आजादी के जज्बे का दिखा गया ’’जलियांवाला बाग‘‘

( 14190 बार पढ़ी गयी)
Published on : 15 Sep, 19 05:09

आजादी के जज्बे का दिखा गया ’’जलियांवाला बाग‘‘

उदयपुर , संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से शनिवार शाम उदयपुर के नाट्य प्रेमियों के लिये देश भक्ति से ओत-प्रोत रही जब नाटक ’’जलियांवाला बाग‘‘ के कलाकारों ने वंदे मातरम्‘‘ का घोष जोशीले अंदाज में किया। बेहतरीन प्रकाश व्यवस्था, दृश्य बिम्बों और नवागंतुक नाट्य साधकों के श्रेष्ठ अभिनय ने प्रस्तुति को स्मरणीय बना दिया।

भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा जलियांवाला बाग नसंहार के शहीदों के शौर्य और पराक्रम के सौ वर्ष पूर्ण होने पर उन्हें स्मरण करने के लिये आयोजित कार्यक्रमों के अंतर्गत पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा उदयपुर में आयोजित प्रस्तुति परक नाट्य कार्यशाला में तैयार नाटक ’’जलियांवाला बाग‘‘ का मंचन शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में प्रसिद्ध सिने अभिनेता व रंगकर्मी अशोक बांठिया के निर्देशन में किया गया।

नाटक जलियांवाला बाग की कहानी हमारे देश के इतिहास में अंग्रेजी हुकूमत के काले कारनामें की अंग्रेजी सरकार के अत्याचार की एक ऐसी भद्दी लकीर कि जिसको याद करते हुए आज भी रोंगटे खडे हो जाते हें। इस दर्दनाक कत्ले आम में करीब ४०० लोग मारे गये जिसमें औरतें और बच्चे भी शामिल थे। पंजाब बैसाखी मना रहा था लेकिन अंग्रेज ने रौलेट एक्ट लगाया और बैसाखी पर पाबंदी लगा दी। लेकिन क्रांति का जुनून पंजाब में सर चढ कर बोल रहा था आजादी की दीवानगी इस कदर थी कि जलियांवाला के इस घटना क्रम के बाद आजादी हिन्दुस्तान के बच्चे-बच्चे के सिर चढ कर बोलने लगी।

सूरज प्रकाश द्वारा रचित इस नाटक में सौ वर्ष पूर्व जनरल डायर के आदेश पर बकसूरों पर अंग्रेजी शासकों ने गोलियां बरसाई जिसमें अनेक लोग जिसमें बच्चे, बूढे, जवान और महिलाएँ शामिल थे, ने अपनी जान गंवाई। भारत का कृषि प्रधान राज्य पंजाब के अमृतसर की इस हादसे को अशोक बांठिया ने बखूबी परिकल्पित किया जिसमें आजादी के आंदोलन के दौरान निकाली जाने वाली प्रभात फेरी, निहत्थों पर गोलियां बरसाते अंग्रेज सिपाही, लाशों के ढेर में अपनी मां को ढूंढता अबोध बालक जैसे मर्मस्पर्शी दृश्यों के ताने-बाने में सृजित इस नाट्य कृति का प्रदर्शन दर्शकों के लिये एक अनूठा अनुभव बन सका।

नाटक का पार्श्व संगीत व ध्वनि प्रभाव जहां सशक्त बन सके वहीं उदयपुर के कलाकारों ने अपने सटीक व भावपूर्ण अभिनय से प्रस्तुति को दर्शनीय बनाते हुए अंत तक दर्शकों को बांधे रखा। नाटक का संगीत व गायन डॉ. प्रेम भण्डारी, संगीत परिकल्पना एवं कोरियोग्राफी ः कुलविंदर बक्सिश, वस्त्र सज्जा ः माला डे बांठिया, प्रकाश परिकल्पना ः अभिषेक नारायण, मेकअप ः उलेश खण्डारे, आर्ट ः विनय शर्मा, पार्श्व व आवाज ः भगवत बावेल, दुर्गेश चांदवानी, अशोक बांठिया, वस्त्र सज्जा सहायक ः प्रियंका सेन, सहायक निर्देशक ः विनय शुक्ला, राहुल शर्मा थे। मंच पर अभिनय में विनय शुक्ला, सिद्धांत, राजेन्द्र, प्रगनेश, रीना, दीपेंद्र, अमित, राज, सेजल, मिलिन्द, गर्वित, हर्ष नरवरिया, दिव्य, शिवांगी, रिया, अभिषेक, निहारिका, हर्ष, अक्षरा, एकलिंग, भवानी, जितेन्द्र, कुलदीप, हिरेन, कृष्णा ने स्वाधीनता के विभिन्न किरदारों को रंगमंच पर सजीव किया।


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.