एक झील कहती मै कंहा आंसू बहाऊं--- प्रकृति संरक्षण पर साहित्यिक गोष्ठी

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Published on : 21 Sep, 19 14:09

एक झील कहती मै कंहा आंसू बहाऊं--- प्रकृति संरक्षण पर साहित्यिक गोष्ठी

विद्या भवन भाषा समूह की और से पोलीटेक्निक संस्थान में आयोजित " साहित्य व् प्रकृति संरक्षण " विषयक संगोष्ठी में  साहित्यकारों व् कवियों ने अपनी अपनी कृति से प्रकृति पर आये संकट को प्रकट किया  ।    इन कलमकारों ने बदलते पर्यावरण, कटते पेड़ों - पहाड़ों , सूखती नदियों , मैली होती व्  मिटती जा रही झीलों , बाढ़ व् सूखे जैसी आपदाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए  प्रकृति की पीडाओं को व्यक्त किया   । 

अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि किशन दाधीच ने कृति व् प्रकृति के संबंध को परिभाषित करते हुए कहा कि "ढाई अक्षर प्रेम का" व् " दो गज जमीन ",  इनके बीच हमारा जीवन है, इसलिए प्रकृति के साथ प्रेममयी व्यहवार के हम अपने मूल स्वभाव को नहीं छोड़ें । 

कवि पंडित नरोत्तम व्यास ने " एक झील कहती मै कंहा आंसू बहाऊं" कविता से झीलों व् नदियों पर आये  संकट को परिभाषित किया । 

डॉ जयप्रकाश पंड्या ज्योतिपुंज , डॉ मधु अग्रवाल , पी एल बामनिया, डॉ करुना दशोरा , बृजराज सिंह जगावत , दीपा पन्त , आइना उदयपुरी , श्याम मठवाल, अरुण व्यास , मंजू श्रीमाली ने अपनी रचनाओं से प्रकृति की विविधताओं, सुन्दरता को शब्द दियें व् मानव के प्रकृति के प्रति दुर्व्यहवार पर चिंता व्यक्त की । 

सञ्चालन कवि विजय मारू ने किया । 

प्रारंभ में स्वागत करते हुए प्राचार्य डॉ अनिल मेहता ने कहा कि साहित्य के माध्यम से पर्यावरण चेतना को  अधिक मजबूत बनाया जा सकता है एवं  पर्यावरण संरक्षण की समझ को व्यापक  व् गहरी बनाया जा सकता है।    


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