आदि महोत्सव में संगोष्ठी का आयोजन

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Published on : 17 Jun, 19 06:06

आदिवासियों की परम्परागत कला आम जन तक पहुंचाना आवश्यक - डाॅ. देवल

आदि महोत्सव में संगोष्ठी का आयोजन

उदयपुर । जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग, माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान (टीआरआई) तथा भारतीय लोक कला मण्डल के संयुक्त तत्वावधान में आदि महोत्सव 2019 के क्रम में दिनांक 15 जून, 2019 को दोपहर 3.00 बजे आधुनिक समय में आदिम संस्कृति का महत्व  तथा इसे कैसे आजीविका से जोड़ा जा सकता है। इस विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में वक्ता पदमश्री डाॅ. चन्द्र प्रकाश देवल, श्री हरिराम सेवा निवृत आईपीएस, श्रीमती  (डाॅ.) मालिनी काले, श्री विलास जानवे एवं श्री भगवानलाल कच्छावा पूर्व सहायक सांस्कृतिक अधिकारी टीआरआई ने अपने पत्रों का वाचन किया। 
प्रस्ताव करते हुए श्री लईक हुसैन, भारतीय लोक कला मण्डल ने सभी मेहमानों का स्वागत किया। जनजाति समुदाय को आधुनिक समय में कलाकारों को कला के साथ-साथ इसके महत्व का पता लगे और जो गुणीजन है जो कि जड़ी बूटियों के माध्यम से  इलाज करते है एवं कलाकारों की कला को आम जनता तक पहुंचाने की महत्ती आवश्यकता है। 


 

पदमश्री डाॅ. सी.पी.देवल  ने भारत परम्परा के बारे में बताया । जनजाति वर्ग में गायन परम्परा रही है। पदमश्री देवल ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर से राष्ट्रीय  एवं राज्य स्तर पर आदिवासी संस्कृतियों की तुलना करते हुए उनकी समृद्ध परम्परा  को रूबरू कराते हुए उनकी क्षेत्रीय संस्कृति को बचाए रखने एवं उसका उपयोग आजीविका के लिए करने हेतु सुझाव दिए। आदिवासियों की कला एवं संस्कृति को आज के समय में माॅर्डन आर्टिस्ट भी उपयोग कर रहे है। उन्हीं की मूल कला को विस्तृत रूप से दर्शाया जा रहा है परन्तु चूूॅकि आदिवासी स्वयं को अपनी कला को प्रदर्शित  करने का अवसर प्राप्त नहीं होता है, उनकी कला को अन्य लोग प्रदर्शित कर रहे है। पदम्श्री देवल ने आदिवासी कला एवं ज्ञान को वर्तमान शिक्षा पद्धत्ति  में जगह देने की अपील की।
श्री विलास जानवे ने  बताया कि आदिवासी सहज सरल स्वभाव के होते है। उनकों एवं इनकी संस्कृति से छेड़छाड़ नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि यदि इनके एवं इनकी संस्कृति के साथ छेड़-छाड़ किया तो आदिवासी अनावश्यक छेड़छाड को सहन नहीं करते है और यह उचित भी नहीं है। 
श्री हरिराम मीणा भूतपूर्व आईपीएस ने आदिवासियों की संस्कृति को भूमण्डलीयकरण के इस दौर मूल्य संवधर्न करते हुए आदिवासी की संस्कृति को बचाए रखते हुए उसके उपयोग की पैरवी की। उन्होंने महाराणा प्रताप की महानता में आदिवासियों की भूमिका पर भी प्रकाश डाला । 
श्रीमती मालिनी काले ने डूंगरपुर-बांसवाड़ा के जनजाति लोगों की गायन परम्परा पर प्रकाश डाला एवं बताया कि आदिवासी स्वाभिमानी होते है। 
श्री भगवानलाल कच्छावा ने अपने टीआरआई में किए गए कार्यों के संस्मरणों को जोड़ते हुए आदिवासी संस्कृति के विभिन्न रहन-सहन के पक्षों पर प्रकाश डाला। 
आभार एवं ज्ञापन श्रीमती ज्योति मेहता, संयुक्त निदेशक, टीआरआई, उदयपुर ने ज्ञापित किया। 
हाट बाजार में आदिवासियों द्वारा तैयार किए गए परम्परागत उत्पाद एवं देशी जड़ी-बूटियों से इलाज कर रोग दूर करने हेतु स्टाॅल्स स्थापित की गयी है जिसे शहर के एवं देश के पर्यटकों में इस कदम को सराहा।  
लोक कला मण्डल के मुक्ताकाशी मंच पर सांयकाल राज्य के विभिन्न जिलों से आए जनजाति कलाकारों ने अपनी परम्परागत शैली में सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देकर दर्शकों का मन मोह लिया। 
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