उदयपुर। वासुपूज्य मंदिर में साध्वी अभ्युदया ने नियमित प्रवचन में कहा कि साधना करने के पीछे हमेशा कोई न कोई लक्ष्य रहता है।
उन्होंने प्रभु की पूजा विधि के बारे में बताते हुए कहा कि थाली शुद्ध होनी चाहिए। जल पूजा के बाद चंदन पूजा आती है। चंदन लकडी घर से लेकर आनी होती है। चंदन को घिसकर पूजा करता है तो व्यक्ति के हाथों के नाखून भी कटे होने चाहिए। चंद का गुण शीतल होता है। पत्थर पर चंदन को घिसो तो पत्थर भी सुगंधित हो जाता है। व्यक्ति के मन में राग द्वेष रूपी ज्वाला है जिसको शांत करने के लिए चंदन से प्रभु की पूजा करते हैं।
साध्वी श्री ने कहा कि सभी परमात्मा मूलनायक के बाद सिद्धचक्र की पूजा के बाद गुरु की पूजा और फिर सबसे बादमें देवी देवता की पूजा की जाती है। भगवान की पूजा अनामिका से की जाती है क्योंकि अनामिका का संबंध हृदय से होता है।
उन्होंने राम राम की महत्ता बताते हुए कहा कि स्वर और व्यंजन को मिलाकर राम बना। इसका जोड 54 होता है। माला के मनके 108 और राम राम दो बार बोले तो एक माला फेरने का सौभाग्य मिल जाता है। वैदिक परंपरा में सूर्य के 12 स्वरूप बताए गए हैं। ब्रह्माजी के 9 इस तरह गुणा करके 108 का अंक आता है।