की दो प्रस्तुतियों से हुआ जिसमें पहले गिद्धा नृत्य में पंजाबी बालाओं ने अपने रीति रिवाजों को दर्शाया तथा बाद में पंजाबी मुंडों ने बल्ले बल्ले के साथ ढोल की थाप पर अपनी थिरकन से दर्शकों में उत्साह का संचार किया।

 


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