स्ट्रोक जागरूकता अभियान एवं survivors meet का हुआ आयोजन

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Published on : 04 Nov, 19 14:11

स्ट्रोक जागरूकता अभियान एवं survivors meet का हुआ आयोजन

गीतांजली मेडिकल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल, उदयपुर के गीतांजली न्यूरोसांइस सेंटर, स्ट्रोक से जुड़ी मुहिम ‘‘BE FAST’’ को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं जिसका उद्देश्य जन-जन में स्ट्रोक के प्रति जगरूकता फैलाना है। इसके अन्तर्गत गीतांजली द्वारा होटल गोल्डन ट्यूलिप, सरदारपुरा में स्ट्रोक अवेयरनेस एवं SURVIVOR meet का आयोजन किया गया। जिसमें अमेरिका से आये न्यूरो इन्टरवेंशनल Dr. Blaise Baxter मुख्य अतिथि रहे एवं गीतांजली न्यूरोसांइस सेंटर के विशेषज्ञों न्यूरोलोजिस्ट - डॉ. रेनू खमेसरा, न्यूरोलोजिस्ट एवं एपिलेप्टोलोजिस्ट - डॉ. अनीस जुक्कलवाला, न्यूरोलोजिस्ट - डॉ. विनोद मेहता, न्यूरो वेसक्युलर इन्टरवेंशनल रेडियोलोजी - डॉ. सीताराम बारठ, न्यूरोसर्जन - डॉ. उदय भौमिक, डॉ. गोविन्द मंगल, एवं सी.ई.ओ. प्रतीम तम्बोली तथा स्ट्रोक सरवाईवर्स और आमजन ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

गीतांजली के न्यूरोसाइंस एक्सपर्ट्स द्वारा पैनल डिस्कशन किया गया। जिसमे मुख्य अतिथि के रूप में आये न्यूरो इन्टरवेंशनल Dr. Blaise Baxter ने स्ट्रोक के बारे में विस्तृत चर्चा करते हुए बताया कि आज के नये दौर में जिस तरह से स्टोक की समस्या बढ़ती जा रही है वहीं स्टोक के कई उपचार भी निजात किये गये है। उन्होने बताया समय को महत्व देते हुए हम जितना जल्दी समय पर इलाज करा देते है उतना ही सफल इलाज हो सकता है। उन्होने बताया कि 10 से 8 लोगों को खुन की नस फटने वाला स्टोक होता है स्केमिक स्टोक एवं हैमरेज स्टोक के इलाज के बारे में भी बताया। उन्होने बताया कि मेकेनिकल थ्रोम्बेकटोमी तकनीक स्टोक के इलाज में वरदान रूप है। उन्होने कहां कि स्ट्रोक के लक्षण दिखते ही तुरन्त स्टोक रेडी हॉस्पिटल में पहुंचे एवं स्टोक ना आये उसके लिए अपनी जीवनचर्या को स्वस्थ्य रखे।

डॉक्टर रेणु खमेसरा ने बताया कि स्ट्रोक किसी अभी रूप में हो सकता है उन्होने BE FAST के सभी लक्षणों को बताते हुए कहां कि ब्लड प्रेशर, शुगर, कोलेस्टोल, टीबी, एचआईवी, नस का बंद होना या नस का फट जाना, पुरानी चोट ये सभी लक्षण स्ट्रोक की तरफ ले जाते है और इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए। जिसे एक बार स्ट्रोक हो चुका है उसे वापिस होने की पूरी संभावना हो सकती है इसलिए वह अपना इलाज निरन्तर कराते रहे।

वहीं न्यूरोलोजिस्ट एवं एपिलेप्टोलोजिस्ट, डॉ. अनीस जुक्कलवाला ने BE FAST कि मुहिम को समझाते हुए बताया कि (B) से मतलब है यदि बैंलंस बिगड़ना, (E) से मतलब आँखों से स्पष्ट ना दिखना, (F) से मतलब चेहरा का लटकना, (A) से मतलब बाँह कर लटकना, (S) से मतलब बोलने में कठिनाई एवं अंतिम सबसे महत्वपूर्ण (T) से मतलब है कि जैसे ही रोगी में उपरोक्त सभी लक्षण दिखें तो तुरन्त उसे स्ट्रोक रेडी हॉस्पिटल में लेकर जायें।

गीतांजली के न्यूरोलोजिस्ट डॉ. विनोद मेहता ने स्ट्रोक के लक्षणों पर जोर देते हुए कहा कि जैसे ही मरीज में स्ट्रोक के लक्षण दिखाई दें तो तुरन्त स्ट्रोक रेडी हॉस्पिटल में जाना चाहिए जिससे कि मरीज़ का शीघ्र उपचार किया जा सके वहीं यह जानकारी भी साझा कि गीतांजली हॉस्पिटल एक स्ट्रोक रेडी हॉस्पिटल भी है जहाँ 24X7 स्ट्रोक के लिए आवश्यक सुविधाए उपलब्ध है। जिसमें न्यूरोसाइंस विशेषज्ञों की टीम, सीटी, एमआरआई एवं केथ लेब की सुविधाए शामिल है।

गीतांजली हास्पिटल के न्यूरो वेसक्युलर इन्टरवेंशनल रेडियोलाजिस्ट डॉ. सीताराम बारठ ने स्ट्रोक के उपचार के बारे में बताते हुए समझाया कि स्ट्रोक का उपचार मुख्यतया दो चीजों पर निर्भर करता है कि कितनी बड़ी नस में ब्लॉकेज़ हुआ है एवं कितना समय हुआ है। यदि रोगी की छोटी नस में ब्लॉकेज़ हुआ है और वह 4 घण्टे के अन्दर ही हॉस्पिटल में लाया जाये और उसे इंजेक्शन लगाकर थक्का गलाया जा सकता है जिससे कि नस पुनः चालू हो जाती है और दूसरे केस में जिसमें समय 4 घण्टे से ऊपर हो गया है एवं ब्लॉकेज़ बड़ी नस में है उस स्थिति में थक्के को करंट द्वारा नस से बाहर निकाला जा सकता है। इस प्रक्रिया को मेकेनिकल थ्रोमोबेकटोमी कहा जाता है।

वहीं गीतांजली हॉस्पिटल के न्यूरोसर्जन डॉ. गोविन्द मंगल ने हेम्रेज स्ट्रोक के बारे में बताया कि इस स्ट्रोक में ब्लड प्रेशर के बढ़ने से मस्तिष्क की महीन नसें गहराई में फट जाती है और मरीज़ कोमा में चला जाता है उन्होंने यह भी बताया कि किसी समय में यह स्ट्रोक सिर्फ वृद्धाव्स्था में होता था परन्तु आजकल दिनचर्या में बदलाव होने के कारण युवाओं में भी बहुत हो रहा है, इस स्ट्रोक का सबसे प्रमुख लक्षण यह है कि इसमें मरीज़ बेहोश हो जाता है और शरीर के एक साइड में लकवे का अटैक आता है।

वहीं न्यूरोसर्जन डॉ. उदय भौमिक ने सबसे महत्वपूर्ण बात को स्पष्ट किया कि जब हैमरेज़ स्ट्रोक हो जाता है उसमें न्यूरोसर्जन का सबसे महत्वपूर्ण रोल यह है कि किस समय मरीज का ऑपरेशन किया जाना है या उसे किस तरह से संभालना है न्यूरोसाईन्स की टीम वहां पर मौजूद है कि नहीं। ऑपरेशन करते समय सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि न्येरो साईन्स की टीम मजबूत हो। उन्होने यह भी बताया की हार्ट स्ट्रोक की जागरूकता आ चुकी है परन्तु स्ट्रोक के प्रति जागरूक होना बहुत जरूरी है। यह भी बताया कि ब्रेन हेमरेज का एक प्रकार है कि जिसमें नसों में गुब्बारा बन जाता है जो कि मरीज के लिए गम्भीर अवस्था है जिसमें वह कोमा में भी जा सकता है।

रामलाल उम्र 42 वर्ष मनवाखेड़ा के रहने वाले उन्होंने बताया कि 2013 एवं 2014 में उन्हे दो बार स्ट्रोक आया था। पहले शुरूआत में उन्हे सिर में लगा कि कोई ब्लास्ट हुआ हो फिर उन्हे हॉस्पिटल लाया गया एवं ऑपरेशन किया गया। 10 से 15 दिनों में वे घर पर चले गये एवं 1 माह बाद स्वयं गाड़ी चला कर डॉक्टर से मिलने आये। उन्होंने अपना यह अनुभव साझा करते हुए बताया की सही समय पर सही हॉस्पिटल चुनने से आज वह आम लोगों की तरह अपना जीवनयापन कर रहें।

स्ट्रोक से ठीक हुई जशोदा बाई के पति ने हॉस्पिटल का आभार प्रकट करते हुए कहा कि आज से 1 1 महीने पहले जब जशोदा बाई को स्ट्रोक आया उसके पहले वह सारे कार्य किया करती थी। एक दिन चक्कर आने पर गिर गई तब वह तुरन्त अपनी पत्नि को गीतांजली हॉस्पिटल लेकर आये वहां डॉक्टर द्वारा तरन्तु निर्णय लेने पश्चात उनका ऑपरेशन किया गया। डॉक्टरों की टीम द्वारा धैर्य बंधाने के बाद वह धीरे-धीरे ठीक होती गई। आज वह बिल्कुल स्वस्थ्य है और वह अपने सभी दिनचर्या वाले कार्य पूर्णरूप से कर रही है।

कार्यक्रम के दौरान दर्शकों द्वारा स्ट्रोक से संबंधित सवाल पूछे गये जिसका जवाब उपस्थित सभी न्यूरो साईन्स एक्सर्पट ने बड़े रूझान के साथ दिया।

अंत में कार्यक्रम का समापन करते हुए गीतांजली हॉस्पिटल के सीईओ प्रतीम तम्बोली ने कहा कि स्ट्रोक एक ऐसी समस्या है जो कि दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। स्ट्रोक के परिणाम समय पर इलाज न होने पर गंभीर हो सकते है जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। इस जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से यही संदेश देना चाहते है कि समय रहते रोगी के लक्षणों को पहचानकर उसे स्ट्रोक रेडी हॉस्पिटल में लेकर जायें। ताकि रोगी को सही समय पर उपचार मिल सकें। इस कार्यक्रम में एक्सपर्ट ने जो चर्चा की और जो रियल लाईफ हिरोज् ने अपनी आपबीती साझा की वह बहुत ही सराहनीय कदम है।


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