“एक जंगल में नई बस्ती बसा दी (दयानंद) तुने जोंक पत्थर पे नहीं लगती लगा दी तुने: राष्ट्रकवि डा0 सारस्वत मोहन मनीषी”

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Published on : 21 Oct, 19 11:10

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“एक जंगल में नई बस्ती बसा दी (दयानंद) तुने जोंक पत्थर पे नहीं लगती लगा दी तुने: राष्ट्रकवि डा0 सारस्वत मोहन मनीषी”

वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के शरदुत्सव के चैथे दिन रात्रि 8.00 बजे से राष्ट्रकवि डा0 सारस्वत मोहन मनीषी जी के नेतृत्व में एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में 8 कवियों ने अपनी अपनी कविताओं से श्रोताओं को ईश्वर-भक्ति, दयानन्द जीवन एवं उनकी भक्ति सहित समाज के विभिन्न विषयों को लक्षित कर अपनी प्रभावशाली एवं उत्साहवर्धक रचनायें प्रस्तुत कीं। इस सम्मेलन के मुख्य अतिथि देहरादून नगर निगम के महापौर श्री सुनील उनियाल गामा जी थे। उन्होंने भी कुछ कवियों को सुना और अपने विचार भी व्यक्त किये। आश्रम की ओर से उनका व समस्त कवियों का शाल, ओ३म् पट्ट सहित स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया गया। सम्मेलन इतना रोचक था कि लोगों की मांग पर रात्रि 11.15 बजे तक भी कुछ लोग सम्मेलन को जारी रखने की मांग कर रहे थे। आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने भविष्य में भी प्रो0 डा0 सारस्वत मोहन मनीषी जी के माध्यम से दीर्घावधि का कवि सम्मेलन आयोजित करने का प्रयास करने का आश्वासन दिया।

 

                कार्यक्रम के आरम्भ में आर्यसमाज के प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री रुहेलसिंह आर्य जी को एक भजन प्रस्तुत करने के लिये आमंत्रित किया गया। उन्होंने डा0 सारस्वत मोहन मनीषी जी की एक रचना को अपने प्रभावशाली अन्दाज में गाकर सुनाया। इस प्रसिद्ध रचना के शब्द थे ‘एक जंगल में नई बस्ती बसा दी तुने जोंक पत्थर पर नहीं लगती लगा दी तुने। सच तो यह है कि किया काम निराला ऐसा। आग पानी में दयानन्द लगा दी तुने।’ श्री रुहेल सिंह जी ने एक अन्य भजन भी सुनाया जिसके बोल थे ‘नौजवानी काम आयेगी वतन के वास्ते जैसे बुलबुल जान देती है चमन के वास्ते।।’ इन दोनों गीतों वा भजनों को श्रोताओं ने करतल ध्वनि करके खूब सराहा। इसके बाद आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने कवि सम्मेलन के आयोजन की भूमिका पर प्रकाश डाला और सम्मेलन में भाग ले रहे कवियों के नाम श्रोताओं को अवगत कराये। सम्मेलन में अपनी प्रभावशाली रचनाओं को प्रस्तुत करने वाले कवियों में श्री धर्मेश अविचल, श्री बागी चाचा, श्री सत्येन्द्र सत्यार्थी, बहिन सुधा शुद्धि एवं मो0 इकबाल प्रमुख कवि थे। कार्यक्रम का आरम्भ मनीषी जी ने ओ३म् विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव वेद मन्त्र को बोलकर किया। उन्होंने एक व्यंग प्रसंग सुनाया जिसके अनुसार एक नेताजी ने विदेश प्रवास पर जाने से पूर्व एक बैंक के मैनेजर से लौकर की उपलब्धता के बारे में पूछताछ की। मैनेजर ने उसे अपने सभी छोटे बड़े लाकर दिखाये। नेताजी ने कहा कि उन्हें इनसे कहीं बड़ा लाकर चाहिये। मैनेजर ने पूछ लिया कि आप उसमें रखना क्या चाहते हैं? नेताजी ने कहा कि वह उसमें अपनी कुर्सी रखकर विदेश जाना चाहते हैं। पता नहीं मेरे वापिस आने तक वह कुर्सी सुरक्षित मुझे मिल पायेगी या नहीं? मनीषी जी ने बताया कि दिल्ली के लालकिले के प्रांगण में प्रत्येक वर्ष 23 जनवरी को कवि सम्मेलन का अयोजन होता है जिसका अगले दिन दूरदर्शन पर प्रसारण किया जाता है। उन्होंने कहा कि आज का कवि सम्मेलन लालकिले के सम्मेलन से भी बढ़िया होगा। उन्होंने यह भी बताया कि अब उन्होंने इस कवि-सम्मेलन की गुणवत्ता के कारण उसमें जाना बन्द कर दिया है।

 

                डा0 सारस्वत मोहन मनीषी जी ने बहुत अच्छी भूमिका प्रस्तुत कर कवि सम्मेलन को आरम्भ किया। उन्होंने अनेक अच्छे, रोचक व प्रभावशाली हास्य-व्यंग के चुटकुले सुनाये। कवि सम्मेलन का आरम्भ गायत्री मन्त्र के उच्चारण से हुआ। उन्होंने गायत्री मन्त्र के स्वरचित हिन्दी काव्य पाठ को भी प्रस्तुत किया। उसके आरम्भिक बोल थे ‘हे परमेश्वर प्राणस्वरूपा, सकल चराचर जगत के स्वामी, सर्वप्रकाशक अन्तर्यामी, जग के जीवन के आधार। कष्ट विनाशक न चटकारा, सब में व्यापक सबसे न्यारा, उत्पादक है स्व प्रदाता’। श्रोताओं को मनीषी जी ने कहा कि आप कविता के किटाणु हैं। उन्होंने अपनी एक कविता सुनाई जिसकी आधी पंक्ति वह बोल रहे थे तथा शेष को श्रोता पूरी कर रहे थे। कविता थी ‘हसंना भी जरुरी है रोना भी जरुरी है। जगना भी जरुरी है सोना भी जरुरी है। पाना भी जरुरी है खोना भी जरुरी है। खेतों में बन्दुकें बोना भी जरुरी है। सम्मान जरुरी है अपमान जरुरी है। अभिशाप जरुरी है वरदान जरुरी है। आजादी आती है बलिदान जरुरी है। चाहो जो अमर होना विषपान जरुरी है।’ मनीषी जी ने बताया कि दोहे में बड़ी से बड़ी बात को कम से कम शब्दों में कहा जाता है। इस भूमिका से जनता में कविता सुनने के प्रति उत्साह उत्पन्न हो गया। उन्होंने प्रथम कवि श्री धर्मेश अविचल, गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ को अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिये आमंत्रित किया।  

 

                युवा कवि श्री धर्मेश अविचल जी ने कहा कि अधिक भीड़ कौरवों की होती है तथा थोड़ी भीड़ पाण्डवों की होती है। आर्यसमाज और सत्यार्थ प्रकाश का महत्व दर्शाती उन्होंने एक कविता का पाठ किया। कविता के कुछ शब्द थे ‘गिरने से मैं बच न सका इसका अद्भुद राज, महिमा समझी ओ३म् की जाकर आर्यसमाज। धरती से ज्यों ऊपर उठा छूने को आकाश, सारे संशय कट गये पढ़ सत्यार्थप्रकाश। पढ़िये गुनिये समझिये रहिये नहीं हताश, श्रेष्ठ मार्ग मिल जायेगा पढ़ सत्यार्थप्रकाश।’ इस कविता को कवि ने जिस अन्दाज व जोश में भरकर प्रस्तुत किया उससे सम्मेलन का महौल काफी उत्साह एवं प्रसन्नता से भर गया। इसके बाद उन्होंने अपनी अनेक रचनायें प्रस्तुत की जो एक से बढ़कर एक थीं। हमें लग रहा था कि इनकी ही कविता देर तक सुनते रहे परन्तु कुछ समय बाद उन्होंने अपनी वाणी को विराम दिया और अपने आसन पर स्थित हो गये।

 

                आज के कवि सम्मेलन में देहरादून के महापौर मुख्य अतिथि थे। वह पधार चुके थे। इसी बीच मनीषी जी ने कहा कि अंग्रेजी में सूर्य का अर्थ बोधक एक ही शब्द सन अर्थात् sun है। उन्होंने बताया कि संस्कृत में सूर्य के 1000 से अधिक पर्यायवाची शब्द हैं। आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा ने अपने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर मुख्य अतिथि महोदय श्री सुनील उनियाल गामा का अभिनन्दन करते हुए उन्हें शाल, ओ३म् पट्ट तथा स्मृति चिन्ह भेंट किया। कवि सम्मेलन का संचालन कर रहे मनीषी जी ने इस बीच कहा कि ‘पावक की लपटो में पड़कर सोना कुन्दन बन जाता है।’ मनीषी जी ने दूसरी कवित्री बहिन सुधा संजीवनी जी को आमंत्रित किया। सुधा जी ने मनीषी जी के अनेक गुणों का वर्णन किया और कहा कि मैंने किसी को अपना गुरु माना है तो वह डा0 सारस्वत मोहन मनीषी जी हैं। उनके द्वारा सुनाई गई एक महत्वपूर्ण कविता के कुछ बोल इस प्रकार थे ‘धरा तब तक जब तक यहां इंसान जिन्दा है। जिसमें इमान जिन्दा है वही इंसान जिन्दा है। वतन की आन पर जो जान को कुरबान कर देते। उन्हीं बलिदानियों से ही ये हिन्दुस्तान जिन्दा है।’ सुधा संजीवनी जी ने दयानन्द जी पर एक कविता का पाठ करते हुए कहा ‘यूं तो पाखण्ड रूढ़िया जानी न थीं। लोग थे पर बातें रूहानी न थी। यदि न होते ऋषि दयानन्द, नारी की कोई जिन्दगानी न थी। चार दीवारियों में वह दबोची गई। ....’ उन्होंने यह भी कहा कि सृष्टिकर्ता ही जगत का आधार है। उन्होंने एक कविता पढ़ी जिसके कुछ शब्द थे ‘हृदय के भाव कह जाऊं उसी का नाम है कविता। पराया दर्द हर लाऊ उसी का नाम है कविता। खिला दूं किसी भूखे को अपने पेट की रोटी। मैं भूखी सो जाऊं उसी का नाम है कविता।’ सुधा जी ने जो कविता सुनाई उसमें राष्ट्रवाद तथा देशभक्ति के स्वर मुखर दिखाई दिये। उनकी एक कविता की पंक्तियां थीं ‘प्यार भरा दिल पूजो पूजने के लिए पत्थर की जरूरत क्या है? वक्त आये तो वतन पे जान दे दो .......’ सुधा जी ने अनेक प्रभावशाली कवितायें सुनाई। उनकी भाव भंगिमा उनकी कविताओं में समाज को शिक्षा देने की भावना के साथ श्रोताओं को कविता का एक एक शब्द सुनने के लिए बाध्य कर रहे थे। हम बहिन सुधा जी की कविताओं को और सुनना चाहते थे परन्तु समय समाप्ति की ओर जा रहा था और अन्य कई कवियों को सुनना था। अतः उन्होंने अपनी कविताओं को विराम दे दिया।

 

                इसके बाद मनीषी जी ने एक कविता को पूरा करते हुए सुनाया ‘मस्तक भी जरुरी है चन्दन भी जरुरी है। करुणा भी जरुरी है क्रन्दन भी जरुरी है। चुड़ी भी जरुरी है कंगन भी जरुरी है। चिन्ता भी जरुरी है चिन्तन भी जरुरी है।’ मनीषी जी ने इस कविता की पंक्तियों को महापौर श्री सुनील उनियाल गामा जी को समर्पित किया। महापौर जी ने अपने संक्षिप्त संबोधन में कहा ‘मैं कवि सम्मेलन में सम्मिलित सभी कवियों तथा आश्रम के अधिकारियों का अभिनन्दन करता हूं। उन्होंने कहा कि जब मैं आर्यसमाज के कवि-सम्मेलनों में जाता हूं तो मेरा हौंसला बढ़ता है। उन्होंने कहा कि मैं आर्यसमाज के कार्यक्रमों में सहज भाव से जाता हूं। महापौर श्री गामा ने सभी कवियों का आभार व्यक्त किया और उन कवियों से मिलने के लिये स्वयं को भाग्यशाली बताया। श्री गामा ने कहा कि हमारा लक्ष्य देहरादून को प्लास्टिक से मुक्त करने का है। उन्होंने इस कार्य को प्रेरणा देने वाले प्रधानमंत्री मोदी जी को भी याद किया। उन्होंने देहरादून को एक अच्छा नगर बनाने का अपना इरादा जताया और कहा कि हम प्लास्टिक की बोतल में जो जल पीते हैं वह हानिकारक होता है। महापौर जी ने कहा कि प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का प्रयोग करने से कैसर जैसे रोग होते हैं। सिंगल यूज प्लास्टिक को प्रयोग में लाने के बाद हम फेंक देते हैं। यह एक सौ वर्ष की अवधि में भी नष्ट नहीं होता है और पर्यावरण के लिए खतरा बनता है। उन्होंने सिंगल यूज प्लास्टिक को पूर्णतया त्याग देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हमें देहरादून के पुराने शुद्ध वातावरण को पुनः बहाल करना है। इसके साथ ही उन्होंने सभी कवियों व आश्रम में देश के अनेक भागों से पधारे सभी ऋषि भक्तों का धन्यवाद किया। अपनी टिप्पणी में मनीषी जी ने कहा कि चिन्ता रूपी दैत्य से तभी मुक्त हो पायेंगे जब हम चिन्तन करेंगे। उन्होंने स्वरचित पंक्ति गाईं। ‘हम बल बन जायेंगे बलवान तिरंगें का। होने न कभी देंगे अपमान तिरंगे का। डा. सारस्वत मोहन मनीषी जी ने प्रधानमंत्री मोदी जी पर अपनी एक प्रभावशाली कविता भी प्रस्तुत की। मनीषी जी ने इसके बाद देहरादून के एक अन्य कवि मुहम्मद इकबाल को कविता पाठ के लिए आमंत्रित किया।

 

                श्री मोहम्मद इकबाल ने कहा कि ऐसा कोई व्यक्ति नहीं हो सकता जिसकी महर्षि दयानन्द के प्रति श्रद्धा न हो। उनको श्रद्धांजलि के रूप में उन्होंने अपनी कविता की पंक्तियां प्रस्तुत की। ‘तीनों लोक दयानन्द के उपकारों पर निर्भर हैं, महा ऋषि हैं सरस्वती हैं वह तो दया का सागर हैं। सत्य का प्रकाश किया तो इस जग से अन्धकार मिटा। वह वेदों के उद्धारक हैं और हम सब के वो रहबर हैं।’ दयानन्द जी पर हीं उनकी कुछ पंक्तियां यह भी थीं ‘लोग गिरने से पहले सम्भलने लगे। आदमी क्या है? पत्थर भी पिघलने लगे। ढ़ोंगी कर देंगे खुद अपना व्यापार बन्द जो दयानन्द के पथ पर चलने लगे।’

 

                कवि सम्मेलन के अगले युवा कवि डा0 सत्येन्द्र सत्यार्थी जी ने भी ऋषि दयानन्द को अपने श्रद्धा सुमन भेंट किये। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द त्याग के व तप के प्रतीत महापुरुष हैं। इसके बाद आपने ऋषि दयानन्द पर तथा देशभक्ति की अनेक कवितायें प्रस्तुत कीं। आपकी सभी कवितायें अत्यन्त गहन भावों से युक्त तथा आर्य वा वैदिक विचारों की पोषक थी। हम उनकी अन्य कविताओं को नोट नहीं कर सके। इसके बाद एक अन्य कवि बागी चाचा ने अपनी कवितायें प्रस्तुत की। इनकी कविताओं में एक कविता पत्नी का अपने पति को मुर्गा बनाने और धीरे धीरे वह घटना सर्वत्र फैल जाने की हास्य भावना से युक्त थी। डा0 सारस्वत मोहन मनीषी जी के विषय में उन्होंने बताया कि उनके 14 काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और लगभग 40 लोग उन पर पी0एचडी0 कर चुकें हैं वा कर रहे हैं। आपकी पुस्तकें एम0ए. कक्षाओं में भी निर्धारित हैं। आपने एक कंजूस व्यक्ति के जीवन से सम्बन्धित हास्य कविता का पाठ भी किया जिसने श्रोताओं का खूब मनोरंजन किया। बच्चों की पढ़ाई और उनकी परीक्षा पर भी आपने एक बहुत दिलचस्प एवं हास्य रस प्रधान कविता सुनाई। इसको याद करके हमें अपने मन में अब भी गुदगुदी का अनुभव हो रहा है।

 

                कवि सम्मेलन में आर्यसमाज के प्रसिद्ध विद्वान और तीन वेद यजुर्वेद, सामवेद तथा अर्थववेद का काव्यात्मक भाष्य वा काव्यानुवाद करने वाले कवि श्री वीरेन्द्र राजपूत भी आमंत्रित थे। आप इन दिनों ऋग्वेद का काव्यानुवाद कर रहे हैं। आपने अनेक काव्य संग्रह भी लिखे हैं। बन्दा बैरागी और पं0 गुरुदत्त विद्यार्थी के जीवन पर भी आपने काव्य शैली में पुस्तकें लिखी हैं। आपने अपनी पुस्तक ‘बांध फिर कफन चलो’ से एक कविता प्रस्तुत की जिसकी प्रथम पंक्ति थी ‘देश पर संकट आया है, नया परिवर्तन आया है।’

 

                श्रीमती राज सरदाना ने भी अपनी एक ओजस्वी कविता प्रस्तुत की। उनके द्वारा प्रस्तुत कविता कवि सम्मेलन के सर्वथा अनुरूप थी। आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने सभी कवियों सहित कवि सम्मेलन के संयोजक डा0 मनीषी जी का धन्यवाद किया। शर्मा जी ने सभी श्रोताओं को कवि सम्मेलन में रूचि लेने व सफल बनाने के लिये धन्यवाद किया। इसके बाद मनीषी जी कार्यक्रम को समाप्ति की ओर ले गये। उन्होंने ऋषि जीवन की अपनी चर्चित कविता ‘एक नई बस्ती बसा दी तुने जोंक पत्थर में नहीं लगती लगा दी तुने’ सहित देश भक्ति की अनेक भावपूर्ण कविताओं को जोश व उत्साह में भरकर प्रस्तुत किया। इस अवसर पर सभी कवि व श्रोताओं ने खड़े होकर मनीषी जी के स्वर में स्वर मिलाकर व जोश में भरकर उसका गायन किया। इससे वातावरण बहुत ही श्रद्धा, उत्साह एवं देशभक्ति का बन गया था। जीवन में हमें पहली बार इस प्रकार से आनन्ददायक कवि सम्मेलन में उपस्थित होकर कविताओं को सुनने का अवसर मिला। आगरा से पधारे वैदिक विद्वान आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी सभी कवियों की रचनाओं से बहुत प्रभावित हुए। दिनांक 20-10-2019 को प्रातः तपोवन में शरदुत्सव की समापन दिवस के अवसर पर मनीषी जी व उनके सहयोगी कवियों की उपस्थिति में कवि सम्मेलन को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया और सभी कवियों को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने कवि सम्मेलन में ऋषिभक्ति और देशभक्ति की ऐसी उच्च कोटि की रचनाओं का अनुमान नहीं किया था। उन्होंने सभी कवियों के प्रति अपना आभार व्यक्त किया। मनीषी जी ने कवि सम्मेलन को महामृत्युंजय मन्त्र सहित उसके हिन्दी काव्य पाठ के साथ समापन किया। इसका गायन सभी कवियों एवं श्रोताओं ने खड़े होकर किया। अन्त में शान्ति पाठ भी किया गया। हम अपनी ओर से यह निवेदन करना चाहते हैं कि हमें इस उच्च भावनाओं वाले कवि सम्मेलन को भली प्रकार से प्रस्तुत करने का न तो ज्ञान है न ही हमारी योग्यता इसके लिये उपयुक्त है। अतः हम सभी कवियों एवं मनीषी जी से इसके लिये क्षमा प्रार्थी हैं। हमें इस कवि सम्मेलन में बहुत आनन्द आया, इसकी हमें प्रसन्नता एवं सन्तोष है। हम सभी कवियों का धन्यवाद करते हैं। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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