“स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती जी की मृत्यु आर्यसमाज की महान क्षति”

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Published on : 24 Oct, 19 06:10

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती जी की मृत्यु आर्यसमाज की महान क्षति”

आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तर प्रदेश, लखनऊ के यशस्वी सभामंत्री स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती जी का आज दिनांक 23-10-2019 को निधन हो गया। कुछ देर पहले ही यह समाचार हमें गुरुकुल पौंधा के एक ब्रह्मचारी की फेसबुक पोस्ट से ज्ञात हुआ। उसके बाद अन्य अनेक लोगों के इस सम्बन्ध में समाचार देखने को मिले। हम विचार करते हैं तो ज्ञात होता है कि स्वामी जी की यह मृत्यु असामयिक प्रतीत होती है। उन्हें न कोई रोग था और न ही कोई पथ दुर्घटना आदि मृत्यु का कारण बना। हमें अपने विश्वसनीय मित्रों से ज्ञात हुआ है कि स्वामी जी को तीव्र हृदयाघात हुआ जिसे स्वामी जी की आत्मा सहन नहीं कर सकी। वेद और गीता के कुछ श्लोकों में जन्मधारी सभी प्राणियों की मृत्यु सृष्टि का सर्वमान्य प्रत्यक्ष ज्ञान से अनुभव सिद्ध सिद्धान्त है। किसी भी मनुष्य या प्राणी का आत्मा अनेक कारणों से अचानक ही वियुक्त हो जाती है। हृदयाघात का रोग ऐसा रोग है कि इसमें अचानक ही मृत्यु होती है। आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तरप्रदेश के पूर्व प्रधान और देहरादून निवासी हमारे मित्र श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य जी को भी घर पर ही हृदयाघात हुआ था और अस्पताल पहुंचने से पूर्व ही मृत्यु हो गई थी। शायद उनको यह दूसरा हृदयाघात था। हमारे अनन्य मित्र श्री शिवनाथ आर्य जी, देहरादून भी हृदयाघात से हमसे दूर चले गये थे। उन्हें शायद एक ही दिन में तीन बार हृदयाघात हुए थे। तीसरा हृदयाघात रात्रि परिवार के सदस्यों एवं अतिथियों के साथ गपशप करते हुए हुआ जिससे उनकी रक्षा न हो सकी थी। हमारे पिता व माता भी हृदयाघात से ही मरे। हृदयाघात से होने वाली मृत्यु प्रायः असम्भावित होती है इस कारण से हानि अधिक होती है और दुःख भी अधिक होता है। स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती जी का जाना आर्यसमाज में एक अभाव उत्पन्न कर गया है जिसकी पूर्ति होना सम्भव नहीं दिखाई देता। विगत कुछ ही वर्षों में हम आर्यसमाज की कई विभूतियों को खो चुके हैं। स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती जी सहित डा0 धर्मवीर जी अजमेर, आचार्य ज्ञानेश्वर जी रोजड तथा पं0 कुशलदेव शास्त्री, महाराष्ट्र भी पिछले कुछ ही वर्षों में हमसे दूर चले गये हैं। यह चारों विद्वान मृत्यु से पूर्व स्वस्थ प्रायः थे और बहुत तेजी व गति से ऋषि का कार्य कर रहे थे। इनसे आर्यजगत को बहुत आशायें एवं अपेक्षायें थीं। उन सारी आशाओं पर पानी फिर गया है। इसके साथ ही कुछ यशस्वी वयोवृद्ध विद्वान डा0 रामनाथ वेदालंकार, डा0 भवानीलाल भारतीय, पं0 राजवीर शास्त्री भी विगत कुछ वर्षों में हमसे दूर चले गये हैं। इन महान आत्माओं ने आर्यसमाज की जो सेवा की है, उसे भुलाया नहीं जा सकता। इन सभी का जाना आर्यसमाज के लिये हानिप्रद रहा है। इनका स्थान लेने वाले लोग हमें दृष्टिगोचर नहीं हो रहे हैं।

 

                                स्वामी धर्मेश्वरानन्द जी ने मंझावली में स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती के साथ ही संन्यास लिया था। इस आयोजन में हम भी सम्मिलित हुए थे। स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने इन्हें संन्यास की दीक्षा दी थी। स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती गुरुकुल ततारपुर के आचार्य थे और वहीं से कुछ वर्ष पूर्व सेवानिवृत हुए थे। स्वामी जी ने गुरुकुल पूंठ की स्थापना की थी। इस गुरुकुल के एक ब्रह्मचारी श्री हेमन्त शास्त्री थे। एक बार हमें गुरुकुल पौंधा के उत्सव में आचार्य हेमेन्त शास्त्री जी का एक भजन सुना था। भजन जिस अन्दाज में तथा समर्पण के साथ गाया गया था वह हमारे जीवन के श्रेष्ठ भजनों में एक भजन बन गया है। सौभाग्य से हमने पूरा भजन मोबाइल फोन में रिकार्ड कर लिया था। हमने इसे कई बार फेसबुक पर भी डाला है। वहां सहस्रों मित्रों ने इसे पसन्द किया है। इस भजन को हमने कल पुनः फेसबुक पर पोस्ट किया था जिसे तेजी से लोग देख रहे हैं। व्हटशप के लगभग 25 गु्रपों में भी हमने इस भजन को प्रस्तुत किया है। हमें लगता की हेमन्त शास्त्री स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती जी को समाज एक अद्भुद देन है। कुछ वर्ष बाद स्वामी धर्मेश्वरानन्द जी से हमारी इस भजन व इसके गायक श्री हेमन्त शास्त्री जी के विषय में चर्चा हुई थी। स्वामी जी ने बताया था कि वह पूना चले गये हैं। शायद वह किसी संगीत के कार्य से जुड़ गये थे। स्वामी जी हेमन्त शास्त्री की प्रतिभा को जानते थे और उन्होंने उनकी भजन गायन एवं संगीत में प्रवीणता की प्रशंसा की थी।

 

                स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती जी को हमने गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली तथा गुरुकुल पौंधा देहरादून के उत्सवों में अनेक बार सुना है। स्वामी जी का व्यक्तित्व आकर्षक लगता था। उनका शरीर भगवा वस्त्रों सहित सफेद दाढ़ी में अति शोभायमान होता था। उन्होंने गुरुकुल झज्जर में शिक्षा प्राप्त की थी। स्वामी प्रणवानन्द जी इसी गुरुकुल के उनसे वरिष्ठ छात्र थे। तभी से दोनों में मित्रता हो गई थी। स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती जी को हमने स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती के गुरुकुलों के सभी आयोजनों में देखा है व उनके प्रवचनों को सुना है। वह जो बोलते थे वह सटीक एवं महत्वपूर्ण होता था। हमने उनके 15-20 प्रवचनों से अधिक को सुना है तथा उन्हें अपनी लेखनी से शब्दबद्ध कर उसे फेसबुक, व्हटशप सहित इमेल से अपने सभी मित्रों को यथासमय प्रेषित किया है। एक बार गुरुकुल गौतमनगर दिल्ली में हम उनका यज्ञ पर व्याख्यान सुन रहे थे। स्वामी जी ने तब बहुत ही महत्वपूर्ण भाषण दिया था। उसका प्रभाव आज भी हमारे मन व मस्तिष्क पर है। तब हम किसी कारण उसे नोट नहीं सके थे। हमें उनका व्याख्यान नोट न करने का दुःख बना रहा जब जब हमने यत्र-तत्र उनके भाषणों को सुना। अनेक अवसरों पर हमने स्वामी धर्मेश्वरानन्द जी से भेंट भी की और अनेक विषयों पर उनसे चर्चा की थी। फोन पर भी कुछ चर्चा करने का हमें अवसर मिला था। अब उनके चले जाने से हम उनके स्नेह और उनके व्याख्यानों के लाभ से वंचित हो गये हैं।

 

                वर्तमान में स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती जी आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तर प्रदेश के प्रधान थे। हम इमेल से सभा के साप्ताहिक पत्र को अपने लेख प्रतिदिन भेजते आ रहे हैं। पिछले कई वर्षों से हमारे लेख ‘‘आर्यमित्र” पत्र में प्रकाशित होते आ रहे हैं। हमें पता नहीं कि इसका कारण क्या था? परन्तु हम अनुभव करते हैं कि स्वामी जी का हमारे प्रति जो स्नेह भाव था वह इसका प्रमुख कारण हो सकता है। स्वामी जी की मृत्यु से पूर्व तक वह स्वस्थ प्रायः थे। उन्होंने अपने मित्रों से भी अपनी किसी शारीरिक व्याधि की चर्चा नहीं की थी। ऐसे में अचानक हृदयाघात हो जाना आश्चर्यजनक एवं दुःखद है। कुछ प्रारब्ध, कुछ भोजन आदि की अनियमिता, यात्राओं की अधिकता तथा कुछ संस्थाओं के कामों के तनाव आदि अनेक कारण उनकी मृत्यु के हो सकते हैं। इन पर चर्चा करने से अब कोई लाभ नहीं है।

 

                विगत दिनों 11 अक्टूबर से 13 अक्टूबर 2019 तक काशी में ‘‘काशी-शास्त्रार्थ” के 150 वर्ष पूरे होने पर एक आर्य महासम्मेलन का आयोजन किया गया। इस वृहद आयोजन में दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली तथा आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तर प्रदेश, लखनऊ का मुख्य योगदान था। हमारे अनेक मित्र इस आयोजन में सम्मिलित हुए थे। वीडियों पर देखे व सुने समाचारों व जानकारियों तथा अपने मित्रों की सूचना के अनुसार यह कार्यक्रम अत्यन्त सफल रहा था। हमें लगता है कि स्वामी धर्मेश्वरानन्द जी व उनकी सभा का दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली को इस सम्मेलन के आयोजन में सहयोग करना आर्यसमाज के लिये एक शुभ संकेत था। हमें लगता है कि आर्य प्रतिनिधि सभा, उ0प्र0 ने दोनों सार्वदेशिक सभाओं का सहयोग करके एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया है। ऋषि के किसी काम में बाधा नहीं आनी चाहिये। सभी नेताओं को मतभेदों को भुलाकर ऋषि दयानन्द और वैदिक धर्म एवं संस्कृति की रक्षा के कार्य करने चाहियें। हमें लगता है कि स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज हमें यह सन्देश दे गये हैं। उनके असामयिक निधन पर हम उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि स्वामी जी की पवित्र आत्मा को किसी अच्छे आर्यसमाजी परिवार में जन्म मिले जिससे वह वैदिक धर्म व संस्कृति की रक्षा का कार्य मृत्यु के बाद भी जारी रख सकें। ओ३म् शम्।

            -मनमोहन कुमार आर्य

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