युवावस्था में ही हो सकती है सामाजिक क्रांति : प्रसन्न मुनि

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Published on : 15 Jul, 19 05:07

आचार्य भिक्षु के बोधि-जन्म दिवस पर कार्यक्रम

युवावस्था में ही हो सकती है सामाजिक क्रांति : प्रसन्न मुनि

उदयपुर। मुनि प्रसन्न कुमार ने कहा कि आचार्य भिक्षु का जन्म दिवस और बोधि दिवस, ये भी कुशल संयोग है। सामाजिक क्रांति के लिए वृद्धावस्था का इंतजार नही किया और युवावस्था में ही वो क्रांति ले आये। आत्मकल्याण का काम युवावस्था में ही हो सकता है। सार्थक काम जवानी में किया जा सकता है।

वे आचार्य भिक्षु के २९४ वें जन्मदिवस और २६२ वें बोधि दिवस पर अणुव्रत चौक स्थित तेरापंथ भवन में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ के प्रवर्तक आचार्य भिक्षु का जन्म मारवाड में दीपा मां की कोख से हुआ। राजनगर के शंकाशील श्रावकों की समस्या का समाधान करने गुरु रघुनाथजी ने भीखण जी को चातुर्मास के लिए राजनगर भेजा। वहां श्रावकों की संतुष्टि नही हुई। शास्त्रों को पढकर इसका समाधान दूंगा कहकर टाल दिया। उस चातुर्मास में एक बार तेज बुखार आ गया। उस दौरान भी उन्हें चिंता।बुखार की नही आत्मा की थी। अगर इस समय मौत आ जाये तो मैं कहाँ जाऊंगा क्योंकि यहां जो मैंने कहा, वो मान लिया।  डॉक्टर और सद्गुरु का ही विश्वास होता है। बुखार उतरते ही सवेरे सही सही स्थिति बताऊंगा। सत्य के लिए गुरु का मोह भंग करना पडेगा। बुखार उतरा, शास्त्रों का अध्ययन किया और ३०६ गलतियां निकाली। गुरुनसे डेढ वर्ष तक समझाइश की लेकिन वे नहीं माने। शहर में धर्म क्रांति की, अभिनिष्क्रमण किया, सत्य का घोर विरोध हुआ और आचार्य भिक्षु सत्य के खतरों से डरे नहीं, जहर देने वाले भी मिले लेकिन वे बच गए। जो समझाने गए थे, वो खुद समझ गए।

मुनि श्री ने कहा कि जवानी में कमा लें फिर बाद में काम करेंगे लेकिन अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं। आज के दिन बोध हुआ। शासन, उदघाटन, देशाटन में ही जीवन खत्म कर दिया। युवा इस सार्थक काम को हाथ में लें। उनका एक भी उपदेश अपने जीवन में उतार लिया तो जीवन सफल हो जाएगा। जिस परिस्थिति में राजनगर जाकर संघ का निर्माण किया, आज वैसे श्रावक हैं कहाँ? दृढ श्रावक की आज बहुत जरूरत है। मैं अपना समय सार्थक बिताऊंगा।

मुनि धैर्यकुमार ने राजस्थानी गीत प्रस्तुति से आचार्य भिक्षु के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त की। आचार्य भिक्षु के दो रूप हैं विचार और सम्यक चारित्र की क्रांति और दूसरी संघ व्यवस्था। दोनों इतने मजबूत स्तंभ खडे किए कि आज भी देश विदेशों में तेरापंथ का नाम शिखर को छू रहा है।

सभाध्यक्ष सूर्यप्रकाश मेहता ने स्वागत उदबोधन दिया। ज्ञानशाला संयोजक फतहलाल जैन ने श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन किया। महिला मंडल की सीमा बाबेल, वरिष्ठ श्रावक लक्ष्मणलाल कर्णावट ने भी विचार विकट किये।


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