उदयपुर। महाप्रज्ञ विहार में मंगलवार को संवत्सरी पर विशेष व्याख्यान में आचार्य महाश्रमण के सुशिष्य मुनि संजय कुमार ने कहा कि समुचित मानव जाति के कल्याण, उत्थान का संदेश लेकर आया है संवत्सरी महापर्व। सम्पूर्ण जैन समाज पूर्ण निष्ठा, श्रद्धा से अहिंसा, संयम और तप की आराधना से मनाना है। प्राणी मात्र के कल्याण का अवसर है। उत्साह और उमंग का अवसर है। भगवान महावीर आदि तीर्थंकर चतुर्विद धर्मसंघ (साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका) सभी आज जहां भी होते हैं, एक स्थान पर बैठकर आराधना करते हैं। आज के दिन को नहीं छोडते। श्रावक समाज पौषध, उपवास, गृहस्थ कार्य को विश्राम देकर भजन भाव, शास्त्र श्रवण करते हैं। वैर भाव को मिटाकर मैत्री का माहौल बनाते हैं। तप-त्याग के सघन प्रयोग होते हैं। बच्चे से लेकर बुजुर्गों तक धर्म ध्यान का प्रयोग करते हैं। केवल पानी के आधार पर एक महीना, दो महीना, ८, ९, ११, १५ दिनों की तपस्या करते हैं। ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। कई व्यक्ति अन्न-जल छोड देते हैं। पूरे वर्ष व्यक्ति साधन जुटाने में लगा है। आज का दिन साधना में लगा देते हैं। महावीर की साधना का रहस्य था। अकर्म की साधना करते थे। उनका जीवन अहिंसा, संयम, तप और क्षमता की प्रयोगशाला था।
प्रसन्न मुनि ने कहा कि पर्युषण संवत्सरी महापर्व पर केवल आध्यात्मिक सद्भावना का माहौल रहे। आडम्बर, प्रदर्शन, दिखावा नहीं होना चाहिए। महावीर की समता अखण्ड रहती है। इन दिनों सकल्प करें। मेरे कारण घर में, समाज में, देश में क्लेश कदापि नहीं हो। मुनिश्री ने कहा कि सतगुण में धर्म, कर्म चरम पर रहते हैं। कलयुग के अंतिम दिनों में धर्म का क्षय हो जाएगा। सच्चे धर्म के प्रति श्रद्धावान बने रहें। संवत्सरी में क्या क्या आराधना होनी चाहिए। ग्रह-नक्षत्र के आधार पर धर्म ध्यान कैसे करें, इसकी भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि प्रायश्चित दोष विशुद्धि की महत्व तपस्या है। मंगलाचरण महिला मंडल पदाधिकारियों द्वारा किया गया।
सभा अध्यक्ष सूर्यप्रकाश मेहता ने भी उपस्थित श्रावक समाज को सम्बोधित किया। सभा मंत्री ने बताया की आज प्रातः सूर्योदय के साथ ही क्षमा याचना पर्व मनाया जायेगा।