श्री भगवत गीता वस्तुतः ज्ञान का महासागर है

( 21738 बार पढ़ी गयी)
Published on : 25 Aug, 19 15:08

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

श्री भगवत गीता वस्तुतः ज्ञान का महासागर है

श्री करणी नगर विकास समिति के आश्रय भवन में आयोजित गोष्ठी में डॉ. डी. के. शर्मा ने बताया कि भारत के ऋषि मुनियों ने हमारे धर्म शास्त्रों में अगाध ज्ञान भर दिया है। अध्यात्म के माध्यम से जीवन को उच्च उठाने का प्रयास किया है श्री भगवत गीता वस्तुतः ज्ञान का महासागर है।

          गीता पर अनेक विद्वानों ने अन्याय व्याख्याऐं लिखी है। आपनेे बताया कि गीता में मनोवैज्ञानिकता भरी हुई है। जगत में प्रसन्न रहने का मार्ग बताया गया है। अवसाद जो मनुष्यों को सताता है, उसे कैसे दूर किया जावे, कैसे जिया जाए, उसकी पद्धति गीता में है। अर्जुन की हताशा और निराशा को दूर करने का उपक्रम श्री कृष्ण ने बताया है। अर्जुन के भाव और विचार को कृष्ण ने मनोवैज्ञानिक राय से बदलने का प्रयास किया। इस क्रिया में कृष्ण ने ज्ञान, कर्म और भक्ति योग की व्याख्या प्रस्तुत की है और अर्जुन को मोहग्रस्त अवस्था से निकाला।
अज्ञान को दूर कर ज्ञान की स्थापना की। 

       कृष्ण ने साफ बताया कि जिन लोगों के प्रति तुम्हारा मोह है, वे अन्याय के हावी हैं, इसलिए उनका नाश आवश्यक है, यह अधर्म नहीं अपितु धर्म है। अर्जुन के दौबल्ये को दूर कर आत्मसम्मान को जगाने का काम कृष्ण ने किया है। यही बात हमें अर्जुन जीवन में आधीन करना चाहिए। सबसे बड़ा संदेश गीता का है वह है कर्मयोग अर्थात् निष्काम भाव से हुए कर्तव्य की पालना पालन करना। कर्म आवश्यक है, अकर्मा नहीं रहना चाहिए। इसके साथ ही कृष्ण ने बताया कि तुम चिंता मत करो। ईश्वर के चरणों में समर्पण करके कार्य करो। भगवान स्वयं तुम्हारी रक्षा करेंगे। भक्ति भाव से कार्य करने की सीख गीता से मिलती है।                       वृद्धावस्था में तो गीता का ज्ञान बहुत उपयोगी है। परम शांति का द्वार गीता से दिखाई पड़ता है। प्रोफेसर हरिमोहन शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया इसके पूर्व आश्रय भवन की बालिकाओं द्वारा बनाई गई कृष्ण की झांकी का उद्घाटन किया गया और बच्चियों ने मधुर भजनों के माध्यम से समारोह को ऊंचाई प्रदान की।    


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.