“विजय-दशमी पर्व का निर्वाह किस प्रकार से करें?”

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Published on : 09 Oct, 19 04:10

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“विजय-दशमी पर्व का निर्वाह किस प्रकार से करें?”

विजय दशमी पर्व की आर्य पर्वो में गणना की गई है। सभी आर्यों को इस पर्व को सोत्साह मनाना चाहिये। समाज में राज्य व्यवस्था व सुरक्षा का कार्य हमारे क्षत्रिय वर्ण के लोग करते हैं। वर्तमान समय में वर्ण व्यवस्था प्रचलित नहीं है तथापि जो लोग हमारे राज्य संचालन तथा सुरक्षा के कार्यों यथा राजनीति, सत्ता संचालन, सेना व पुलिस आदि सेवाओं से जुड़े हैं वह सब क्षत्रिय वर्ण में माने जा सकते हैं। इस विजयदशमी पर्व को मनाने का स्वरूप क्या हो? राज्य स्तर पर इसके लिये देश की आन्तरिक तथा बाह्य सुरक्षा की समीक्षा कर सभी सुरक्षा व्यवस्थाओं को निर्दोष वा पुख्ता करना चाहिये। देश का कोई शत्रु जो हमें हानि पहुंचाना चाहता है, वह बचना नहीं चाहिये। उसके साथ यथायोग्य व्यवहार करना चाहिये जैसा के वर्तमान समय में इजराइल, चीन व रूस आदि देश करते हैं। आन्तरिक सुरक्षा के क्षेत्र में सभी सुरक्षा विभागों को अपने-अपने कार्यों की समीक्षा करनी चाहिये कि क्या वह उस उद्देश्य को पूरा कर रहे हैं जिसके लिये उनका गठन व स्थापना की गई है। उन्हें इस प्रश्न पर भी विचार करना चाहिये कि क्या देश का हर देशभक्त नागरिक सुरक्षित है, भयमुक्त है एवं सभी प्रकार की चिन्ताओं से मुक्त है अथवा नहीं? यदि नहीं है तो फिर इन सेवाओं से जुड़े अधिकारियों को व्यवस्था की सभी खामियों को दूर कर व्यवस्था को उद्देश्य को पूरा करने वाली अनिन्द्य बनाना चाहिये।

 

देश के सामान्य जन भी इस पर्व को मनाते हैं। वह इस अवसर पर विद्वानों की धर्म कथायें व विचार-गोष्ठियों का आयोजन कर सकते हैं जिसमें मनुष्य जीवन को कैसे वेदानुकूल जीवन में ढाला जाये, इस पर अधिकारी विद्वानों के विचार व चिन्तन सुनने को मिले। इसके साथ ही देश के सभी नागरिकों को यह प्रतिज्ञा करनी चाहिये कि वह न तो किसी पर अन्याय व शोषण जैसा कार्य करेंगे और न ही अन्याय व शोषण को सहन करेंगे। देश के सभी लोग यदि इस भावना को अपने भीतर धारण करेंगे अर्थात् संकल्प लेंगे और इस पर वचनबद्ध होंगे तो देश में सभी देशवासियों का जीवन दुःखों से रहित व सुखों से पूरित हो सकेगा।

 

श्री राम चन्द्र जी इस देश के आदर्श पुरुष हैं। उनका जीवन व कार्य भारत के प्रत्येक नागरिक के लिये जानने व धारण करने योग्य है। अतः इस अवसर पर दो या तीन दिवसीय कार्यक्रम रखकर हमें विद्वानों के श्री राम चन्द्र जी के आदर्श जीवन सहित उनके प्रमुख कार्यों को कथा के रूप में सुनना चाहिये। राम के जीवन से माता-पिता का सम्मान व उनके वचनों को प्राणपण से निभाने की शिक्षा व प्रेरणा मिलती है। हमें भी इस प्रेरणा को ग्रहण व आचरण में लाना है। श्री रामचन्द्र जी भाईयों के भाई और मित्रों के मित्र थे। इस गुण को भी हमें जीवन में धारण करना चाहिये। राम ने मानवता विरोधी, समाज व देश विरोधी आन्तरिक तथा बाह्य शत्रुओं को पीड़ित व दण्डित किया। रावण जैसे धर्मविहीन राजा जो ऋषियों तथा निर्बल राजाओं पर विजय प्राप्त कर उनको व उनकी प्रजाओं को दुःख देता था, उस निरंकुश रावण का वध कर उससे पीड़ित सभी राजाओं व प्रजा जनों को स्वतन्त्र, भयमुक्त तथा सुख-संयुक्त किया। उनका यह गुण भी सब देशवासियों के लिये ग्राह्य होना चाहिये। हमें राम चन्द्र जी के सभी गुणों को ग्रहण करना चाहिये। श्री कृष्ण के जो गुण महाभारत ग्रन्थ में वर्णित हैं उनका अध्ययन कर उनके वेद पोषित गुणों सभी गुणों का पालन वा आचरण करना चाहिये। हमारे देश के प्रत्येक नागरिक को राम व कृष्ण के समान श्रेष्ठ मनुष्य वा महापुरुष बनने का प्रयत्न करना चाहिये। ऐसा करना विजय-दशमी पर्व पर आवश्यक कार्य लगता है।

 

हमारे देश में सभी पर्वों व अनुष्ठानों में यज्ञ का अनुष्ठान करने की परम्परा है। इस अवसर पर सामूहिक, वृहद एवं भव्य यज्ञ होने चाहिये और इसके बाद सामूहिक भोज का आयोजन करना चाहिये। इस अवसर पर विद्यालय एवं गुरुकुलों के बच्चों के कुछ आकर्षक एवं उत्साहवर्धक क्रीड़ा आदि के आयोजन भी किये जा सकते हैं जिनसे स्वस्थ मनोरंजन होता है। यदि ऐसा करके हम विजय-दशमी पर्व को मनाते हैं तो यह एक प्रशस्त तरीका हो सकता है इस महनीय पर्व को मनाने का।

 

हमें अपने जीवन में स्वाध्याय को महत्व देना चाहिये। स्वाध्याय से मनुष्य का सर्वांगीण विकास होता है। ईश्वर, जीवात्मा तथा उपासना सहित सभी सामाजिक व स्वास्थ्य आदि से जुड़े विषयों का भी ज्ञान होता है। अतः हमें स्वाध्याय पर विशेष ध्यान देना चाहिये और उसके लिये सत्यार्थप्रकाश सहित सभी महत्वपूर्ण ग्रन्थों का अध्ययन दैनन्दिन वा प्रतिदिन करना चाहिये। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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