बूंदी उत्सव में विदेशी पर्यटकों की रही दमदार मौजूदगी

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Published on : 20 Nov, 19 11:11

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

बूंदी उत्सव में विदेशी पर्यटकों की रही दमदार मौजूदगी

कोटा |   विदेशी पावणों ने न केवल अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराई वरण कार्यक्रमों का हिस्सा बन कर राजस्थानी संस्कृति को शिद्दत के साथ जिया और अंतररास्ट्रीय उत्सव बना दिया। राजस्थान में बीकानेर का ऊंट उत्सव, जेसलमेर का डेजर्ट फेस्टिवल, जोधपुर का मारवाड़ उत्सव, पुष्कर का मेला, उदयपुर का मेवाड़ उत्सव ,जयपुर के गणगौर मेला, तीज उत्सव जैसे अंतररास्ट्रीय उत्सवों में आज बूंदी उत्सव की भी अपनी आन्तर्राष्ट्रीय पहचान बन गई है। पर्यटन विभाग के पर्यटन मेलों एवं उत्सवों के अपने कलेंडर में पिछले कई वर्षों से बूंदी उत्सव को शामिल करने से निरंतर विदेशी सैलानियों की आवक बढ़ने लगी है। कहना अतिशियोक्ति न होगा कि इस वर्ष के रजत जयंती उत्सव को अधिक मनोरंजनपूर्ण,विविधतापूर्ण और चिरस्मरणीय बनाने के लिए युवा कलेक्टर रुक्मणि रियार ने सभी को साथ लेकर जिस प्रकार प्रदूषण मुक्त उत्सव की तैयारी कर आयोजित किया वह देख कर विदेशी पर्यटक निश्चित ही यहां से अमिट यादें संजो कर जाएंगे और सांस्कृतिक एम्बेसेडर के रूप में बूंदी उत्सव की जिज्ञासा जाग्रत करेंगे जिससे आने वाले समय में और ज्यादा भागीदारी जुड़ सके।

            राजस्थान के इस इंद्रधनुषी सांस्कृतिक आयोजन ‘बूंदी उत्सव’ का  भव्य शुभारंभ 15 नवंबर को गढ़ पैलेस परिसर में प्रात:  मंत्रोच्चार, शंखनाद, गणपति पूजन वन्दन के अनुष्ठान के साथ हुआ। शोभायात्रा में लोक कलाकारों ने संगीत धुनों के बीच कच्छी घोड़ी नृत्य कर समां बाधा। वहीं परम्परागत लोक वाद्यों की धुनें गुंजायमान रही। गढ़ की पड्स से आरंभ होकर शोभायात्रा पुरानी बूंदी की विरासत को निहारती हुई मुख्य बाजार होकर पुलिस परेड ग्राउण्ड पहुंची। शोभायात्रा में हाथी, घोड़े, उंट और नृत्य करते लोक कलाकारों ने फिजां में उत्सवी रंग घोल दिया। वहीं अनेक संदेश परक झांकिया भी आकर्षण का केन्द्र रही।  

      रोमांच से भरपूर देशी विदेशी लोगों के बीच रस्साकसी, साफा बांधने, सिर पर मटका लेकर पनिहारिन प्रतियोगिताओं में  विदेशी महिला पुरूषों का  जोश व उत्साह देखते ही बनता था। विदेशी पर्यटकों की साफा बंधन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर फ्रांस के डेविड, दूसरे स्थान पर यूएसए के अलिसोन व तीसरे स्थान पर आस्लिट्रेलिया मार्क रहे। विदेशी पर्यटकों की पणिहारी दौड़ हुई जिसमें विदेशी महिला पर्यटक सिर पर मटकी रखकर दौडे। पानी भरी मटकी सिर पर रख महिला पर्यटक एक बार तो अचरज में पड गए और रोमांचित हो उठे। इसी के साथ देशी महिलाओं की पणिहारी दौड़ भी हुई। विदेशी पर्यटकों की मटकी दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर इंग्लैंड की मारिया, दूसरे स्थान पर आस्लिट्रेलिया की साइमन तथा तीसरे स्थान पर स्वीडन की लिलियन रहीं। लंबी मूंछे प्रतियोगिता एवं घुड़ दौड़ ने सभी को लुभाया। सायंकाल की बेला में नवल सागर में दीपदान  से हर ओर दीप ही दीप जल उठे और असंख्य जलते दीपों एवं प्रतिबिम्ब से नवल सागर के घाट, मेहराब, अहाते तथा पूरा मार्ग झिलमिला उठा।

          उत्सव की संध्या पर भारत के लोक कलाकारों का रंगारंग कार्यक्रम राजस्थान के प्रसिद्ध मयूर नृत्य से शुरू होकर असम के बीहू,उडीसा गोटीपूआ, मणिपुर के पुंग ढोल चोलम स्टिक नृत्य, राजस्थान का कालबेलिया , गुजरात का सिद्धी धमाल, मेवासी और पश्चिम बंगाल की पुरूलिया कला शैली के नृत्य तक अनवरत चला। एक से बढकर एक मनभावन नृत्यों ने चौरासी खंबे की छतरी के पार्श्व में भारत की सांस्कृतिक छटा के दर्शन कराए। कलाकारों ने हवा में उछलकर पक्षियों की मुद्राएं बनाकर दर्शकों केा आश्चर्यचकित कर दिया। वहीं अचरज भरे करतबों से दिल जीत लिया। कलाकारों ने सफेद धोती और पगडी में तालबंध, लय और संगीत की अनूठी प्रस्तुतियां दी। भारतीय लोक नृत्यों एवं संगीत की बहती रोमांचक प्रस्तुतियों से दर्शक भाव विभोर होकरआनन्द की सरिता गोते लगाने लगे।

         बूंदी उत्सव के दौरान दूसरे दिन विदेशी पावणों के भाल पर रोली अक्षत का टीका कर रक्षा सूत्र एवं साफ बांध कर की गई आवभगत से वे अविभूत नज़र आये। विदेशी महिलाओं को जब चूड़ियां पहनाई गई और मेहंदी से हाथ सजाए गए उनके चेहरे कर खुशी देखते ही बनती थी। बूंदी उत्सव के दौरान सुखमहल में सुरम्य प्राकृतिक छटा के बीच देशी-विदेशी पावणों की देशी व्यंजनों से मीठी मनुहार की गई और उनका हाडौती के पसंदीदा पारम्परिक व्यंजन कत्त बाफले से सत्कार किया गया। इस मान मनुहार से वे इतने अभिभूत हुए कि वे तेज मसालेदार खाने के आदि न होने पर भी बड़े चाव से आनंद के साथ इसे खाते रहे और वेरी गुड, वंडरफुल, सो नाइस, लवली जैसे बोलों से अपने आनन्द को प्रकट करते रहे।  लोक कलाकारों ने कच्छी घोड़ी और अन्य नृत्य गीतों से पावणों की आवभगत को यादगार बना दिया। इससे पहले सुबह भोर की सुहानी बेला में जैत सागर के निकट टैरेस उद्यान के मनोरम वातावरण में संगीत साधकों ने सुमधुर स्वरों की वर्षा की। संतूर,बांसुरी और तबला पर युवा कलाकारों ने संगीत की ऐसी त्रिवेणी बहाई जिसमें मंत्रमुग्ध हो देर तक श्रोता डूबे रहे। शास्त्रीय संगीत के इन कलाकारों ने अपने अपने वाद्य पर आलाप के आरोह अवरोह और लय ताल के सुंदर संयोजन से माहौल को सजाया और धीरे धीरे गहराइयों में पहुंचाते गए। लय ताल में बद्ध सुरों की जुगलबंदी का जादू चलाकर कलाकारों ने खूब दाद पाई। बूंदी चित्रकला कार्यशाला, बूंदी शैली चित्रों की प्रदर्शनी,बूंदी शैली चित्रों की पुस्तक का विमचन, शिल्पग्राम, हस्तशिल्प मेला एवं जिले में विभिन्न स्थानों पर शोभायात्रा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम उत्सव की शान बने। 

         ऐहिसिक एवं सांस्कृतिक वैभव से परिपूर्ण हाड़ौती की आन बान का प्रतीक बूंदी, पर्यटन मानचित्र पर अपना अह्म स्थान बना चुका है। छोटी काशी तथा वीर हाड़ाओं की धरती के रूप में विख्यात बूंदी प्रदेश के उन गिने चुने शहरों में से एक है, जिसका समृद्ध पुरातत्व, बूंदी चित्र शैली एवं प्राकृतिक वैभव देशी विदेशी सैलानियों के लिए वर्षभर आकर्षण का केन्द्र बना रहता है। यहां के चप्पे-चप्पे पर स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने देखने को मिलते हैं। प्रकृति ने भी बूंदी को रमणीयता प्रदान करने में पूरी उदारता बरती है, जिसका आनंद उठाने विशेष तोर पर चित्रशाला के भित्ति चित्रों को देखने लिए विदेशी सैलानी वर्षभर यहां आते हैं।       

       बूंदी के पर्यटन महत्व को मद्देनजर रखते हुए यहां के समृद्ध सांस्कृतिक वैभव को उजागर करने एवं पर्यटन  को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1996 में जिला प्रशासन की पहल पर बूंदी उत्सव नामक पर्यटन पर्व का आगाज हुआ था, जिसने दो दशक से अधिक सफर तय कर इस वर्ष अपना रजत जयंती वर्ष मनया । उत्सव के 25 वर्षों की यात्रा 4-5 विदेशी पर्यटकों से शुरू होकर आज करीब 200 पर्यटकों तक पहुँच गई है। ये पर्यटक इस वर्ष फ्रांस,इंग्लैंड,अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि देशों से उत्सव की शोभा बने।इनमें सर्वाधिक 40 फीसदी पर्यटकों की भागीदारी फ्रांस से रही।

       जिला मुख्यालय से आरंभ हुआ यह बूंदी उत्सव अब जिले का स्थायी पर्यटन उत्सव का रूप ले चुका है। जिला प्रशासन एवं पर्यटन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित होने वाले इस उत्सव के दौरान बूंदी के अलावा हिण्डोली, इन्द्रगढ़, लाखेरी, नैनवां, धार्मिक नगरी केशवरायपाटन, तलवास, दुगारी आदि स्थानों पर भी विविध मनोहारी कार्यक्रमों का आयोजन किया जाने लगा है। इन कार्यक्रमों के माध्यम से देशी विदेशी पर्यटकों को यहां के दर्शनीय स्वरूप तथा कला संस्कृति से रूबरू करवाया जाता है। इन कार्यक्रमों में विदेशी पर्यटकों की रूचि का भी पूरा ख्याल रखा जाता हैं। हाड़ौती अंचल ही नहीं भारतीय  कला संस्कृति इसमें देखने को मिलती है। प्रमुख स्थानों को रोशनी से सजाया जाता है। आज यह उत्सव विदेशी सैलानियों से जुड़ कर राजस्थान की शान बन कर आन्तर्राष्ट्रीय पहचान बना बनाने में सफल रहा है ।


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