तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव धूमधाम से मना,राष्ट्रधर्म सर्वोपरि

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Published on : 17 Jul, 19 04:07

तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव धूमधाम से मना,राष्ट्रधर्म सर्वोपरि

इस मौके पर शिष्यों को अपने वार्षिक प्रवचन में लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमदासजी ने कहा कि राष्ट्र को सर्वोपरि मानकर कार्य करें। समाज-जीवन के जिस किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हों वहां देशभक्ति और देश के विकास की भावना को सामने रखकर दिव्य जीवन व्यवहार के साथ कार्य करें और ईश्वर द्वारा प्रदत्त क्षमताओं का भरपूर उपयोग मानवता के हित में और मनुष्य जीवन के चरम लक्ष्य की प्राप्ति में करें । महाभारत, ब्रह्मसूत्र, श्रीमद् भागवत आदि के रचयिता महापुरुश वेदव्यासजी के ज्ञान का मनुष्यमात्र लाभ ले, इसलिए गुरुपूजन को देवताओं ने वरदानों से सुसज्जित कर दिया कि ‘जो सत्शिष्य सद्गुरु के द्वार जायेगा, उनके उपदेशों के अनुसार चलेगा उसे 12 महीनों के व्रत-उपवास करने का फल इस पूनम के व्रत-उपवास मात्र से हो जायेगा ।’
ब्रह्मवेताओं के हम ऋणी हैं, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए तथा उनकी शिक्षाओं का स्मरण करे उन पर चलने की प्रतिज्ञा करने के लिए हम इस पवित्र पर्व ‘गुरुपूर्णिमा’ को मनाते है ।
गुरुपूर्णिमा को हर शिष्य को अपने गुरुदेव के दर्शन करना चाहिए । प्रत्यक्ष दर्शन न कर पाये ंतो गुरुआश्रम में जाकर जप-ध्यान, सत्संग, सेवा का लाभ अवश्य लेना चाहिए । इस दिन मन-ही-मन अपने दिव्य भावों के अनुसार सद्गुरुदेव का मानस पूजन विशेष फलदायी है । 
महंत हरिओमदासजी ने कहा कि महाभारत, ब्रह्मसूत्र, श्रीमद् भागवत आदि के रचयिता महापुरुष वेदव्यासजी के ज्ञान का मनुष्यमात्र लाभ ले, इसलिए गुरुपूजन को देवताओं ने वरदानों से सुसज्जित कर दिया कि ‘जो सत्शिष्य सद्गुरु के द्वार जायेगा, उनके उपदेशों के अनुसार चलेगा उसे 12 महीनों के व्रत-उपवास करने का फल इस पूनम के व्रत-उपवास मात्र से हो जायेगा । ब्रह्मवेताओं के हम ऋणी हैं, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए तथा उनकी शिक्षाओं का स्मरण करे उन पर चलने की प्रतिज्ञा करने के लिए हम इस पवित्र पर्व ‘गुरुपूर्णिमा’ को मनाते है । 
बांसवाड़ा,, गुरु पूर्णिमा महोत्सव ऐतिहासिक लालीवाव मठ में मंगलवार को धूमधाम से मनाया गया। भोर में गुरु पादुका पूजन अनुष्ठान हुआ। इसमें लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमदास महाराज ने मठ के पूर्ववर्ती महंतों की छत्री, चरणपादुकाओं तथा मूर्तियों का पूजन किया और आशीर्वाद प्राप्त किया।
महंत नारायणदास महाराज की छतरी पर गुरु पादुकापूजन कार्यक्रम में लालीवाव की शिष्य परम्परा के बड़ी संख्या में अनुयायियों और भक्तों ने हिस्सा लिया और विविध उपचारों के साथ गुरु पूजन किया।
लालीवाव मठ में मंगलवार को प्रातः 5 से दोपहर तक भारी भीड़ लगी रही। भक्तों ने लालीवाव के महंत हरिओमशरणदास महाराज को पुष्पहार पहनाकर पूजन किया तथा आशीर्वाद प्राप्त किया।
प्रातः 5 से 11 गुरुगादी पूजन एवं महाप्रासादी प्रातः 11 से 4 बजे, दोपहर 12 से 3 बजे दीक्षा महोत्सव हुआ। इसके पश्चात चन्द्रग्रहण सुतक के कारण दोपहर 4 बजे मंदिर के पट लगा दिए गए एवं गुरुपूर्णिमा महोत्सव सम्पन्न हो गया । इसमें बड़ी संख्या में नव दीक्षार्थियों ने दीक्षा विधान के साथ लालीवाव महंत से दीक्षा प्राप्त की और नवजीवन का संकल्प ग्रहण किया। तीन घण्टे चले इस दीक्षा महोत्सव में दीक्षार्थियों का तांता बंधा रहा। शिष्यों ने पीठाधीश्वर की आरती उतारी और आशीर्वाद प्राप्त किया।
दोपहर तक लालीवाव धाम पर भजन-कीर्तनों की धूम बनी रही। लालीवाव धाम के प्रधान मन्दिर पद्मनाभ में भगवान के श्रीविग्रहों का मनोहारी श्रृंगार किया गया। भगवान के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहा।
दोपहर 2 बजे महाआरती तक भण्डारे में हजारों लोगों ने महाप्रसादी के साथ महामहोत्सव का समापन हुआ ।

आत्मकल्याण के लिए सद्गुरु जरुरी: महंत हरिओमदास महाराज
गुरु मंत्र में अद्भुत शक्ति होती है । साधक को इसका नित्य जाप करना चाहिए । यदि इस मंत्र का जाप विशेश पर्वों पर वर्ष में आठ बार किया जाए तो मंत्र सिद्ध हो जाता है और जीवन में सुख समृद्धि के साथ आत्मशांति की प्राप्ति होती है तथा इसके साथ ही सिद्ध हुआ मंत्र साधक परम लक्ष्य पर जोर दिया ।
महाराजजी ने गु यानी अधंकार और रु यानी प्रकाश जो अंधकार में प्रकाश प्रदान करे वह गुरु है ।
व्यास पूजा का पुण्य पर्व महर्षि व्यासदेव के अध्यात्मिक उपकारों के लिए उनके श्री चरणों में श्रद्धा-सुमन अर्पित करने का दिवस है । उनके अमर संदेश को प्रत्येक भक्त जीवन में उतारें - मैं और मेरे बंधन का कारण, तू और तेरा मुक्ति का साधन । आज जगद्गुरु परमेश्वर के पूजन का पर्व है । महाराज जी के अनुसार आज का यह मांगलिक दिन आध्यात्मिक सम्बंध स्मरण करने के लिए नियत है अर्थात् गुरु अथवा मार्ग-दर्शक एवं शिष्य के अपने-अपने कर्तव्य को याद करने का दिवस है ।
जब तक सोना सुनार के पास, लोहा लौहार के पास, कपड़ा दर्जी के पास न जाये, उसे आकार नहीं मिलता । तद्वत शिष्य जब तक अपने आपको गुरु को समर्पित नहीं कर देता, तब तक वह कृपा पात्र नहीं बनता । 


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