जनुभाई की 108 वीं जयंति हर्षोल्लास के साथ मनाई 

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Published on : 17 Jun, 19 07:06

मानवीय मूल्यों के तपस्वी थे जनुभाई - कृष्ण मोहन,सामाजिक बदलाव के पुरोधा थे नागर - प्रो. सारंगदेवोत, शिक्षा यज्ञ के पंडित को किया नमन

जनुभाई की 108 वीं जयंति हर्षोल्लास के साथ मनाई 

उदयपुर  / जनार्दनराय नागर विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संस्थापक मनीषी पं. जनार्दनराय नागर की 108 वीं जयंती रविवार को प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में मुख्य वक्ता पूर्व एडीशन चीफ सेक्रेटरी हरियाणा कृष्ण मोहन ने कहा कि जीवन में मूल्य का और मूल्य में नैतिकता का बडा महत्व है। नैतिकता चर्चा का नही आचरण का विषय है नैतिक मूल्य वह है जिन्हे हम स्वेच्छापूर्वक स्वतंत्रता के साथ स्वीकार करते है। किसी व्यक्ति में नैतिक मूल्य का होना ही धर्म है। नैतिक मूल्यों के अनुरूप आचरण ही उसे चरित्रवान बनाता है। उन्होने कहा कि पंडित नागर मानवीय मूल्यो के तपस्वी थे। पंडित नागर की सोच का ही परिणाम था कि वे शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का साक्षर एवं प्रबुद्ध नागरिक बनाते हुए जीविकोपार्जन के तैयार करना, लेकिन वास्तविक उद्देश्य मनुष्य को सभी पहलुओं से व्यापक एवं विकसित करना। अध्यक्षता करते हुए विधि आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.मूल चंद शर्मा ने कहा कि गरीबी को भौतिक संसाधनों से दूर किया जा सकता है लेकिन अज्ञानता को भगाने के लिए शिक्षा की जरूरत होती है। विद्यापीठ की स्थापना जनुभाई  की अज्ञानता को दूर करने की सोच का ही परिणाम  था। मुख्य अतिथि एवं समाज सेतु सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ अधिवक्ता आर.एन. माथुर ने कहा कि जनुभाई अपने आप में किसी पुरस्कार से कम नही थे उन्होने से संस्था की शुरूआत रात्रिकालीन साक्षरता केन्द्र के रूप में की। उन्होने शोषित, निम्न वर्ग व गरीब तबके के लोगो के लिए ग्रामीण अंचलो में शिक्षा के सामुदायिक केन्द्रो की स्थापना की। कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि पंडित नागर ने साक्षरता,बेहतर शिक्षा व मूल्य बोध के लिए विद्यापीठ की स्थापना की। पंडित नागर बहुभाषाविद्, समाजसेवी, कुशल राजनीतिज्ञ, सारगर्भित वक्ता और सबसे उपर एक श्रेष्ठ मानव, नैतिक व मानवीय मूल्यो के लिए तपस्वी थे। उन्होने कहा कि स्वाधीनता संग्राम में एक ओर जहा महात्मा गांधी के नेतृत्व में सम्पूर्ण राष्ट्र में राष्ट्रीय चेतना व देश प्रेम की भावना हिलोरे मार रही थी वही जनुभाई मेवाड के सुदूर ग्रामीण अंचलों में शिक्षा की अलख जगा रहे थे। कुल प्रमुख भंवरलाल गुर्जर ने कहा कि 21 अगस्त 1937 को उन्होने हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना कर सर्वहारा व जन साधारण की शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया।

जनुभाई ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के राष्ट्रीय, सांस्कृतिक  अस्मिता का पुनर्जाग्रम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संचालन डॉ. अमी राठोड ने किया जबकि आभार पीजीडीन प्रो. जीएम मेहता ने दिया। समारोह में कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत द्वारा डॉ. पवन शर्मा, मंजु माथुर, पर्यावरणविद् दलपत सुराणा को माला, शॉल व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इससे पूर्व परिसर में स्थापित जनुभाई की आदमकद प्रतिमा पर अतिथियों एवं कार्यकर्ताओं द्वारा पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हे नमन किया। समारोह में शहर के प्रबुद्ध नागरिक, डीन, डायरेक्टर व कार्यकर्ता उपस्थित थे। 
समाज सेतु अलंकरण:- समारोह में अतिथियों द्वारा विधि एवं सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता आर.एन. माथुर को समाज सेतु अलंकरण से नवाजा गया। उन्हे प्रशस्ति पत्र, उपरणा, शॉल व प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। 
 


साभार : Ghanshyam Singh Bhinder


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