अथक प्रयास के बाद भी,संभव न हो सका नेत्रदान

( 8849 बार पढ़ी गयी)
Published on : 17 Oct, 19 07:10

परिजन राज़ी, टीम भी बूँदी पहुँची,फिर भी नहीं हुआ नेत्रदान

अथक प्रयास के बाद भी,संभव न हो सका नेत्रदान

गुरुनानक कॉलोनी ,बूँदी,निवासी 28 वर्षीया ऋचा वर्मा एक साल से बीमारी से लड़ रही थी,अंतिम समय में उनका इलाज अहमदाबाद चल रहा था,पर कल दोपहर में अचानक उनकी तबियत बिगड़ने के बाद वहीं उनका देहांत हो गया। 

ऋचा जी के मिलनसार व हँसमुख स्वभाव के बारे में न सिर्फ परिवार के लोग बल्कि समाज व सभी रिश्तेदार भी बहुत अच्छे से जानते थे । घर में सबसे बड़ी बहु बनकर आने के बाद न सिर्फ उन्होंने पूरे परिवार को संभाला बल्कि अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए अपने सास-ससुर के साथ मिलकर उनका हर जगह साथ दिया । थोड़े समय पहले ही उन्होंने अपने देवर सचिन की शादी की जब तक सब ठीक था ।

परिजन को उनकी इस स्थिति के बारे में चिकित्सक बहुत पहले से ही बता चुके थे । इसलिए मन से वह इस बात को जानते थे कि अब ज्यादा समय तक वह उनके साथ नहीं रह सकेंगी । इसी बीच करीब एक सप्ताह पहले इनके घर के ठीक पास में बूँदी के दैनिक अंगद समाचार पत्र के संपादक मदन मंदिर जी का निधन होने पर उनके परिजनों द्धारा नेत्रदान का नेक कार्य सम्पन्न हुआ था। 

ग़म के इस माहौल में ऋचा जी के ही देवर समान शैलेन्द्र भारद्वाज जी,जो कि जिला अस्पताल बूँदी में ही टी बी क्लिनिक में कार्यरत है,उन्होंने ऋचा जी के पति सन्नी व ससुर प्रवीण जी से नेत्रदान करवाने के लिये बात की,अहमदाबाद से चित्तौड़गढ़ होते हुए बूँदी आने तक में उनको 10 से 12 घंटे का समय लगना था, यह सोचकर उनको लगा कि पता नहीं ऐसे में बूँदी पहुँचने तक पता नहीं आँखे काम भी आ सकेगी या नहीं । ऋचा जी के परिजनों के राज़ी होने के बाद शाइन इंडिया फाउंडेशन,बूँदी के सह-संयोजक इदरिस बोहरा ने कोटा में अपने सहयोगीयों से संपर्क किया,उनसे पता चला कि यदि पार्थिव शव को ए सी एम्बुलेंस में लाया जा रहा है,और यदि उनकी आँखों को ठीक तरह से बंद करके,उस पर यदि गीला रुमाल रख दिया जाये,तो 12 घंटे में भी नेत्रदान संभव है। उस पर ऋचा जी की उम्र भी कम थी,तो कॉर्निया भी सुरक्षित रहने की संभावना जान कोटा से रात 12 बज़े टीम बूँदी के लिये रवाना हो गयी । टीम के पास भी यही सूचना थी कि पार्थिव शव रात 1:30 बज़े तक बूँदी आ जायेगा।  टीम के 1 बज़े बूँदी पहुँचने पर,यह बात पता चली कि,चित्तौड़गढ़ से पहले एम्बुलेंस खराब हो जाने के कारण व रास्ता खराब होने के कारण ,अभी उनको तीन घंटे और लगेंगे । टीम के सदस्यों ने कार में बैठे बैठे 3 घंटे बूँदी में ही इंतज़ार किया,4 बज़े ऋचा जी के पार्थिव शव के आने के बाद जब उनकी आँखों को देखा, तो पाया कि आँखो को पूरी तरह से बंद न कर पाने के कारण,नेत्रदान में लिया जाने वाला कॉर्निया सूख चुका है,ऐसे में नेत्रदान नहीं हो सकता था । यह सब जानकर परिजनों को बहुत मायूसी हुई । टीम के सदस्यों को आने जाने व पूरी रात खराब होने का ज़रा भी दुखः नही था,पर इस बात से उनको भी काफ़ी मायूसी हुई कि,वह यह नहीं सोच सकते थे कि,आँखो को पूरी तरह से बंद नहीं किया गया होगा,अन्यथा कॉर्निया आसानी से लिया जा सकता था,साथ ही कम उम्र का कॉर्निया दो से ज्यादा लोगों को भी लगाया जा सकने की संभावना थी ।

क़रीब 6 बज़े शाइन इंडिया की टीम वापस कोटा पहुँच गई ।

नेत्रदान करवाने के लिये शोकाकुल परिवार यह ध्यान रखें कि,मृत्यु उपरांत आँखे पूरी तरह बंद करके उन पर गीली पट्टी या रुमाल रखें व नेत्रदान होने तक पंखा पूरी तरह से बंद रखें ।


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.