इस अवसर पर वैज्ञानिकों को सम्बोधित करते हुए एमपीयूएटी के कुलपति डॉ. नरेन्द्र सिंह राठौड़ ने कहा कि हमारा विश्वविद्यालय कृषि अनुसंधान में अग्रणी है। हमारे वैज्ञानिकों को समन्वय व सामंजस्य से विश्वविद्यालय की प्रोद्यौगिकी कृषकों तक पहुंचाने की आवश्यकता है। दक्षिणी राजस्थान में वर्षा के कुल दिन कम हो रहे है तथा अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान की तीव्रता बढ़ रही है। इसके मध्यनजर फसलों की नई तकनीकों का विकास करना वैज्ञानिकों की प्राथमिकता होनी चाहिए तथा गुणवत्तायुक्त बीजों के उत्पादन पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
डॉ. एस.एस.चहल, पूर्व कुलपति, मप्रकृप्रौविवि ने वैज्ञानिकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय को अपने उत्कृष्ट क्षेत्रों को चिन्हित कर उस अनुरूप अपनी कार्य योजना बनानी चाहिए तथा जिन फसलों का उत्पादन इस क्षेत्र में अच्छा हो रहा है, उसका क्षेत्रफल बढ़ाना चाहिए। साथ ही समन्वित कृषि पद्धति को महत्व दिया जाना चाहिए। विश्वविद्यालय को लघु व सीमांत कृषकों के लिए प्रौद्योगिकी विकसित करनी होगी तथा नवीन विषयों जैसे जैव-प्रौद्योगिकी व नैनो-टेक्नोलोजी पर कार्य करना होगा। देश में अग्रणी होने के लिए उन्होंने ‘विजन डाक्यूमेंट‘ बनाने की आवश्यकता भी बताई।
बैठक में विषेष रूप से आमंत्रित कृषि वैज्ञानिक आसाम कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. के. एम. बजरबरूहा ने कहा कि आज कृषि क्षेत्र की सीधी प्रतियोगिता गैर-कृषि क्षेत्र द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों से है, जो कृषि को व्यावसायिक रूप दे रहे हैं। ऐसे में हमें अपने आप को मजबूत करना होगा तथा हमारी प्रौद्योगिकियों को उपयुक्त रणनीति बनाने, फसल उन्नयन, सीड़ हब, कृषि बिजनेस इन्क्यूबेशन सेन्टर पर कार्य करने व आय बढ़ाने की आवश्यकता पर बल देना होगा। उन्होनें शस्य क्रियाओं के प्रबन्धन तकनीकों का किसानों तक प्रसार करने, अनुसंधान प्रयोगों की सटीक योजना निर्माण एवं क्रियान्वयन करने हेतु वैज्ञानिकों का आहवान् किया।
बैठक के प्रारम्भ में अनुसंधान निदेशक डॉ. अभय कुमार महता ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया एवं 19 नवम्बर, 2018 की विगत बैठक में लिये गये निर्णयों की अनुपालना रिपोर्ट एवं विश्वविद्यालय के कृषि अनुसंधान पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। कृषि अनुसंधान केन्द्र, उदयपुर के क्षैत्रीय निदेशक डॉ. एस. क.े शर्मा, कृषि अनुसंधान केन्द्र, बाँसवाड़ा के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. पी. के. रोकड़िया ने अपने क्षैत्र में किये जा रहे अनुसंधान कार्यो एवं परिणामों पर प्रस्तुतिकरण दिया।
बैठक में निर्णय लिया गया कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किस्मों, बायोपेस्टीसाइड, जैव उर्वरक, मशीनों आदि के वृहत स्तर पर प्रचार-प्रसार एवं वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर गठन की अनुशंषा की गई। बैठक के प्रारम्भ में क्षैत्रीय निदेशक अनुसंधान डॉ. शान्ति कुमार शर्मा ने अतिथियों का स्वागत एवं कार्यक्रम का संचालन किया तथा धन्यवाद भी दिया। बैठक में विश्वविद्यालय के निदेशक, सभी संघटक महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, क्षैत्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्रों के निदेशक व कृषि विज्ञान केन्द्रों के वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि व मत्स्य विभाग राजस्थान सरकार के अधिकारी भी उपस्थित थे।