कहाँ है मंदी?

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Published on : 13 Sep, 19 12:09

कहाँ है मंदी?

लोग बरसात से खुश हैं। फतहसागर पर रोषनी कर दी गई हैं। भाई साहब कह रहे हैं दीवाली तक शहर की सड़कें चकाचक हो जाएगी। लोग खड्डे में सड़क खोज रहे हैं और गिरते-पड़ते जब थक जाते हैं तो गुड्डू भाई की कचौरी खा लेते हैं। किसी को कोई शिकायत नहीं है। बरसात में मच्छरों की भरमार है। फोगिंग मशीन तो दिखाने को रखी है कि जब स्मार्ट सिटी वाले आएंगे तो उनको दिखा देंगे कि हमारे पास मशीन तो है। नगर निगम का डाॅक्टरों से टाइ-अप है। मशीन निकलेगी नहीं तो मच्छर काटेंगे, बुखार होगा, डाॅक्टरों की मंदी खत्म हो जाएगी। पर्यूषण खत्म होते ही सब्जी मंडी में मंदी खत्म हो गई। अचानक सब्जियों के भाव उछल गए। सरकारी दफ्तरों में तो मंदी का सवाल ही नहीं। सरकार कोई भी आए, कोई भी जाए यहां तो बरकत ही बरकत है। रोज़ रिश्वतखोर पकड़े जा रहे हैं। हज़ारों नहीं लाखों का लेन-देन करते हुए। कहां मंदी है? जनता के पास पैसा है तभी तो रिश्वत में दे रहे हैं लोग। अब तो सुविधा यह हो गई है कि दो हजार के नोट आ गए हैं। एक पेटी तो यों इधर-से उधरहो जाती है जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। बजरी खनन पर रोक है पर कोई निर्माण कार्य रूका नहीं है। रोज इमारतें बन रही हैं और नेतागण खुद शिलान्यास और उद्घाटन कर रहे हैं। वे यह नहीं पूछते कि जिस भवन का शिलान्यास हो रहा है उसके निर्माण के लिए बजरी कहाँ से आएगी। भाजपा के 11 लाख सदस्य बनाने थे बन गए 57 लाख। बताओ, कहां मंदी है? न नेताओं के दौरों में कमी आ रही है न भाषणों में। सारे चैनल खुशहाली की तस्वीरें दिखा रहे हैं। पहले कहते थे कांग्रेस का राज आएगा तो अकाल आएगा। मगर इस साल तो प्रकृति ने यह मिथक भी तोड़ दिया। रहा सवाल नौकरियों का, तो भाई बरसात का मौसम है चाय-पकौड़े का स्टाल लगाओ, खूब चलेगा।
घर में नहीं हैं दाने, अम्मा गई भुनाने
दो खबरें एक दिन के अंतराल से छपी है। पहले दिन ये छपा कि नरेन्द्र मोदी को रूस का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान दिया जाएगा। दूसरे दिन यह खबर आई कि भारत रूस को एक अरब डालर का ऋण देगा। दोनों के बीच में जो रिष्ता है वह क्या कहलाता है, हम नहीं जानते। मगर प्रधानमंत्री जी को ऐसे लगभग 26 अंतर्राष्ट्रीय अलंकरण प्राप्त हो गए हैं। कुल मिलाकर एक-एक अलंकर क्या भाव पड़ा, यह सरकार बदलने पर ही लोग गणना कर पाएंगे। कानाराम जी कह रहे थे कि जब विकास दर लुढ़क कर पांच प्रतिषत तक आ गई है, और हम अरबों डालर का ऋण दे रहे हैं रूस को तो क्या यह उस मुहावरे का उदाहरण नहीं कि ‘‘घर में नहीं हैं दाने और अम्मा चली भुनाने।’’ वैसे भुनाने का तो क्या है? जो लोग सेना के बलिदान को भुनाने में पीछे नहीं वे चने भुनाने में कब पीछे रहेंगे। हमारे देश में परम्परा है घर फूंक कर तमाषा देखने की। बैंकों का दीवाला निकाला जो निकाला, हमने रिज़र्व बैंक तक को न छोड़ा। लाखों करोड़ रूपए के सुरक्षित फंड को निकाल कर हम स्वयं की पीठ ठोक रहे है। हमारे नीरव भाई, विजय माल्या भाई आदि समय पर जाग गए। सारा माल समेट कर चलते बने। अब बच गए है वे लोग जो नए बैंक-मर्जर का इंतज़ार कर रहे हैं। सीता माता जी कह रही थी। कि तीन-चार बैंक मिलाकर एक बैंक बनाया जा रहा है। हम उससे सारे बैंकों की पूंजी एकत्रित कर सकते हैं और फिर किसी की नए नीरव-माल्या की उपहार में दे सकते हैं। इतना बड़ा देश है थोड़ा-उतार आता ही रहता है। इसका मतलब यह थोड़े ही ही है कि हम अपने मित्र देषों की मदद न कर सकें।
पन्द्रह हजार की गाड़ी, तेईस हजार जुर्माना
लोकतंत्र की जीत हुई तीन महीने हो गए हैं। सारा देश अभी राष्ट्रप्रेम से उबर कर राष्ट्रभक्ति की तरफ जा रहा है। इस बीच गड़करी जी का दिमाग दौड गया। उन्होंने ट्रैफिक नियम तोड़ने के जुर्माने को काफी बढ़ा दिया। इसके कई फायदे हैं। सबसे पहला फायदा तो यह हुआ कि लोगों की भक्ति प्रमाणित हो गई है। पूरे देष में कोई आन्दोलन नहीं हुआ। सभी भारतीय अत्यन्त सम्य हो गए हैं और देष के हित में कुछ भी कर सकते है। इससे यह भी प्रमाणित हो गया कि लोग खुशहाल है। जो लाइसेंस नहीं रखने के हजारों रूपए देकर भी कुछ नहीं बोल रहा है, उसके पास पैसे तो होंगे ही। गुड़गांव में एक टेम्पो चालक की पत्नी के जे़वर गिरवी रखकर 21 हजार रूपये का जुर्माना भरते दिखाया गया है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत में टेम्पो चालक के पास इतना पैसा है कि पत्नी के लिए सोने के जे़वर बना सके। लोग बहुत भले हैं और सरकार की मदद करना चाहते हैं। सरकार बहुत अच्छे काम कर रही है। अभी तीन तलाक खत्म कर दिया, धारा 370 हटा दी। थोड़े दिनों में मन्दिर भी बन जाएगा। अगले चुनाव से पहले संविधान में से ‘‘धर्मनिरपेक्षता’’ और ‘‘समाजवाद’’ शब्द भी हट जाएं तो आश्चर्य नहीं। जब इतनी बड़ी समस्याएं हल हो गई हैं तो फिर जुर्माना अदा करने में क्या दिक्कत है। जब हम नल में सिर्फ हवा आने का बिल चुका सकते हैं, टूटी सड़कों के लिए टोल दे सकते हैं, कुछ न पढ़ाए जाने के लिए सकूल-काॅलेजों में फीस दे सकते हैं, फर्जी समाचारों के लिए चैनलों को हर महीना षुल्क दे सकते हैं, बिना सुरक्षा के आभास के सरकार को टैक्स दे सकते हैं और बिना किसी कारण के पंडितों, भीख मांगने वालों और रेल में ताली बजाकर पैसा वसूलने वालों को पैसा दे सकते हैं तो ट्राफिक नियम तोड़ने वालों पर जुर्माना क्यों नहीं दे सकते? जनता से झूठे वादे कर चुनाव जीतने के बाद वादे तोड़ देने वाले नेताओं पर जुर्माना लगाने की व्यवस्था कर षुरू होगी, यह सोचना भी जरूरी है।

 


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