“मनुष्य जीवन भर सीखता है, जो सीखना बन्द कर देता है उसकी उन्नति रुक जाती हैः प्राचार्य बी0के0 सिंह”

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Published on : 18 Oct, 19 05:10

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“मनुष्य जीवन भर सीखता है, जो सीखना बन्द कर देता है उसकी उन्नति रुक जाती हैः प्राचार्य बी0के0 सिंह”

वैदिक साधन आश्रम तपोवन-देहरादून का पांच दिवसीय शरदुत्सव बुधवार दिनांक 16-10-2019 को आरम्भ हुआ। उत्सव के पहले दिन प्रातः 10.00 बजे से आश्रम द्वारा संचालित ‘तपोवन विद्या  निकेतन तपोवन जूनियर हाईस्कूल, देहरादून’ की ओर सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये। आश्रम के शरदुत्सव में पधारे हुए विद्वानों व साधकों सहित स्कूल के 400 बच्चों एवं उनके अभिभावगण भी उपस्थित थे। इस आयोजन के मुख्य अतिथि देहरादून के प्रसिद्ध हड्डी रोग विशेषज्ञ डा0 बी0के0एस0 संजय एवं दिल्ली पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य श्री बी0के0 सिंह जी थे। आयोजन का आरम्भ भजनोपदेशक श्री आजाद सिंह आजाद के एक गीत ‘दयानन्द आर्य जाति का उपकार कर गया’ सुनाया। इसके बाद दीप प्रज्जवन हुआ जिसमें मुख्य अतिथि सहित आश्रम के अधिकारियों एवं अन्य वैदिक विद्वानों ने भी सहयोग किया। इस आयोजन की पहली प्रस्तुति नर्सरी कक्षा एवं कक्षा-1 के बच्चों का नृत्य था जिसमें उन्होंने प्रसिद्ध बाल गीत ‘नानी तेरी मोरनी को मोर ले गये बाकी जो बचा था काले चोर ले गये।’ पर मनमोहक नृत्य किया। दूसरी प्रस्तुत 7 बच्चों की योग विषयक प्रस्तुति थी। सभी दर्शको ने इसे भी पसन्द किया और इस प्रस्तुति की समाप्ति पर तालियां बजाकर उनका उत्साहवर्धन किया। तीसरी प्रस्तुत 8 वर्ष की आयु से नीचे आयु के बच्चों का समूह नृत्य था। इस प्रस्तुति को दर्शकों ने पसन्द किया और करतल ध्वनि से अपनी प्रसन्नता को प्रकट किया।

 

                आजकल प्रधानमंत्री जी देश से प्लास्टिक का प्रयोग न करने का अभियान चलाये हुए हैं। इस अभियान के समर्थन में कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों द्वारा एक नाटक प्रस्तुत किया गया। यह नाटक शिक्षाप्रद था। इसके संवाद अंग्रेजी भाषा में थे। मां व पुत्री के संवाद के माध्यम से प्लास्टिक से मनुष्य व पशुओं को होने वाली हानियों को इसमें दिखाया गया था। इस प्रस्तुति को भी दर्शकों ने पसन्द किया और इसके समर्थन में तालियां बजाकर अपनी प्रसन्नता को अभिव्यक्त किया। अमृतसर से पधारे विश्व विख्यात गीतकार एवं भजनोपदेशक पं0 सत्यपाल पथिक जी ने इसके बाद बच्चों से सम्बन्धित अपनी एक रचना गाकर प्रस्तुत की। इस गीत के बोल थे ‘इस भूमि से भारी क्या है और गगन से ऊंचा क्या? माता भूमि से भारी है पिता गगन से हैं ऊंचा।’ पथिक जी ने सभी बच्चों को शुभकामनायें देते हुए कहा कि आप जीवन में सभी प्रकार के ऐश्वर्यों को प्राप्त करें। पांडवों की कथा सुनाकर उन्होंने सभी बच्चों को जीवन में विद्वान तथा त्यागपूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले ब्राह्मणों की रक्षा करने की प्रेरणा की। पथिक जी ने महाभारत से युधिष्ठिर-यक्ष संवाद प्रकरण को भी प्रस्तुत किया। पृथिवी से भारी क्या है और आकाश से ऊंचा क्या है, इसका उत्तर देते हुए युधिष्ठिर ने यक्ष को बताया था कि माता का रुतबा भूमि से भारी है तथा पिता का महत्व व स्थान आकाश से भी ऊंचा है। इसके बाद कक्षा 8 के विद्यार्थी श्री विवेक ने ‘परिवार, समाज तथा राष्ट्र’ विषय पर अपने विचारों को प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि परिवार को सम्मान देने की ही तरह सभी देशवासियों को समाज तथा राष्ट्र को भी सम्मान देना चाहिये। हमारा समाज शक्तिशाली होगा तो हमारा राष्ट्र भी शक्तिशाली होगा। उन्होंने छोटों व बड़ों सभी को नशे से दूर रहने की प्रेरणा की। उन्होंने कहा कि अनेकता में एकता देश की शान है इसीलिये मेरा भारत महान है।

 

                इस प्रस्तुति के बाद मुख्य अतिथि डा0 बी0के0एस0 संजय तथा प्रिंसीपल श्री बी0के0 सिंह जी का शाल, पुष्पमाला तथा पुष्पगुच्छ सहित स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया गया। सम्मान से पूर्व आश्रम के मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा ने दोनों अतिथियों का परिचय सभागार में उपस्थित सभी श्रोताओं को दिया। इस अभिनन्दन कार्यक्रम के बाद 8 बालिकाओं ने अतिथियों के सम्मान में स्वागत गीत प्रस्तुत किया। इस के बाद एक कन्या ने एक अन्य गीत प्रस्तुत किया। दो बालिकाओं का धर्म एवं संस्कृति पर शंका-समाधान रूपी आकर्षक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया। इस संवाद में भगवान किसे कहते हैं, इसे आर्य मन्तव्यों के अनुरूप उत्तर देकर बताया गया जिसे श्रोताओं ने बहुत पसन्द किया। इन संवादों में यह भी कहा गया कि निराकार एवं सर्वव्यापक ईश्वर के स्थान पर किसी अन्य की उपासना करना ठीक नहीं है। संवाद में चर्चा कर निष्कर्ष में कहा गया कि निराकार एवं सर्वव्यापक ईश्वर की मूर्ति नहीं बन सकती। ईश्वर के यथार्थ स्वरूप का विवेचन भी प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत किया गया। अगला कार्यक्रम जौनसार-बाबर की लोक-संस्कृति का ‘‘तांदी नृत्य” था जिसमें 6 कन्या व 6 बालकों ने भाग लिया। यह नृत्य मनमोहक था जिसे मुख्य अतिथि महोदय ने बहुत पसन्द किया और अपने उल्लेख में इसकी प्रशंसा की। इसके बाद बच्चों के व्यायाम को एक कार्यक्रम के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। इन नृत्य को आधुनिक नृत्य के के द्वारा प्रस्तुत किया गया।

 

                समस्त आयोजन की एक प्रमुख सशक्त प्रस्तुति देश के लिये शहीद चन्द्रशेखर आजाद के जीवन पर नाटक था। यह नाटक श्रोताओं में देशभक्ति की भावनाओं को भरने के साथ महान् देशभक्त चन्द्रशेखर आजाद के बलिदान को के दृश्य को देखकर द्रवित करने व आंखों को साश्रु करने में सफल रहा। चन्द्रशेखर आजाद जी ने स्वयं को गोली मारकर शहीद किया था। यह दृश्य अत्यन्त भावुक करने वाला था। अहिंसात्मक आन्दोलन के किसी नेता का बलिदान इस बलिदान से बड़ा नहीं हो सकता। उन्होंने तो छोटे मोटे दुःख भोगने के साथ सत्ता का असीम सुख भोगा है और अनेक सही व गलत निर्णय किये जिससे देश को हानि भी हुई। हम जब आजादी के आन्दोलन में देशभक्तों के त्याग व बलिदान का मूल्याकंन करते हैं तो हमें नेताजी सुभाषचन्द्र बोस सहित वीर सावरकर तथा क्रान्तिकारियों का बलिदान अहिंसक आन्दोलन के सत्याग्रहियों के बलिदान से कहीं अधिक प्रतीत होता है। इस नाटक में चन्द्रशेखर आजाद जी द्वारा बोला गया एक संवाद था ‘हम सिर झुकाना नहीं सिर कटाना जानते हैं।’ नाटक में चन्द्रशेखर जी के बलिदान के दृश्य को दिखाते हुए फिल्मी गीत ‘कर चले हम फिदा जान वतन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों।’ भी लोगों को भावुकता के शिखर पर ले गया और सभी दर्शकों की आंखें गीली हो गयीं। नाटक की समाप्ति पर सभी श्रोताओं व दर्शकों ने देर तक तालियां बजा कर नाटक के सभी पात्रों के योगदान की सराहना की।

 

                कार्यक्रम में दिल्ली पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य श्री बी0के0 सिंह जी अतिथि रूप में पधारे थे। उनका सम्बोधन हुआ। उन्होंने सभा भवन में उपस्थित सभी लोगों को नमस्कार किया। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम में भाग लेना उनके लिये गर्व की बात है। उन्होंने स्कूल व इसके शिक्षकों की प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि वह भी एक सरकारी प्राईमरी स्कूल में पढ़े हैं। गांव में रहते हुए ही उन्होंने कक्षा 12 पास की थी। उन्होंने बतया कि उन्होंने बी0एस0सी0 भी गांव में रहते हुए की। श्री बी0के0 सिंह जी ने कहा कि अध्यापक अपने जीवन भर सीखता है। जिस व्यक्ति का सीखना बन्द हो जाता है उसकी उन्नति रुक जाती है। लोगों को उन्होंने निरन्तर सीखते रहने की सलाह दी। विद्वान प्रिंसीपल महोदय ने बताया कि हिन्दी माध्यम के विद्यालय देश के अग्रणीय विद्यालय रहे हैं। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी को प्रतिभावान बनाने में विद्यार्थी की निज प्रतिभा के साथ अध्यापकों के प्रयत्नों व समर्पण का मुख्य योगदान होता है। बच्चों की प्रस्तुतियां देखकर विद्वान आचार्य ने कहा कि आप के स्कूल बच्चे बहुत नाम कमायेंगे। उन्होंने सभी बच्चों व अध्यापिकाओं को अपनी शुभकामनायें दीं। उन्होंने बच्चों व शिक्षिकाओं को अपना सर्वोत्तम कर्तव्य निभाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि दुनियां की कोई ताकत आपको सफल होने से रोक नहीं सकती। प्रधानाचार्य श्री बी0के0 सिंह जी ने स्कूल को अपना हर प्रकार का सहयोग देने का आश्वासन दिया। उन्होंने तपोवन विद्या निकेतन के बच्चों को अपने स्कूल की सभी गतिविधियों में निःशुल्क भाग लेने का प्रस्ताव भी किया। अन्त में उन्होंने सभी को अपनी ओर से धन्यवाद दिया। अगला कार्यक्रम बच्चों का डांडल नृत्य था जिसमें 18 बच्चों ने भाग लिया। यह कार्यक्रम भी अत्यन्त दर्शनीय एवं सराहनीय था। इसके बाद बच्चों ने तीन समूहों में एक हास्य कव्वाली प्रस्तुत की। बच्चों के अभिनय की दृष्टि से इसे सराहनीय कह सकते हैं।

 

                तपोवन विद्या निकेतन की प्रधानाचार्या श्रीमती उषा नेगी जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि हमारा विद्यालय विगत 40 वर्षों से संचालित हो रहा है। उन्होंने कहा कि देश व समाज को आर्यसमाज की विचारधारा के अनुरूप ऐसे विद्यालयों की आवश्यकता हैं जो बच्चों को वैदिक धर्म एवं संस्कृति के अनुरूप विचार व सिद्धान्तों से परिचित करायें। श्रीमती नेगी ने कहा कि बच्चों को पुस्तकीय ज्ञान देने के साथ अच्छे संस्कार देना भी हमारा कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि अभिभावकों अपनी सन्तानों तथा अध्यापक-अध्यापिकाओं का अपने विद्यार्थियों का जीवन निर्माण करना कर्तव्य है। विदुषी आचार्या ने बच्चों में बढ़ रही नशे की प्रवृत्ति की ओर भी श्रोताओं का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने बच्चों को नशे की आदत से बचाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हम अपने स्कूल के बच्चों को अपना बच्चा मानकर शिक्षा देते हैं। विदुषी आचार्या ने यह भी बताया कि उनके स्कूल का परीक्षा परिणाम शत प्रतिशत रहता है। प्राचार्या उषा नेगी जी ने कहा कि बचपन से ही बच्चों को बुराईयों से रोकना माता-पिता का कर्तव्य है। माता-पिताओं को अपने बच्चों को टीवी तथा मोबाइल के प्रयोग की आदत से बचाना चाहिये और इसके दुरुपयोग को रोकने पर ध्यान देना चाहिये। प्रधानाचार्या जी ने स्कूल की समस्याओं से भी सदन को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि स्कूल में स्थानाभाव आदि अनेक समस्याओं के होने पर भी उन्होंने बच्चों की पढ़ाई में किसी प्रकार की बाधा नहीं आने दी। प्राचार्या उषा नेगी जी ने कहा कि बच्चे शिक्षित होंगे तो देश व समाज शिक्षित बनेगा। उन्होंने स्कूल को सहयोग देने वाले दानदाताओं का धन्यवाद किया। आश्रम के मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी से उन्होंने निवेदन किया कि वह आश्रम की ही तरह विद्यालय की भी काया-पलट करने की कृपा करें। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए उन्होंने अपने सहयोगी सभी शिक्षिकाओं एवं अध्यापकों का धन्यवाद किया।

 

                तपोवन विद्या निकेतन स्कूल के उत्सव के मुख्य अतिथि डा0 बी0एस0के0 संजय जी ने अपने सम्बोधन में स्कूल के बच्चों के टेलेण्ट की प्रशंसा की। उन्होंने सभागार में उपस्थित सभी महानुभावों को नमन किया। मुख्य अतिथि महोदय ने स्कूल के बच्चों द्वारा प्रस्तुत सभी कार्यक्रमों की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि वेदान्त के ज्ञान से लेकर लोकगीतों व अन्य सभी कार्यक्रम अत्यन्त प्रशंसनीय थे। देशभक्त चन्द्रशेखर आजाद जी के जीवन पर आधारित नाटक की उन्होंने विशेष रूप से चर्चा एवं प्रशंसा की। हास्य कव्वाली को भी उन्होंने सराहनीय बताया। मुख्य अतिथि महोदय ने कहा कि अभावों तथा सीमित साधनों में संचालित आपका स्कूल टेलेण्ट एवं उन्नति की दृष्टि से प्रशंसनीय है। डा0 बी0के0एस0 संजय जी ने भोजन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य के महत्व पर विस्तार से चर्चा की और इनका महत्व बताया। उन्होंने संक्रमण से होने वाली बीमारियों की जानकारी व उन्हें रोकने के उपायों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इलाज से बचाव बेहतर होता है। उन्होंने सुझाव दिया कि जब कोई व्यक्ति अस्पताल में भर्ती हो तो उससे मिलने नहीं जाना चाहिये। इससे मरीज को हानि होती है। डा0 महोदय ने भोजन से पहले व बाद तथा शौच के बाद साबुन से हाथ धाने के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने स्कूल के सभी सदस्यों को अपनी सेवाओं का निःशुल्क सहयोग करने का भी आश्वासन दिया। डा0 संजय ने सबके सुखी व स्वस्थ रहने की कामना की। मुख्य अतिथि महोदय ने सभी अभिभावकों को अपने बच्चों का उचित पालन पोषण करने की प्रेरणा की और अपने वक्तव्य को विराम दिया।

 

                आश्रम के मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी ने सभी अतिथियों एवं सहयोगियों का धन्यवाद किया। उन्होंने स्कूल प्रशासन में सहयोगी प्राचार्या जी एवं समस्त शिक्षकों को भी धन्यवाद दिया। श्री शर्मा जी ने आश्रम के उत्सव में पधारे वैदिक विद्वान श्री उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी के आचार एवं व्यवहार की भूरि भूरि प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि वह स्कूल को प्रति वर्ष छः हजार रुपयों की सहायता देते हैं। सभागार में उपस्थित सभी लोगों को श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी ने आश्रम एवं विद्यालय को आर्थिक सहयोग देने का अनुरोध किया। इसी के साथ आज का यह कार्यक्रम सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।

-मनमोहन कुमार आर्य

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