अक्सर हमें कभी-कभार यह सुनने को मिल ही जाता है कि सत्य कड़वा होता है और सच्चाई हमेशा कड़वी लगती है। लेकिन सत्य कड़वा क्यों होता है और क्या यह सभी इन्सानों को कड़वा लगता है या किसी-किसी को ? और क्या यह सत्य है कि सत्य कड़वा होता है ? इसका जवाब हमें सत्य की गहराई से विवेचना करने पर ही मिल सकता है।
इस प्रश्न का उत्तर तलाशने से पहले हमें सत्य को समझाना होगा कि आखिर सत्य है क्या ? वह वर्णन जो किसी घटना या कर्म को हू ब हू प्रदर्शित, प्रचारित या प्रसारित करता हो, वही सत्य है, ऎसा कथन जिसमें रति भर भी कपटता का समावेश नहीं हो और जो इस जगत के सभी प्राणियों के लिए अत्यन्त हितकारी हो, वही सत्य है।
सत्य वो है जो कल था, आज है और कल भी रहेगा। असत्य वो है जो कल नहीं था, आज है और कल नहीं रहेगा। जब दो ’ नहीं ’ के बीच आज है तो उसका अस्तित्व भी क्षणभंगुर ही होगा। अपनी वाणी और वर्तन से किसी को दुःख न हो और किसी का बुरा न हो, यही सत्य का भाव है। इस मार्ग पर चलने वाले को अनुपम सुख की प्राप्ति होती है। ऎसे व्यक्तियों के हर कर्म विघ्नमुक्त और उपलब्धिमूलक रहते हैं।
जो इंसान सत्मार्गी और स्पष्टवादी है, वो न तो स्वयं संशय में जीता है और न ही औरों को किसी प्रकार के संशय में डालता है। ऎसे लोगों के तमाम पारिवारिक व सामाजिक रिश्ते-नाते तथा मित्र निःस्वार्थ भावनाओं की अटूट डोर से बंधे हुए होते हैं। ये लोग निष्काम कर्म तथा अपने बौद्धिकमूल्यों के बूते आशातीत सफलता अर्जित करते हैं और मन वांछित ऎश्वर्य को प्राप्त करते हैं। चुंकि सर्वजन कल्याण की भावना को हृदय में बसाकर ही सत्य बोला जा सकता है।
लेकिन इस संसाररूपी बाड़े में कुछ पशुवृंद प्राणी ऎसे भी होते हैं जो राजा भर्तृहरि द्वारा रचित ग्रंथ शतकत्रयम् के खंड नीतिशतकम् के दोहे में उल्लेखित ’मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति’को आत्मसात करते पाये जाते हैं। ऎसे लोग आत्महीनता से भरे हुए होते हैं और इनकी जीवटता दिन-रात सुख-भोग के संसाधन जुटाने तक ही सीमित रह जाती है। अपने ऎशो-आराम के संसाधनों को पाने के लिए ये किसी भी प्रकार के दुष्कर्म करने से भी नहीं चुकते।
क्रोध, मन, माया और लोभ के कारण इंसान झूठ का सहारा लेता है। इन लोगों का मुख सदैव मलीन रहता है। इनकी कोई व्यक्तिगत उपलब्धियां नहीं होती है। इस संसार से कुछ भी पाने के लिए इन्हें सदैव बैसाखियों का सहारा लेना पड़ता है।
ऎसे मनोरंजन प्रधान ज़िदगी जीने वाले व्यभिचारियों को अपने भौतिक सुख-सुविधाओं के संसाधनों को प्राप्त करने के लिए दिन में कई बार झूठ का सहारा लेना पड़ता है और इस कारण अपने समकक्ष विचारों वाले आकाओं के कभी गुणगान करने पड़ते हैं तो कभी अपने स्वार्थ सिद्धी के लिए इनके पैरों में नाक रगड़नी पड़ती है। जब ऎसे लोग कभी जीवनमूल्यों की सत्यता से रूबरू होते हैं या अनायास ही सच्चाई से परिचित हो जाते हैं, तब इन्हें सत्य कड़वा लगता है। ऎसे लोगों को जीवन का यथार्थ बेमानी सा प्रतीत होता है और इनके जीवन की सार्थकता वस्तुतः संदिग्ध होती है।
दूसरी ओर निष्काम कर्मयोगी इंसान अपने अनथक प्रयासों से समाज को ऎसे आसमां पर ले जाने को प्रयासरत रहते हैं जहां परोपकारी बादल अनवरत प्रेम की वर्षा करते रहते हैं। ऎसे लोग किसी भी परिस्थिति में अपने सत्मार्ग से विमुख नहीं होते हैं। इन सत्मार्गी इंसानों को सत्य मीठा भी लगता है और इनके दिलों-दिमाग को आनंदमयी सुकून भी देता है। इसलिए कर्म ऎसे करो कि आपका आत्मानंद कभी खंडित न हो और आपको सत्य हमेशा मीठा लगे।