70 वर्षीय छावनी निवासी श्री घनश्याम लाल शर्मा जी का लंबी बीमारी के बाद शुक्रवार की सुबह घर पर ही निधन हो गया । सरल,मधुर व विनम्र स्वभाव के घनश्याम जी जे के फेक्ट्री में कार्यरत थे, वहाँ से सेवानिवृत्त होने के बाद घर के बाहर ही छोटी सी किराने की दुकान लगा कर अपने परिवार का गुजारा कर रहे थे ।
थोड़े समय पहले केंसर हो जाने के कारण उनकी तबीयत कुछ खराब सी रहने लगी थी । बच्चों ने इलाज भी जारी रखा,पर शायद उनको अपना अंत समय नज़दीक दिखने लगा था । धार्मिक व सामाजिक कार्यों में हमेशा अ पना सहयोग बढ़-चढ़कर देने के कारण वह काफ़ी सुलझे विचारों के इंसान थे । नेत्रदान-अंगदान-देहदान के बारे में समाचार पत्रों से जानकारी मिलते रहने के कारण,वह यह बात अच्छे से जानते थे,कि मृत्यु के बाद शरीर को राख़ करके नदी में बहाने से अच्छा है कि,कम से कम यह शरीर किसी काम आ सके ।
उन्होंने दो तीन दिन पहले ही अपने दोनों बेटे दिनेश व कमलकांत को कह दिया था कि,जब भी मेरी मृत्यु होती है तो,बिना देरी किये मेरी देह मेडिकल कॉलेज को और आँखो को शाइन इंडिया फाउंडेशन के लोगों को बुलाकर दान करवा देना । आज जैसे ही घनश्याम जी की मृत्यु हुई तो उसके एक घंटे के अंदर दिनेश ने अपने सहयोगी मलिक टायर वाले राजा मलिक जी से बात कर उनके नेत्रदान व देहदान की बात की ।
शाइन इंडिया फाउंडेशन की टीम से संपर्क होने के बाद संस्था सदस्यों व आई बैंक सोसायटी के तकनीशियन ने उनके निवास पर सभी रिश्तेदारों के बीच नेत्रदान लिये । साथ ही परिजनों को यह भी जानकारी दी कि,केंसर की अवस्था में नेत्रदानी भी जब ही संभव है,यदि कीमोथेरेपी 15 दिन से पहले लगी हो,अन्यथा इससे कम समय होने पर नेत्रदान संभव नहीं है। देहदान कैन्सर की किसी भी अवस्था में संभव नहीं है ।