दारू गोली रंगनाथ जी की, मदद मीरां साहब की, फतेह जनता जनार्दन की”

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Published on : 11 Sep, 19 07:09

अतुल्य इतिहास के साथ साम्प्रदायिक सौहार्द का पर्याय रही है, बून्दी  : मदन मदिर

दारू गोली रंगनाथ जी की, मदद मीरां साहब की, फतेह जनता जनार्दन की”

बून्दी-  बून्दी की पहचान हाडाओं के शौर्य पराक्रम से ओतप्रोत अतुल्य इतिहास ही नहीं हैं अपितु साम्प्रदायिक सौहार्द भी यहाँ की अमूल्य निधि हैं। ऐसा कहना हैं छोटी काशी के वरिष्ठ नागरिक लेखक व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जंग में सात माह की जेल यात्राऐं तक करने वाले मदन मदिर का। उमंग संस्थान द्वारा बून्दी को जानो प्रश्नोत्तरी के परिणामों की घोषणा के अवसर आयोजित कार्यक्रम में  मंगलवार को सांस्कृतिक आयोजनों व सर्वधर्म सद्भाव कार्यक्रमों से लंबे अरसे से जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार मदन मदिर मुख्य अतिथि व राजस्थान उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सुदर्शन लड्ढा विशिष्ट अतिथि थे।  

मंदिर  ने इस अवसर पर कहा कि “दारू गोली रंगनाथ की, मदद मीरां साहब की, फतेह जनता जनार्दन की” यह लोकोक्ति छोटी काशी के सौहार्द की बुनियाद हैं।  जैसे हमें हमारी माता के बारे मे जानकारी होती हैं, पहचान होती हैं, वैसे ही हमें जन्मभूमि की जानकारी, पहचान और विज्ञता होनी चाहिए। हमारी बून्दी की विरासत और इतिहास रोचक ही नहीं विस्मयकारी रहा हैं। बून्दी के स्मारक और मोन्यूमेंट हमारे गौरवशाली अतीत का परिचय करवाते हैं। जिन्हें संरक्षण और पहचान की जरूरत है।

विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए हाईकोर्ट अधिवक्ता लढ्ढा ने कहा कि बून्दी की ऐतिहासिक, प्राकृतिक सौन्दर्य और खुबसूरती अपनी अलग पहचान रखती हैं। लढ्ढा ने बून्दी को जानने के साथ इसके हित के लिए काम करने वाले सकारात्मक व्यक्तियों को भी पहचानने की जरूरत बताई, ताकि बून्दी की गौरवशाली पहचान को पुनः स्थापित किया जा सकें।

 

कार्यक्रम के प्रारम्भ में उमंग संस्थान सचिव कृष्णकांत राठौर ने अतिथियों के अभिनंदन के साथ उमंग के भावी आयोजनों की जानकारी देतें हुए बताया कि प्रश्नोत्तरी आयोजन के साथ बून्दी में उपलब्ध संसाधनों, अध्ययन विरासतों व अतुलित ज्ञान का परिचय करवाया जा रहा है।

जिलानी व पारेता बने विजेता

 प्रश्नोत्तरी श्रृंखला के संयोजक सर्वेश तिवारी ने बून्दी को जानों प्रतियोगिता की जानकारी देंतें हुए बताया कि “बून्दी को जानों “ का अट्ठाइसवीं श्रृंखला का प्रश्न बून्दी की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान कजली तीज पर्व के आयोजन से पर जुड़ा था, जिसके प्रतिभागियों मे से अतिथियों ने निर्णायक के रूप में बून्दी की उम्मेहबीबा जिलानी तथा इटावा के चमन पारेता  का चयन किया ।तिवारी ने बताया कि प्रश्नोत्तरी की यह लोकप्रिय श्रृंखला राज्य व देश से बाहर भी हजारों व्यक्तियों तक पहुंच चुकी है इस रूप में बून्दी की कला संस्कृति, साहित्य व इतिहास के साथ आमजन सहित देश व विदेश के लोगों को जोड़ने का यह प्रयास लोकप्रिय होता ही जा रहा है। रविवार प्रातः 8 बजे से रात्रि 10 बजे तक संभागी लगातार उत्तर देंतें हैं, सोशल मीडिया पर व्यापक रुझान के साथ प्रत्येक रविवार को प्रश्नोत्तरी का आयोजन किया जा रहा है। 

ऐसे शुरू हुई तीज की सवारी 

कजली तीज मेले की ऐतिहासिक पृष्टभूमि के बारे मे बताते हुए सहसंयोजक लोकेश जैन ने कहा कि तीज माता की प्रतिमा को बून्दी का गोठड़ा के हाडा सरदार ठाकुर बलवंत सिंह हाड़ा जयपुर से लेकर आये थें, जिनकी मृत्यु के बाद बूंदी के महाराव राजा रामसिंह तीज की प्रतिमा को बूंदी ले आए। महाराव राजा रामसिंह के शासन काल में भाद्रपद बुदी तृतीया को तीज की सवारी 21 तोपों की सलामी से भव्य शाही लवाजमें के साथ बून्दी के बाजारों में निकलने लगी। 

प्रश्नोत्तरी के परिणाम घोषणा के अवसर पर आयोजन समिति के एजु युनिट प्रभारी कुश जिन्दल, तकनीकी प्रभारी इंजी. अभिषेक सोनी, मनोज सोनी उपस्थित थे।


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