“पाप का कारण मनुष्य का बिगड़ा हुआ मन होता हैः आचार्य कुलश्रेष्ठ”

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Published on : 29 Nov, 19 06:11

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“पाप का कारण मनुष्य का बिगड़ा हुआ मन होता हैः आचार्य कुलश्रेष्ठ”

आर्यसमाज-लक्ष्मणचैक देहरादून की प्रसिद्ध आर्यसमाज है। इस आर्यसमाज का महत्व इस कारण से भी है कि इस आर्यसमाज मन्दिर के पास ही पं0 विश्वनाथ विद्यालंकार वेदोपाध्यय जी निवास करते थे। पं0 विश्वनाथ जी ने अथर्ववेद तथा सामवेद का आध्यात्मिक भाष्य किया है। वेदों पर पं0 विश्वनाथ वेदोपाध्याय जी ने उच्च कोटि के अनेक ग्रन्थों की रचना भी की है। पं0 जी ने 103 वर्ष की आयु प्राप्त की थी। उनका देहावसान 11 मार्च, सन् 1991 को देहरादून में लक्ष्मण चैक के निकट ही उनके निवास 61 कांवली रोड पर हुआ था। पंडित जी गुरुकुल के प्रथम विद्यार्थियों में से एक थे। आप विद्यामार्तण्ड की मानोपाधि से भी अलंकृत किये गये थे। हमने उनके निवास स्थान एवं आर्यसमाजों में पंडित जी के दर्शन किये थे। देहरादून के दूसरे प्रसिद्ध विद्वान पं0 रुद्र दत्त शास्त्री थे जो गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर के स्नातक थे। पंडित जी बाल्मीकि रामायण पर बहुत प्रभावपूर्ण कथा करते थे। हमने उनके श्रीमुख से उनकी कथाओं को सुना है। उनका एक उपदेश भी अपने सरकारी कार्यालय में सन् 1980 के आसपास कराया था। पंडित रुद्रदत्त शास्त्री जी उस चतुर्वेद पारायण यज्ञ के ब्रह्मा भी बने थे जो पं0 विश्वनाथ वेदोपाध्याय जी के निवास पर हुआ था। यह यज्ञ तब हुआ था जब पंडित जी ने अपने जीवन के 101 वर्ष पूर्व किये थे। तब पंडित जी की धर्मपत्नी जी भी जीवित थीं। लक्ष्मण चैक क्षेत्र में ही एक आर्यसमाज के विद्वान पं0 भूदेव शास्त्री भी रहते थे। यह भी आर्यसमाज के विद्वान थे। भारत के प्रधानमंत्री श्री इन्द्रकुमार गुजराल उनके शिष्य रहे थे। प्रधानमंत्री बनने पर उनका फोन शास्त्री जी को आया था। आप आर्यसमाज लक्ष्मणचैक के सत्संगों में भाग लिया करते थे। आप भी लगभग एक सौ वर्ष की आयु में दिवंगत हुए थे। हमें लगता है इन कारणों से आर्यसमाज लक्ष्मणचैक का अधिक नहीं तो कुछ महत्व तो है ही।

 

                शनिवार दिनांक 23 नवम्बर 2011 की प्रातः हम आर्यसमाज धामावाला के सत्संग में गये थे। वहां यज्ञ में सम्मिलित हुए तथा आर्य भजनोपदेशिका श्रीमती मिथलेश आर्या जी के भजनों का श्रवण किया। आचार्य सन्दीप आर्य जी, सोनीपत के प्रवचन में भी उपस्थित रहे थे। इसके बाद वहां से अपने एक्टिवा स्कूटर से हम आर्यसमाज लक्ष्मण-चैक के उत्सव में आ गये थे और इस समाज में आगरा के आर्य विद्वान आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का व्याख्यान सुना। आचार्य जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि जब मनुष्य का मन बिगड़ता है तो वह पाप करने लगता है। सात्विक मन पाप नहीं कराता है। मनुष्य की बुद्धि मन को नियंत्रित करती है। आचार्य जी ने कहा कि मनुष्य का मन शरीर रूपी रथ की लगाम है तथा इन्द्रियां इसके घोड़े हैं। जिस मनुष्य का मन ढीला है उसकी बुद्धि ढुलमुल रहेगी। आचार्य जी ने श्रोताओं को बताया कि मनुष्य का मन उसकी आत्मा का एक उपकरण है। आचार्य जी ने कहा कि मन को सात्विक बनाये रखने के लिये मनुष्यों का आर्यसमाजों के सत्संगों में जाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि मन को सात्विक रखने के लिये बुद्धि को सात्विक रखना होगा। आचार्य जी ने कहा कि सात्विक मन वाले कर्तव्य पथ से डिगते नहीं है। आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की सात्विक प्रवृत्तियों की प्रशंसा की। वह अपने और अपने परिवार के हितों के बारे में नहीं सोचते और न ही अपने पद का अनुचित लाभ लेते हैं व अपनों को कराते हैं। आचार्य जी ने कहा कि मोदी जी का मन सात्विक है। उन्होंने कहा कि इसका कारण सत्संग है। सत्संग से मनुष्य के जीवन में नैतिक मूल्य स्थापित होते हैं।

 

                आर्यसमाज के उच्चकोटि के विद्वान पं0 उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने कहा कि महर्षि दयानन्द जी का मन सात्विक था। इस कारण किसी प्रकार का कोई प्रलोभन उन्हें उनके लक्ष्य प्राप्ति से डिगा नहीं सका। उन्होंने बताया कि ऋषि दयानन्द की शास्त्रों में गहरी पहुंच के कारण काशी के पण्डितों ने उन्हें अपना पच्चीसवां अवतार घोषित करने का प्रस्ताव किया था। शर्त यह थी कि व मूर्तिपूजा का खण्डन न करे। स्वामी दयानन्द जी ने इस प्रस्ताव को इस कारण ठुकरा दिया कि वह ईश्वर के ज्ञान वेद को किसी मूल्य पर नहीं छोड़ सकते। आचार्य जी ने कहा कि आज समष्टि का मन बिगड़ा हुआ है। समाज में अनाचार तथा भ्रष्टाचार आदि बुराईयां बिगड़े हुए मन का परिणाम हैं। आचार्य जी ने आधुनिक युवाओं में समलैंगिक विवाह के व्यवहार को वैदिक धर्म एवं संस्कृति सहित मानवता का विरोधी बताया। उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकार से इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसके गम्भीर परिणाम होंगे। आधुनिक युवाओं व उसके समर्थकों की सोच पर तरस आता है। आचार्य जी ने कहा कि समलैगिक विवाहों को अपराध घोषित किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि क्या यह मलिन बुद्धि का निर्णय है या नहीं? आचार्य जी ने कहा कि इस विषय का निर्णय करने वाले यदि ईश्वर और वेद से जुड़े होते तो निर्णय इसके विपरीत होता। आचार्य जी ने कहा कि इस कृत्य से हिन्दू समाज बर्बाद हो रहा है। यदि मनुष्य की बुद्धि पवित्र न हो तो उसमें विकृति आती है। गायत्री मन्त्र के अर्थ सहित पाठ व जप से मनुष्य की बुद्धि पवित्र होती है।

 

                आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने कहा कि वेद की मूर्ति नहीं बन सकती। आचार्य श्रीराम शर्मा जी की गायत्री की मूर्ति बनाने की उन्होंने आलोचना की। आचार्य जी ने कहा कि उन्होंने गायत्री की मूर्ति बनाकर अज्ञान पैदा किया है। गायत्री मन्त्र बुद्धि को पवित्र करता है। गायत्री मन्त्र साम्प्रदायिक नहीं है। गायत्री मन्त्र पूरे विश्व का हित करने वाला मन्त्र है। आचार्य जी ने बताया कि केरल के एक अधिकारी ने सरकारी निमंत्रण पत्रों में गायत्री मन्त्र छपवाया था। इस पर केरल के ईसाई, मुस्लिम व धर्मनिरपेक्ष लोगों ने आपत्ति की। उस अधिकारी पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लगा। वह अधिकारी न्यायालय की शरण में गया। वहां पर ईसाई पादरी, मुस्लिम विद्वानों तथा कम्यूनिस्ट विचारकों की पेशी हुई। न्यायालय ने उस अधिकारी से गायत्री मन्त्र का अर्थ पूछा गया। न्यायालय को बताया गया कि इस मन्त्र में इस सृष्टि के रचयिता ईश्वर से बुद्धि को पवित्र करने की प्रार्थना की गई है। आचार्य जी ने कहा कि जज महोदय ने सभी आरोपकर्ताओं से पूछा कि इसमें साम्प्रदायिकता कहां है। यह केस गायत्री मन्त्र के पक्ष में निर्णीत हुआ। आचार्य जी ने कहा कि गायत्री मन्त्र को जो भी पढ़ेगा तथा इसका जप करेगा, वह अच्छे काम करेगा। उन्होंने कहा कि ईसाई, मुसलमान तथा कम्यूनिस्ट सभी को पवित्र बुद्धि की आवश्यकता है। वेद का ज्ञान सृष्टि बनाने वाले परमात्मा का दिया हुआ होने के कारण सार्वभौमिक ज्ञान है। उनके अनुसार सब मनुष्यों को गायत्री मन्त्र का जप करना चाहिये।

 

                आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने कार्यक्रम में बड़ी संख्या में उपस्थित बच्चों से प्रश्न किया कि संसार के उस देश का नाम बताईये जिसके चार नाम हैं? एक छोटी आयु की छात्रा ने बताया कि भारत ही वह देश है जिसके आर्यावत्र्त, भारतवर्ष, हिन्दुस्तान तथा इण्डिया चार नाम हैं। आचार्य जी ने श्रोताओं को बताया कि अंग्रेजों ने भारत के लोगों को अपने वेद धर्म व संस्कृति से दूर करने के लिये हमारे देश का नाम इण्डिया रखा। आचार्य जी ने यह भी कहा कि आर्य एक शब्द है जिसका अर्थ श्रेष्ठ मनुष्य होता है। इसी के साथ आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने अपने सम्बोधन को विराम दिया। आर्यसमाज के मंत्री जी ने आचार्य जी का इस ज्ञानवर्धक उपदेश के लिये धन्यवाद किया। उन्होंने अखिल भारतीय महिला आश्रम, देहरादून का आगामी शनिवार व रविवार को वार्षिकोत्सव तथा इस अवसर किये जाने वाले गायत्री यज्ञ की सूचना के साथ दानियों की भी सूचना दी। इसके बाद उत्सव के प्रातःकालीन सत्र का समापन हुआ। वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी सहित जिला आर्य सभा, देहरादून के प्रधान श्री शत्रुघ्न मौर्य तथा मंत्री श्री भगवान सिंह राठौर जी भी बड़ी संख्या में उपस्थित स्त्री-पुरुषों सहित इस आयोजन में उपस्थित थे। ओ३म् शम्।           

-मनमोहन कुमार आर्य

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