पाठक संवाद- राष्ट्रवाद के केन्द्र मे भारतेन्दु – व्यक्तित्व एवं कृतित्व

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Published on : 10 Sep, 19 06:09

पाठक संवाद- राष्ट्रवाद के केन्द्र मे भारतेन्दु – व्यक्तित्व एवं कृतित्व

राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालयकोटा मे दिनांक 9 सितम्बर  2019 को भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की 169 वीं जयंती के शुभ अवसर पर एक “ पाठक संवाद” कार्यकृम का आयोजन किया गया।       जिसकी थीम थी – “ राष्ट्रवाद के केन्द्र मे भारतेन्दु – व्यक्तित्व एवं कृतित्व ” । इसी अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथी राम शर्मा ‘कापरेन’ कथाकार एवं समीक्षक , अध्यक्षता विकास दीक्षित प्राध्यापक राजनिति विज्ञान , वि‍शिष्‍ट अतिथि मधु शर्मा सचिव इनर व्हील ‘नोर्थ’ एवं रविन्द्रपाल शर्मा रहे 

कार्यक्रम के उदघाटन भाषण मे डा. डी. क़े. श्रीवास्तव मण्डल पुस्तकालयाध्यक्ष ने बताया कि – किसी भी देश की सर्वाधिक तरक्की तभी संभव हे जब वहां के लोगो को शिक्षा निज भाषा में प्राप्त हो ।मुख्य अतिथी राम शर्मा ने कहा कि - “भारतेंदु हिंदी साहित्याकाश के एक दैदिप्यमान नक्षत्र थे उनका आधुनिक हिंदी साहित्य में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है । भारतेंदु बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे। कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास, निबंध आदि सभी क्षेत्रों में उनकी देन अपूर्व है। अध्यक्षता कर रहे विकास दीक्षित ने कहा कि “ भारतेन्दु आधुनिक हिंदी के जन्मदाता माने जाते हैं। हिंदी के नाटकों का सूत्रपात भी उन्हीं के द्वारा हुआ। वि‍शिष्‍ट अतिथि मधु शर्मा ने बताया कि – भारतेंदु जी ने अपने काव्य में अनेक सामाजिक समस्याओं का चित्रण किया। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों पर तीखे व्यंग्य किए। महाजनों और रिश्वत लेने वालों को भी उन्होंने नहीं छोड़ा।

मुख्य वक्ता निशा गुप्ता ने कहा कि - भारतेंदु जी अपने समय के साहित्यिक नेता थे। उनसे कितने ही प्रतिभाशाली लेखकों को जन्म मिला। मातृ-भाषा की सेवा में उन्होंने अपना जीवन ही नहीं संपूर्ण धन भी अर्पित कर दिया। हिंदी भाषा की उन्नति उनका मूलमंत्र था।निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल।। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण भारतेंदु हिंदी साहित्याकाश के एक दैदिप्यमान नक्षत्र बन गए और उनका युग भारतेंदु युग के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कार्यक्रम संयोजिका श्रीमति शशि जैन ने कहा - “भारतेंदु जी के काव्य की भाषा प्रधानतः ब्रज भाषा है। उन्होंने ब्रज भाषा के अप्रचलित शब्दों को छोड़ कर उसके परिकृष्ट रूप को अपनाया।

इसी अवसर अन्य उपस्थित पाठकों एवं वक्ताओं मे गायत्री , रानु सोनी ,ज्योति , महावीर ने भी विचार व्यक्त किये ।  वरिष्ठ पाठक श्री के.बी. दीक्षित ने कहा कि  “भारतेंदु जी ने लगभग सभी रसों में कविता की है। श्रृंगार और शांत की प्रधानता है। उक्‍त समारोह का प्रबंधन श्री अजय सक्‍सेना एवं श्री नवनीत शर्मा ने किया ।


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