भारतीय लोक कला मण्डल में लोक साहित्यः परंपरा और विकास विषयक संगोष्ठी का शुभारम्भ

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Published on : 23 Sep, 19 06:09

भारतीय लोक कला मण्डल में लोक साहित्यः परंपरा और विकास विषयक संगोष्ठी का शुभारम्भ

उदयपुर|  भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर । संस्था के मानद सचिव दौलत सिंह पोरवाल ने बताया कि भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर एवं साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक २१ सितम्बर को लोक साहित्य परंपरा और विकास विषयक संगोष्ठी का  शुभारम्भ प्रातः १० बजे हुआ ।

 

भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने बताया कि  कार्यक्रम की  शुरूआत में साहित्य अकादेमी के सचिव श्री के. श्रीनीवास राव ने संगोष्ठी के आयोजन पर प्रकाश डाला तथा संगोष्ठी में आए हुए सभी प्रतिभागियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया । उसके पश्चात गणमान्य अतिथियों ने भारतीय लोक कला मण्डल के संस्थापक पद्मश्री देवीलाल सामर की तस्वीर पर माल्यापर्ण एवं दीप प्रज्वलित कर संगोष्ठी का शुभारंभ किया।  संगोष्ठी के मुख्य अतिथि भानु भारती प्रसिद्ध, नाट्यकर्मी ने इस अवसर पर कहा कि लोक निरंतर गतिशील हैं । लोक साहित्य की उपयोगिता तथा उसकी ऊर्जा को समझने की आवश्यकता है। उन्होने कहा कि लोक साहित्यकारों को लोक साहित्य को बचाने के लिए निरंतर गतिशील रहने की आवश्यकता है। संगोष्ठी में बीज भाषण दते हुए मधु आचार्य, संयोजक राजस्थानी परामर्श मंडल, साहित्य अकादेमी न कहा कि लोक साहित्य एवं लोक परम्पराओं का विकास समय के साथ होता आ रहा है । उन्होने यह भी कहा कि वर्तमान समय में लोक नाट्यकर्मीयों को लोक साहित्य के विषय को आधुनिक समय से जोड कर, आम जन के समक्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए सोहन दान चारण , कवि- चिंतक  ने कहा कि लोक साहित्य,एवं लोक परम्परा अधिकांश भारतीयों के कण्ठ में निवास करती है उन्होने इस अवसर पर बताया कि लोक साहित्य का उद्गम मानव जीवन की उत्पत्ति  से ही प्रारम्भ हुआ है । सत्र के अन्त में संस्था के निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने संगोष्ठी में पधारे सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया ।

 

संगोष्ठी के प्रथम सत्र की अध्यक्षा श्रीमती शारदा कृष्ण ने की उन्होने अपने शोध पत्र में लोक साहित्य के विकास पर प्रकाश डालते हुए लोक गीतों के संग्रह और उनके सरंक्षण की बात कही। इस अवसर पर परम्परा के प्रवाह में लोकसाहित्य एवं उसके बदलते स्वरूप विषय पर ज्योतिपुंज ने लोक साहित्य की परम्परा और विषय पर प्रकाश डाला। इसके साथ ही आधुनिक युग में लोकसाहित्य की प्रासंगिता पर हरीश बी. शर्मा ने शोध पत्र का वाचन किया। संगोष्ठी के दूसरे सत्र में सुरेश सालवी ने लोकसाहित्य की लुप्त होती धाराएँ विषय पर शोध पत्र का वाचन करते हुए कहा की वर्तमान समय में आधुनिकता के प्रभाव से लोक परम्पराएँ विलुप्ति के कगार पर है, इनका संरक्षण आवश्यक है। मौखिक से लिखित साहित्य की यात्रा में लोक साहित्य का

 

अवदान  विषय पर शोध पत्र का वाचन करते हुए उन्होने पारम्परिक मौखिक लोक साहित्य के महत्व के बारे में बताया ।

 

इस अवसर पर पर जोधपुर कि युवा कवियत्री उज्वल तिवारी के काव्य संग्रह ’’सब दृश्य ‘‘ का लोकापर्ण भी किया गया। लोकापर्ण अवसर पर प्रसिद्ध रंग निर्देशक भानू भारती ने कहा कि उज्वल तिवारी कि कविताएँ प्रेम के विविध रूपों को बताते हुए, उसकी गहराई एवं  मर्म को पाठकों के मानस के अंतर मन तक पहचाती है। उन्होने कहा कि मीरां की इस धरती पर उज्वल की प्रेम से संबंधत कविताएँ हमें आज के समय में एक बार फिर मीरां की याद दिलाती हे कि प्रेम के लिए उनमें सम्पर्ण किस हद तक था।

 

भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने  बताया कि संगोष्ठी के दूसरे दिन दिनांक २२ सितम्बर को प्रातः १० बजे से संगोष्ठी का तिसरा एवं चोथा सत्र आयोजित किया जाएगा।

 


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